उदात्त जीवन की ओर भाग-4
क्योंकि मानवीय मष्तिष्क, मानवीय जीवन तथा मानवीय कार्य-व्यवहार अत्यंत ही जटिल, संश्लिष्ट और निरंतर प्रगतिमान स्वरूप का है। यहाँ इस छोटे से आलेख में उसका पूर्ण रूप से विश्लेषण करना संभव नहीं है। फिर भी, जहाँ प्रश्न हैं वहाँ उत्तर भी खोजे जा सकते हैं।
इस सन्दर्भ में सर्व प्रथम यह समझ लेना चाहिए कि शारीरिक आकार-प्रकार, रंग-रूप, गठन, आदि की दृष्टि से महापुरुषों का कोई विशेष जाति-वर्ग नहीं होता है। बाहरी दृष्टि से सभी सामान्य मनुष्यों की तरह, वे भी सर्व सामान्य जैसे ही होते हैं। हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों में सरहदी गांधी कहलाने वाले ‘बादशाह अब्दुल गफ्फार खां’ छह फीट से भी अधिक ऊंचे थे। उनके हाथ-पैर इतने मोटे थे कि अंग्रेजी पुलिस की लोहे की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ उनको सहज रूप में नहीं पहनाई जा सकतीं थीं। वे उनके हाथ पैरों में हथौड़े से ठोकी जाती थीं। दूसरी ओर महात्मा गांधी का शरीर सामान्य-औसत ऊंचाई का था।
इस क्रम में, लाल बहादुर शास्त्री सिर्फ पांच फीट चार इंच ही ऊंचे थे। उक्त दोनों महापुरुषों की तुलना में शास्त्री महोदय बौने ही थे। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में इसी बौने-से आदमी ने, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रेसीडेंट, जो लगभग साढ़े छः फीट ऊंचे थे, जनरल अयूब खांको, सन् 1965 के युद्ध में धूल चटा दी थी। युद्ध के बाद संधि वार्ता के लिए जब वे ताशकंद में जनरल अयूब खां से पहली बार मिले, तब हाथ मिलाते हुए जो वार्तालाप हुआ, वह यहाँ स्मरणीय है। अयूब खां ने शास्त्रीजी के नाटेपन पर व्यंग करते हुए कहा, शास्त्री जी! आपसे मिलते समय मुझे अपनी गर्दन झुकानी पड़ती है। शास्त्रीजी ने तपाक से छाती तान कर नहले पर दहला मारा- हाँ, खां साहब! याद रखिए मैं तो हमेशा गर्दन तान कर बातें करता हूँ। ये थी हिमालय जैसी ऊंचाई उस नाटे आदमी की। इसी तरह भारत रत्न महर्षि धों. के. कर्वे भी पांच फीट दो इंच के ही थे। परन्तु संपूर्ण एशिया में महिलाओं की शिक्षा-दीक्षा के लिए, पहले विश्व विद्यालय- श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी महिला विश्व विद्यालय, मुंबई की स्थापना कर के उन्होंने समय की छाती पर हमेशा के लिए एक मील का पत्थर गाढ़ दिया। तात्पर्य यही है कि बाहरी रूप से महापुरुषों की कोई विशेष पहचान नहीं हो सकती।
महापुरुष वही कहलाता है जिसने महान कार्य किए हों। अब महान कार्य के सन्दर्भ में भी प्रश्न उठाया जा सकता है, कौन सा कार्य महान है और कौन सा नहीं? इसका उत्तर भी ऊपर की तरह ही है। बाहरी तौर से महान कार्यों की भी कोई अलग से श्रेणी या सूची नहीं हो सकती। मानव जीवन का प्रत्येक कार्य महान है और वही छोटा भी है। हत्या करने वाले डाकुओं को पकड़ कर फाँसी पर लटकाया जाता है और दूसरी ओर युद्ध में अधिकाधिक दुश्मनों की हत्या करने वाले सैनिकों को परम वीर चक्र से पुरस्कृत किया जाता है।
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