मुंबई के एलफिंस्टन टेक्निकल हाई स्कूल और जूनियर कॉलेज में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ

मुंबई के एलफिंस्टन टेक्निकल हाई स्कूल और जूनियर कॉलेज में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ

मुंबई के एलफिंस्टन टेक्निकल हाई स्कूल और जूनियर कॉलेज में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ

अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर राज्य के सभी 434 आईटीआई में संविधान मंदिर का ऑनलाइन उद्घाटन करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है।

क्या दिन चयन किया गया है? विश्वभर में इसका असर पड़ेगा।

यह वास्तव में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह निश्चित रूप से हमारे संविधान के बारे में जागरूकता पैदा करेगा। और आज के दिन इसकी बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि कुछ लोग संविधान की आत्मा को भूल चुके हैं।

मैं महाराष्ट्र सरकार के माननीय मंत्री श्री मंगल प्रभात लोढ़ा का विशेष रूप से आभारी हूँ कि उन्होंने इस बड़े स्तर पर यह कोशिश की है और यह एक दिन के लिए नहीं है, यह एक सतत प्रक्रिया है, हमारे संविधान के बारे में निरंतर सीखना है। यह बहुत ही सराहनीय कार्य है। यह संविधान के प्रति सर्वोच्च स्तर की प्रतिबद्धता का उदाहरण है, बधाई! और कितना अच्छा समय है हमारे संविधान का 75वाँ वर्ष।

मुझे एक महत्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख करना चाहिए जो इस घटना को और गौरवान्वित करता है। यह आयोजन किसी हवन से कम नहीं है, कारण यह कार्यक्रम उस जगह पर हो रहा है, जिसने भारत के संविधान का निर्माण किया, भारत के संविधान के शिल्पी रहे, उन्होंने यहां शिक्षा प्राप्त की थी। क्या जगह चुनी है, बहुत यादगार! हमारी याद में यह हमेशा रहेगा कि उस स्कूल के अंदर जहां बाबा साहब ने शिक्षा प्राप्त की और शिक्षा का नतीजा हमें इतना जबरदस्त विधान दिया, वहीं से इसकी शुरुआत हो रही है।

मेरा परम सौभाग्य रहा, 1989 से 91 तक मैं लोकसभा का सदस्य रहा।

जिन बाबा साहब को हम भूल गये थे, उससे पहले के सरकारों ने याद नहीं किया कि भारत रत्न, असली रत्न बाबा साहब अंबेडकर को क्यों नहीं दिया गया। वो दिन आया, मैं लोकसभा का सदस्य था और वो दिन 31 मार्च 1990 का था।

बाबा साहब को भारत रत्न से अलंकृत किया गया। यह देर से दिया गया सम्मान था।

देरी से दिया गया, देर हो सवेर हो पर न्याय हुआ क्योंकि बाबा साहब ने हमेशा यह ध्यान दिया कि जो वंचित है उनके साथ न्याय हो।

पर आप सोचिए, ये पहले क्यों नहीं दिया गया? जबकि बाबा साहेब भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में बहुत प्रसिद्ध थे।

एक दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा जो बाबा साहब के मानस से जुड़ा हुआ है। मण्डल कमीशन की रिपोर्ट पेश होने के दस साल बाद तक, देश में उस दशक में दो प्रधान मंत्री, श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री राजीव गांधी रहे, एक पत्ता भी नहीं हिला उस रिपोर्ट के ऊपर।

सामाजिक न्याय जिसकी नींव मजबूती से डॉ. भीम राव अंबेडकर ने मौलिक अधिकार के रूप में रखी थी। यह अगस्त 1990 में किया गया था, और मेरा परम सौभाग्य था कि उस समय मैं केंद्र में मंत्री था।

यह दो घटनाएं जो बाबा साहब अंबेडकर के दिल से जुड़ी हुई थीं, संविधान की आत्मा के रूप में थीं, मुझे इसमें भागीदार होने का मौका मिला, मैं इसे अपनी स्मृति में हमेशा याद रखूंगा।

आरक्षण पहले क्यों नहीं हुआ, इसकी एक पृष्ठभूमि है, पहले माइन्ड सेट नहीं था, लोग समझते थे, ये लोग योग्य नहीं हैं, अरे योग्यता तो डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने प्रमाणित कर दी दुनिया के सामने ।

मैं इस मानसिकता के बारे में कुछ विचार उद्धृत करना चाहूँगा। पंडित नेहरू इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे, उन्होंने क्या कहा था? “मुझे किसी भी रूप में आरक्षण पसंद नहीं है। खासकर नौकरियों में आरक्षण।” उनके अनुसार, और दुख की बात है, मैं उद्धृत करता हूँ “मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूँ जो अकुशलता को बढ़ावा देता है और हमें सामान्यता की ओर ले जाता है।”

