हिंदी आंदोलन परिवार की 302वीं गोष्ठी का किया गया आयोजन

हिंदी आंदोलन परिवार की 302वीं गोष्ठी का किया गया आयोजन

हिंदी आंदोलन परिवार की 302वीं गोष्ठी का किया गया आयोजन

हिंदी आंदोलन परिवार की 302वीं गोष्ठी का किया गया आयोजन

पुणे, दिसंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
हिंदी आंदोलन परिवार की 302वीं गोष्ठी का आयोजन डॉ. कांतिदेवी लोधी की अध्यक्षता में श्रीमती ऋत सिंह के आवास पर 8 दिसंबर को सायं 4 बजे से किया गया, जिसमें हिंआ परिवार के अध्यक्ष संजय भारद्वाज, क्षितिज प्रकाशन प्रमुख सुधा भारद्वाज सहित बाबा साहेब लोधी, माया कटारा, वीनू जमुआर, आशु गुप्ता, डॉ.सत्येंद्र सिंह, रामेश्वरी सिंह, डॉ. कृष्ण कुलश्रेष्ठ, निशा कुलश्रेष्ठ, नरेंद्र कौर छावड़ा, अलका अग्रवाल, पवन अग्रवाल, मंजू चोपड़ा, बबीता शर्मा, गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय, अभिषेक पाण्डेय, अवनीश कुमार, रीतिका कुमार, चित्रा उप्पल, धंगमणि थंपी, आनंदिता आदि उपस्थित थे।

दीप प्रज्ज्वलन, इतनी शक्ति हमें देना दाता गायन के साथ गोष्ठी का शुभारंभ हुआ, जिसका संचालन स्वयं ऋता सिंह ने किया। बबीता शर्मा ने महाभारत को सामने रखकर अपनी रचना पेश की कि सत्यवती महत्वाकांक्षी न होती तो यह युद्ध न होता, भीष्म ने प्रतिज्ञा न की होती तो यह युद्ध न होता। नरेंद्र कौर छावडा ने आज मानवीय संवेदनशीलता की गिरावट को लेकर अपनी लघुकथा संवेदनशीलता प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया, परिवार में वृद्ध दम्पत्ति अकेले रहते हैं, जिनके दो बेटे हैं और दोनों विदेश में रहते हैं। वृद्धा की मौत पर वृद्ध बेटों को समाचार भेजते हैं। काफी इंतजार के बाद माँ के निधन पर विदेश में रह रहे दो बेटों में से छोटा बेटा घर आता है और बड़े बेटे के बारे में पूछने पर बताता है कि वह पिता के देहांत पर आएंगे तो वृद्ध अपने आप को अपने बेडरूम में बंद कर लेते हैं। बड़े प्रयास से कमरा खोलने पर वृद्ध का शरीर जमीन पर पड़ा पाया जाता है और जांचने पर पता चलता है उनकी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनकी मुट्ठी में छोटे बेटे के नाम एक चिट्ठी मिलती है। उसमें छोटे बेटे को आने का धन्यवाद देते हुए लिखा मिलता है कि बड़े बेटे को मेरे समय आने पर कष्ट होगा इसलिए मैं आत्महत्या करता हूँ और तुम मुझे भी निपटाते जाओ।

संवेदनशीलता की गंभीरता को कम किया डॉ. कृष्ण कुलश्रेष्ठ ने अपनी रचना सुनाकर कि प्रभु तुम्हारी लीला में व्यथा कथा की भरमार रही है, इसलिए मैं कभी न तुमको अपनी व्यथा सुनाऊँ…। आशु गुप्ता ने हिंदी पर अपनी प्रस्तुति इस प्रकार की, हर राग रंग में है हिंदी, पर सब पर सजने लगी है हिंदी के ऊपर की बिंदी। सुधा भारद्वाज ने अपने दो संस्करण दीपावली, रौशनी और मैं सुनाए। गौतमी चतुर्वेदी पांडे ने अपनी मधुर आवाज में कविता सुनाई, सूर्य की ये रश्मियाँ जहां भी संचरण करें, हर उस दिशा में हम सभी, स्नेह का वरण करें। आनंदिता ने कहा कि इस गोष्ठी में पहली बार आई है, बांग्ला भाषी हैं लेकिन हिंदी अच्छी तरह जानती हैं। उन्होंने अपनी कैंसर पीड़ित माँ की हालत देखने पर बचपन में लिखी एक कविता सुनाई। डॉ. सत्येंद्र सिंह ने अपनी चाहत कविता कुछ इस तरह पेश की, आज ही नहीं होश संभाला जबसे, सोचता रहा मैं क्या चाहिए सबसे।, अवनीश कुमार ने अपनी कविता कालातीत पेश की – समय, एक चिरंतन प्रवाह है, जिसकी धारा है अडिग क्षणों की, …स्वजनों का सान्निध्य, मिले तो स्वरों का प्रवाह बदल जाता है। मंजू चोपड़ा जी ने अपने गंभीर विचार व्यक्त किए और सामाज में सकारात्मक गतिविधियों के कई उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि आज का युवक समाज के लिए बहुत कुछ कर रहा है।

