आईपीएफ योजना के माध्यम से मुफ्त इलाज देने से इनकार करनेवाले अस्पतालों पर प्रतिबंध व उनका लाइसेंस रद्द किया जाए : उमेश चव्हाण

आईपीएफ योजना के माध्यम से मुफ्त इलाज देने से इनकार करनेवाले अस्पतालों पर प्रतिबंध व उनका लाइसेंस रद्द किया जाए : उमेश चव्हाण

मरीजों के हित में रुग्ण हक्क परिषद मैदान में, जिलाधिकारी कार्यालय पर किया गया ढोल बजाओ आंदोलन

पुणे, दिसंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज़ नेटवर्क)
रुग्ण हक्क परिषद पुणे शहर कमेटी की ओर से पुणे जिलाधिकारी कार्यालय पर ‘ढोल बजाओ आंदोलन’ करते हुए जोरदार निदर्शन किया गया। उक्त आंदोलन का नेतृत्व रुग्ण हक्क परिषद के संस्थापक अध्यक्ष उमेश चव्हाण ने किया।

इस समय हुए आंदोलन में रुग्ण हक्क परिषद की पुणे शहराध्यक्षा अपर्णा मारणे साठ्ये, अनिल गायकवाड, कविता डाडर, रवींद्र चव्हाण, नितिन चाफलकर, प्रभा अवलेलू, अर्चना म्हस्के, किरण कांबले, झुंबर म्हस्के, मंदा साठे, जैनुद्दीन शेख, धनंजय टिंगरे, राजाभाऊ कदम, रोहिदास किरवे, संतोष चव्हाण, दिनेश गजधने, शंकर रोकडे आदि के साथ दो सौ से अधिक रुग्ण हक्क परिषद के कार्यकर्ता उपस्थित थे।

रुग्ण हक्क परिषद के संस्थापक अध्यक्ष उमेश चव्हाण ने इस अवसर पर कहा कि इस समय निम्न प्रमुख माँगें लेकर हमने आज जिलाधिकारी कार्यालय पर ढोल बजाओ आंदोलन किया है। हमारी मांग यह है कि धर्मार्थ अस्पतालों में मरीजों को काफी पीड़ा होती है, आईपीएफ योजना के माध्यम से मुफ्त इलाज का अनुरोध करने पर मरीजों के रिश्तेदारों को अत्यधिक मनस्ताप का सामना करना पड़ता है। मजबूरन अस्पताल से डिस्चार्ज लेने के लिए मजबूर किया जाता है। इस गंभीर मामले पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। संबंधित अस्पतालों के खिलाफ तुरंत आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए। आधार कार्ड, राशन कार्ड, आय प्रमाण, अस्पताल का अनुमान, मरीज का फोटो आदि दस्तावेज़ जमा करने के बाद सह धर्मदाय आयुक्त के कार्यालय को तुरंत धर्मार्थ अस्पतालों को मुफ्त इलाज के लिए लिखित आदेश जारी करना चाहिए। पुणे जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा अस्पतालों को मुफ्त इलाज के लिए एक पत्र दिया जाता है, लेकिन पुणे जिलाधिकारी के उक्त पत्र को देखने के बाद मरीजों के साथ बुरा और अपमानजनक व्यवहार धर्मार्थ अस्पतालों में किया जाता है। यह ध्यान में रखते हुए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि महंगाई और मंदी के दौर में दो से तीन लाख रुपये का बिल चुकाना मुश्किल है, जबकि लीवर प्रत्यारोपण, किडनी प्रत्यारोपण, हृदय प्रत्यारोपण और फेफड़े के प्रत्यारोपण जैसी गंभीर बीमारियों के लिए 25-30 लाख रुपये का खर्च आता है। ऐसे मरीजों को अस्पताल लूटने के लिए तैयार रहते हैं। इन मरीजों पर दृढ़ता से आईपीएफ योजना से मुफ्त इलाज मिलना चाहिए, इसके लिए तत्काल गंभीर एवं त्वरित कदम उठाने चाहिए। सह धर्मादाय आयुक्त पद पर नए लोकाभिमुख, ऐसे व्यक्ति को अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिए जो जनता के मुद्दों के प्रति संवेदनशील हो। आईपीएफ योजना के माध्यम से मुफ्त इलाज करने से इनकार करनेवाले अस्पतालों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। अस्पताल चलाने का उनका लाइसेंस रद्द किया जाना चाहिए। जो अस्पताल आईपीएफ योजना के तहत मुफ्त इलाज देने से इनकार करते हैं, उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।

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