यह बाबा साहब का विचार है, विचार प्रक्रिया है कि सोचिये! आज भारत की महामहिम राष्ट्रपति कौन हैं? प्रधान मंत्री किस वर्ग के हैं? और उपराष्ट्रपति कौन हैं? वो मानसिकता जो सोचती थी कि आरक्षण योग्यता के ख़िलाफ़ है, आरक्षण भारत की आत्मा है, संविधान की आत्मा है।

आरक्षण एक सकारात्मक कार्रवाई है, यह नकारात्मक नहीं है, आरक्षण किसी को अवसर से वंचित नहीं करता है, आरक्षण उन लोगों को सहारा देता है जो समाज के स्तंभ और ताकत हैं।

चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है, मंथन का विषय है!

वही मानसिकता जो आरक्षण विरोधी थी।

आज के दिन संविधान के पद पर बैठा हुआ एक व्यक्ति विदेश में कहता है – आरक्षण खत्म होना चाहिए।

आरक्षण के खिलाफ पूर्वाग्रह की जो लाठी थमा दी गई है, उसे देखिए

अपनी संवैधानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि आरक्षण संविधान की अंतरात्मा है, आरक्षण हमारे संविधान में सकारात्मकता के साथ है, सामाजिक समानता लाने और असमानताओं को कम करने के लिए यह बहुत मायने रखता है।

वह समय आ गया है कि हम देखें कि हमारी प्रजातान्त्रिक यात्रा के अंदर कौन से चढ़ाव थे कौन से गिराव थे और आपको पता लगेगा  कि संविधान लोकतंत्र की आत्मा है और संसद इसकी संरक्षक है। हमारे संविधान और लोकतंत्र की रक्षा और रक्षा के लिए दृढ़ता से काम करते हुए, यदि आप ऐसा करना चाहते हैं तो एक दिन के लिए भी कभी मत भूलिए, हमेशा याद रखिए। वह काला दिवस है, हमारे इतिहास को कलंकित करने वाला है। आजादी के बाद की हमारी यात्रा का सबसे काला अध्याय, हमारे लोकतंत्र का सबसे काला काल 25 जून 1975 को कभी न भूलें।

इंदिरा गांधी, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने एक भूकंप ला दिया नागरिकों के खिलाफ, नागरिकों के अधिकारों के खिलाफ। 21 महीने तक इस देश ने क्या बर्दाश्त किया। हजारों की संख्या में लोग जेल में डाल दिए गए, कानून का राज कहीं नहीं रहा। तानाशाही क्या होती है वह काल परिभाषित करता है। जो कुछ सपना डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का था वह इस 21 महीने में चकनाचूर कर दिया गया।

यह एक प्रतिशोधी तानाशाही थी और आतंक की गाथा उजागर हुई  थी। मैं चाहता हूं कि युवा लड़के-लड़कियां और छात्र उस अवधि के बारे में अधिक जानें और उस अवधि को कभी न भूलें। यह वह सीख है जो आपको संविधान की रक्षा करने की ताकत देगी। इसी को ध्यान में रखते हुए 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाएगा।

अब हम संविधान दिवस क्यों मनाते हैं ताकि हमें याद रहे कि हमारे संविधान का निर्माण कैसे हुआ, यह कैसे हमारे अधिकारों का सृजन करता है कैसे हमें ताकत देता है, कैसे हमें बल देता है और कैसे ऐसी व्यवस्था पैदा करता है कि साधारण पृष्ठभूमि का व्यक्ति प्रधानमंत्री है, कृषक का पुत्र उपराष्ट्रपति है और महान क्षमता वाली एक आदिवासी महिला, जिन्होंने सब कुछ देखा है, कमी देखी है, जमीनी हकीकत देखी है, वे राष्ट्रपति हैं।

विधि का खेल भी अजीब है। इस मुंबई की भूमि पर 11 अक्टूबर 2015 को, जब प्रधानमंत्री जी एक पुण्य कार्य कर रहे थे, मुंबई में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा, समता स्मारक की आधारशिला रख रहे थे, तब उनके मन में क्या अच्छा ख्याल आया और यहां घोषणा की कि संविधान दिवस मनाया जाएगा। इससे पवित्र मौक़ा कोई नहीं हो सकता था।

