उदात्त जीवन की ओर (भाग-3)

उदात्त जीवन की ओर (भाग-3)

उस समय में भी भारत के अंदर सैकड़ों रानियाँ थीं। लक्ष्मीबाई से अधिक वैभव तथा साधन संपन्न एवं चतुर भी थीं। अंग्रेज भी थे और उन्होंने जो लक्ष्मीबाई के साथ अन्याय का व्यवहार किया था, वैसा व्यवहार वे और भी अनेक राजाओं-रानियों तथा बादशाओं, नबावों और बेगमों के साथ कर चुके थे। तमाम राजाओं के राज्यों को उन्होंने किसी न किसी बहाने से छीन लिया था। रानियों और बेगमों के साथ अत्यंत अपमान का व्यवहार किया था। इन बातों के तमाम उल्लेख उस काल खंड के अखबारों में भरे पड़े हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर कविता, ‘खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसीवाली रानी थी’ में इन बातों के संकेत मिलते हैं-
रानी रोवें रनवासों में बेगम गम से थीं बेजार। उनके गहने-कपड़े बिकते कलकत्ते के बीच बजार। सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार। कानपुर के गहने ले लो, लखनऊ के लो नौ लख हार।

लेकिन रानी लक्ष्मीबाई को छोड़ कर किसी की हिम्मत नहीं हुई, अंग्रेजों के खिलाफ तलवार उठाने की। रानी अन्याय सहन करके, रोते हुए बैठी नहीं रहीं। वे अन्याय के साथ समझौता करने को राजी नहीं हुईं। वे गरजते हुए उठ खड़ी हुईं, मेरी झांसी, मैं नहीं दूंगी। अन्य रानियों और बेगमों की तरह, आंसू बहाने की अपेक्षा उन्होंने अपने जीवन का बलिदान करना अधिक उचित समझा। अत: अन्याय के विरुद्ध, हिम्मत के साथ उठ खड़े होने की यह जो प्रतिक्रया है, वह महत्वपूर्ण है। लक्ष्मीबाई जैसा बनने के लिए रानी होना आवश्यक नहीं और न लड़ाई के लिए अंग्रेजों का होना जरूरी है। जरूरी है, अन्याय के खिलाफ, अशुभ के खिलाफ, अमंगल के खिलाफ और जीवन की नकारात्मकता, निराशात्मकता तथा निष्क्रियता जैसे दुर्गुणों के खिलाफ उठ खड़े होने की हिम्मत का होना। कभी-कभी समाचार पत्रों में पढ़ने मिलता है कि किसी युवती ने दहेज माँगने वाले दूल्हे और उसके पिता को अपने दरवाजे पर आई हुई बरात के साथ बैरंग वापस कर दिया। लाख समझाने पर भी वह लालची दूल्हे के साथ विवाह रचाने को तैयार नहीं हुई। यह जो हिम्मत है, यह जो अपने आप विचार करने की क्षमता है और अपने विवेक पूर्वक किए गए फैसलों पर डटे रहने की दृढ़ता है, ऐसी ही विभिन्न प्रकार की और भी विशेषताएँ हैं, जो किसी भी युवती को रानी लक्ष्मीबाई की तरह बना सकती हैं और किसी भी युवक को विवेकानंद या सुभाष या शहीद भगत सिंह जैसी गरिमा प्रदान करा सकती हैं।

अब प्रश्न यह उठाता है कि ऊपर जिन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है, क्या वे जन्म जात होती हैं? क्या वे सीखी-सिखाई जा सकती हैं? या विकासित की जा सकती हैं? यदि वे विकसित की जा सकती हैं तो कैसे? इन सभी प्रश्नों के उत्तर गणित की भाषा-दो और दो चार की तरह तो नहीं दिए जा सकते।

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