अलका अग्रवाल ने अपनी कहानी कमी में संतान गोद लेने की परंपरा को ही नया अर्थ दे दिया क्योंकि उनकी कहानी में वृद्ध दम्पत्ति को गोद लिया जाता है। माया मीरपुरी ने ऋता सिंह के लेखन विशेषकर संस्मरण और यात्रा वर्णन विधा की बहुत प्रशंसा की और ऋता सिंह को आशीर्वाद दिया कि इसी प्रकार लिखती रहें। उन्होंने प्रेम पर लिखने की बात कही। निशा कुलश्रेष्ठ ने अपनी महाबलेश्वर यात्रा के संस्मरण सुनाए, जिसमें एक वृद्ध दंपत्ति द्वारा आने जाने वालों को अपने घर ले जाकर अपने साथ भोजन कराने के बारे में बताया कि उनके बच्चे विदेश में रहते हैं इसलिए वे साथ में भोजन करने का आनंद उठाना चाहते हैं। वीनू जमुआर ऋता सिंह के कहानी संग्रह अनुभूतियाँ की समीक्षा प्रस्तुत की और समय नामक अपनी रचना पेश की।

संजय भारद्वाज ने अपनी कविता डिफॉल्टर सुनाई- समय की छाती पर, साहूकार सा आ बैठा है, अब तक निरर्थक बिताए, घटी पल का ब्याज के साथ, सारा हिसाब मांग रहा है, और मैं निरुत्तर सा खड़ा हूँ, …सच बताना, केवल मैं ही डिफॉल्टर हुआ हूँ, या तुम्हारा भी यही हुआ है। इसके अलावा उन्होंने बकरी शीर्षक की एक कविता और सुनाई, जो बहुत गंभीर प्रभाव डालने वाली रही। ऋता सिंह ने अपनी उत्तराखंड यात्रा के दो यात्रा संस्मरण सुनाए, जिनके जरिए उत्तराखंड के जन जीवन और वहाँ के नागरिकों के चरित्र पर बहुत अच्छा प्रकाश डाला। डॉ. कांति लोधी ने अपनी कविता एक क्षण- मध्याह्न का समय था, सुबह सुबह तो देखा तो उसे, वह आई थी, ….अब न जाने कहाँ चली गई, अदृश्य हो गई – छाँह। उन्होंने एक क्षणिका चिंतन भी सुनाई कि, यह अंधेरे की खामोशी, रात नहीं कहलाती, वह तो सुबह होने से पहले का सन्नाटा है। अध्यक्ष पद की गरिमा बरकरार रखते हुए डॉ. लोधी ने उपस्थित सभी रचनाकारों की प्रस्तुतियों पर एक एक करके अपने विचार व्यक्त किए।

इतनी सफल गोष्ठी की यजमान ऋता सिंह जी ने सभी उपस्थित रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया और सुस्वादु भोजन का आनंद लेने का आह्वान किया। इस आनंद का श्रेय यजमान ऋता सिंह का तो है ही, साथ ही आशा जी और मणि जी के सहयोग को भी है। इस अवसर पर ऋता सिंह जी ने काव्य संग्रह मैं कविता नहीं करता के लिए डॉ. सत्येंद्र सिंह और जीवनोत्सव के लिए गौतमी चतुर्वेद पाण्डेय का सम्मान किया। उन्होंने गोष्ठी की अध्यक्ष डॉ. कांति देवी लोधी को श्रीफल और फलों की टोकरी भेंट करके उनका विशेष सम्मान किया। कार्यक्रम के चित्र अवनी कुमार ने लिए।

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