मुंबई की भूमि पर, डॉ. बी.आर. अंबेडकर के जन्मदिन, मुंबई में डॉ. बीआर अंबेडकर की प्रतिमा समता स्मारक का शिलान्यास और गजट अधिसूचना किस दिन जारी हुई? बहुत शुभ दिन हुआ, राजपत्र अधिसूचना जारी की घोषणा, 19 नवम्बर 2015 को हुई।

किनका जन्मदिन था? जिन्होंने इमरजेंसी लगाई, बहुत बड़ी सीख है दोनों दिन के अंदर, 11 अक्टूबर को घोषणा, लागू करना 19 नवम्बर को, ताकि हर कोई याद रखे कि जिन्होंने इस देश को अंधकार में डाला, संविधान को धूमिल किया, भावनाओं को कुचला, मौलिक अधिकारों को समाप्त किया लोगों को कालकोठरी में डाल दिया।

उनके जन्मदिन पर एक रौशनी दिखाने वाला काम किया गया।

25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाता है। यह बहुत जरूरी है, आपने वह कालखंड नहीं देखा है, आपको इतिहास का ज्ञान होना चाहिए की 21 महीने में क्या हुआ, अचानक सब कुछ कैसे बदला, कुर्सी बचाने के लिए, सिर्फ कुर्सी बचाने के लिए सब हदें पार कर दी गई, आधी रात को संविधान की जो प्रक्रिया थी उसे इग्नोर करते हुए संविधान की भावना को कुचलते हुए संविधान की मूल भावना पर कुठाराघात करते हुए इमरजेंसी का आदेश जारी किया गया। यह दिल दहलाने वाला था।

इसलिए मैं कहता हूं संविधान हत्या दिवस हमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तानाशाही मानसिकता की याद दिलाता है जिन्होंने आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था और यह प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का भी दिन है, जिसने आपातकाल की ज्यादतियों के कारण पीड़ा झेली, कांग्रेस ने भारतीय इतिहास को सबसे काला दौर दिखाया।

सबसे काला दौर जिसे किसी भी लोकतंत्र ने देखा है। और उस समय बच्चों, अखबारों ने क्या किया? टाइम्स ऑफ इंडिया बॉम्बे संस्करण, मुंबई नाउ ने एक शोक संदेश लिखा “लोकतंत्र से उत्पन्न सत्य के पति, स्वतंत्रता के प्रेममय पिता, विश्वास, आशा और न्याय के भाई का 26 जून को निधन हो गया”। लोकतंत्र मर गया यह टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा।

इंडियन एक्सप्रेस की दिल्ली संस्करण ने 28 जून को अपने संपादकीय की जगह खाली छोड़ दी । स्टेट्समैन नाउ, कोलकाता उस समय के कलकत्ता ने भी यही किया।

युवाओं और मेरे दोस्त यह दिन हमें उन लोगों के योगदान की याद दिलाते हैं जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अवर्णनीय अपमान सहा। इसलिए संविधान हत्या दिवस हमें सीखने देने वाला दिवस है।

संविधान को किताब की तरह नहीं दिखाया जाना चाहिए।

संविधान का सम्मान करना होगा। संविधान को पढ़ना होगा। संविधान को समझना होगा।

मात्र किताब के रूप में संविधान को लेकर दिखाना, इसकी नुमाइश करना, कम से कम कोई भी सभ्य व्यक्ति, जानकार व्यक्ति, संविधान के प्रति समर्पित भावना रखने वाला व्यक्ति, संविधान की आत्मा को पूजने वाला व्यक्ति, स्वीकार नहीं करेगा।

संविधान के 22 भाग हैं जिन्हें 22 पेंटिंग द्वारा चित्रित किया गया है। वह हमारे 5000 साल के इतिहास को दर्शाती है। हमारी मूल्यों का दर्शन करवाती है। ये पेंटिंग सभ्यता के लोकाचार और मूल्यों को दर्शाती हैं। सबसे पहले है संघ और उसका क्षेत्र, इसमें जेबू बुल दिखाया गया है। जेबू बुल का मतलब है सभी शक्तियां एक में निहित हैं, भारत मजबूत रहे, भारत को खंडित करने वाले लोगों का सपना चकनाचूर हो जाए, यह लिखा है और जब हम मौलिक अधिकारों पर जाते हैं तो वह चित्रण क्या है? श्री राम, देवी सीता, श्री लक्ष्मण, भारत के शाश्वत नायक, जो अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक हैं जैसा कि भाग 3 के एक दृश्य में दर्शाया गया है। यह मौलिक अधिकारों में है कि अधर्म हारेगा और धर्म की जीत होगी। हमारी रामायण की पृष्ठभूमि से लिया गया एक महत्वपूर्ण चित्र है।

अब आगे चलते हैं राज्य नीति के निर्देशक तत्व “श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में महाभारत की लड़ाई शुरू होने से पहले किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को ज्ञान के अनंत सागर – भगवद गीता का उपदेश दिया, जो भाग IV – राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में कलाकृति का विषय है।”

“वीर और महान मराठा राजा – छत्रपति शिवाजी महाराज को भाग XV में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है, जो चुनावों से संबंधित है।”

ऐसे दस्तावेज़ों को बिना समझे हुए उनकी आत्मा में जाए बिना, उसको पूजे बिना ऐसे दिखाना गलत है। आज दिखा दिया इस कार्यक्रम ने, कि यह मंदिर है, एक आचरण मांगता है।

जब संविधान के तहत हमें मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। हमारे मूल अधिकार हैं, उसी संविधान में हमारे मौलिक दायित्व भी हैं, और सर्वप्रथम दायित्व क्या हैं?

संविधान का पालन करें और राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करें। स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें तथा भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करें।

कितनी बड़ी विडंबना है, विदेश यात्रा का एक ही उद्देश्य है, इस दायित्व का निर्वहन न करना। सार्वजनिक रूप से भारत के संविधान की आत्मा को तार-तार करना। हमें अपने मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों पर विश्वास करना चाहिए।

मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं, 3 साल की तपस्या के बाद, एक महीना कम था, 18 सेशन में भारत के संविधान का निर्माण हुआ। डॉ बी आर अंबेडकर का अंतिम वक्तव्य वहां नवंबर 25 1949 को था।

डॉ बी आर अंबेडकर ने उस समय बहुत महत्वपूर्ण बात कही हम सबके कान खड़े हो जाने चाहिए, हम लोगों के दिल में वह बात बस जानी चाहिए,  “भारत ने पहले भी एक बार अपने कुछ लोगों की बेवफाई और विश्वासघात के कारण अपनी स्वतंत्रता खो दी थी।”

ऐसा नहीं था कि भारत कभी आज़ाद नहीं था, आज़ाद था, आज़ादी क्यों खोयी? हम में से कुछ लोगों की उनके हिसाब से उनकी बेवफाई थी उनकी गद्दारी थी। आगे कहते हैं, ”क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? क्या भारतीय राष्ट्र को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या वे पंथ को देश से ऊपर रखेंगे? लेकिन इतना तय है कि अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखेंगी तो हमारी आजादी दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी।”

कितनी बड़ी उन्होंने चिंता व्यक्त की है। फिर उन्होंने हमें यह दिशानिर्देश दिया है, हमें एक सीख दी है कि जब ऐसा मौका आए तो मैं उन्हें उद्धृत करता हूं “इस घटना से हम सभी को दृढ़तापूर्वक सावधान रहना चाहिए। हमें अपने खून की आखिरी बूंद से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।”

इससे ज्यादा डॉ. बीआर अंबेडकर क्या कह सकते थे? उन्होंने जो चिंता व्यक्त की है कुछ लोग उसको ज़मीनी हकीकत बना रहे हैं। कुछ देश के अंदर कुछ देश के बाहर। अपने खून की आखिरी बूंद तक हमें उनसे डटकर लड़ना होगा, यह संदेश डॉ. बीआर अंबेडकर का हमारे मन, मस्तिष्क और चित्त पर अमिट होना चाहिए। हमें इन ताकतों से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।’

बच्चों, जब ऐसे काम हमारे सामने आते हैं, जो राष्ट्रविरोधी होते हैं, राष्ट्रवाद के खिलाफ हैं, संविधान का अनादर करते हैं, तो जब हमारे संवैधानिक मूल्यों को चुनौती मिलती है तो हमें बोलना पड़ता है।

अस्मिता पर प्रहार हो तो आवश्यक हो जाता है प्रतिघात। जब देश के अंदर और बाहर हमारे संवैधानिक मूल्यों, लोकतांत्रिक मूल्यों पर इस तरह का सीधा हमला हो रहा हो तो हम चुप्पी साधे नहीं रह सकते।

अब देखिए हम कहां आ गए हैं कितनी शर्मनाक बात है? सर झुक जाता है शर्म से। कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुई भयानक बर्बरता को एक “लक्षणात्मक अस्वस्थता” कहता है। यह कैसा वर्णन है? दूसरा एक अराजकतावादी नारा फेंक रहा है “बांग्लादेश यहां हो सकता है” और दूसरा संवैधानिक पद पर है “संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति द्वारा विदेशी धरती पर समय-समय पर ‘भारत विरोधी बयानबाज़ी’ की जाती है। क्या हम अपने संविधान के ऐसे अपवित्रीकरण को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं या उसका प्रतिकार कर सकते हैं मैं युवाओं से ऐसे कारनामों का खंडन करने का आह्वान करता हूं। वे हमारी भारत माँ पर चोट करते हैं।

मित्रों, राज्य के सभी अंग-न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका उनका एक ही उद्देश्य है संविधान की मूल भावना सफल हो, आम आदमी को सब अधिकार मिलें, भारत फले और फूले।

उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों को पोषित करने और संवैधानिक आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। एक संस्था तभी अच्छी तरह से काम करती है जब उसे कुछ सीमाओं का एहसास हो। कुछ सीमाएँ स्पष्ट होती हैं और कुछ सीमाएँ बहुत बारीक और  सूक्ष्म होती हैं।

यह हमारे राज्य के अंगों की उत्कृष्टता और प्रभावकारिता की घोषणा करता है। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका जैसे पवित्र मंचों पर ऐसी राजनीतिक भड़काऊ बहस या बयानबाजी न हो जो चुनौतीपूर्ण और कठिन माहौल में राष्ट्र की सेवा करने वाली स्थापित संस्थाओं के लिए हानिकारक हो।

हमारी संस्थाएँ, सभी तरह की संस्थाएँ- चुनाव आयोग, जाँच एजेंसियाँ, वे कठिन परिस्थितियों में अपना कर्तव्य निभाती हैं और निरीक्षण उनका मनोबल गिरा सकता है। इससे राजनीतिक बहस शुरू हो सकती है। इससे एक नैरेटिव शुरू हो सकता है। हमें अपनी संस्थाओं के बारे में बहुत सचेत रहना चाहिए। वे मजबूत हैं, वे स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं, और उनमें जाँच और संतुलन है। वे कानून के शासन के तहत काम करती हैं। उस स्थिति में, अगर हम सिर्फ़ कुछ सनसनी पैदा करने के लिए काम करते हैं। मैं संबंधित लोगों से कहूँगा कि राजनीतिक बहस या नैरेटिव का केंद्र बिंदु या उपरिकेंद्र बनना पूरी तरह से टाला जा सकता है।

विदेश में हम सब पहले और आखिरी भारतीय होते हैं। भारतीयता ही हमारी पहचान है। हमारे राष्ट्रवाद के प्रति हमारी भावना झलकनी चाहिए। राष्ट्रहित सर्वोपरि है। राष्ट्र के अहितकारी तत्वों को बढ़ावा देना सरासर अमर्यादित और राष्ट्र धर्म का घोर अपमान है। इन ताकतों को कुंठित करना हमारा परम दायित्व और राष्ट्र धर्म है। जो विपरीत दिशा में हैं उनको चिंतन मंथन करना चाहिए। देश को ध्वंस करने का मानस रखने वालों को सबक़ सिखाना हमारा मक़सद है न कि उनको गले लगाना।

मैं एक अपील के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा, मैं सभी नागरिकों से अपील करता हूँ कि वे राष्ट्र के हित को हमेशा स्वयं से और राजनीति से ऊपर रखें। राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्धता लोकतंत्र का मूल है। यह संविधान का सार और भावना भी है, क्योंकि हम बाहर से और दुर्भाग्य से भीतर से भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

आज हम संकल्प लें कि हम सब मिलकर अपने राष्ट्रवाद के लिए मुखर हों, अपने राष्ट्रवाद के लिए अत्यंत मुखर हों, और संविधान के लिए मुखर हों, क्योंकि यही एकमात्र तरीका है जिससे हम 2047 में भारत को विकसित राष्ट्र बना सकते हैं। 2047 के लिए मैराथन दौड़ जारी है, इस तरह के आयोजनों से यह और तेज़ होगी। जब लोगों के अंदर संविधान की भावना समाहित हो जाएगी, तो वे अपने लिए तो काम करेंगे ही, लेकिन सबसे बढ़कर वे देश के लिए काम करेंगे।

जो पूरे देश में हवन हो रहा है, विकसित भारत के लिए हो रहा है आज आपका यह कदम इसमें बहुत जबरदस्त आहुति है और आप  साधुवाद के पात्र हैं।

मैं माननीय मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे जी और माननीय मंत्री श्री मंगल प्रभात लोढ़ा जी का आभारी हूं कि मुझे एक ऐसा मौका दिया कि मैं उस जगह जहां डॉ. बीआर अंबेडकर ने शिक्षा प्राप्त की थी, वहां इस मशाल को जलाऊँ, जो पूरे देश में जाएगी।

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