उदात्त जीवन की ओर भाग-7

उदात्त जीवन की ओर भाग-7

किन्तु विरासती महानता को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति बिरले ही होते हैं। देखा यही गया है कि मानवीय जीवन की उपरोक्त उच्च मानसिक अवस्था को प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को स्वयं ही साधना के सँकरे, फिसलन भरे और कँटीले रास्ते पर निरंतर चलना पड़ता है। घने अंधकार में दीप शिखा की तरह तिल-तिल कर जलना पड़ता है। भगवत गीता का वचन है कि, या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति सयंमी। अर्थात संपूर्ण प्राणियों के लिए जो रात है, उस समय संयमी-ध्येयवादी पुरुष जागा हुआ रहता है। इसी बात को अंग्रेजी में कहा जाता कि, when the whole world was sleeping, the great men were creeping towards their aims कहने का तात्पर्य यही है कि जब सारी दुनिया के लोग, मौज-मस्ती के साथ गफलत भरा जीवन जी रहे होते हैं, तब भविष्य के महापुरुष अपने उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु, घनघोर संघर्ष के बीच, पूरे होश हवास के साथ चींटी चाल से ही क्यों न हो, आगे बढ़ रहे होते हैं।

यहाँ ‘तिल-तिल कर जलने’ और ‘चींटी चाल चलने’ में जो लाक्षणिकता है उसका थोड़ा स्पष्टीकरण आवश्यक लगता है-
ऊपर मनुष्य जीवन की जिन नकारात्मक प्रवृत्तियों का उल्लेख किया गया है, उनसे छुटकारा पाने में, अर्थात उनको सकारात्मक रूप में परिवर्तित करने के लिए, अपने ही मन के खिलाफ जब किसी व्यक्ति को जो क्षण-क्षण संघर्ष करना पड़ता है, कष्ट उठाना पड़ता है, तथा अपने आप से ही युद्ध करना पडता है, उसी का अर्थ है तिल-तिल कर जलना। इसी तरह सकारात्मक प्रवृत्तियों को अपनाने में विफलताओं तथा बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी ये असफलताएं और बाधाएं बड़ी भयंकर और अपमान दायक होती हैं। फिर भी गंभीर सहनशीलता के साथ धैर्य पूर्वक निरंतर प्रयत्न में लगे रहना पड़ता है।

प्रयत्न में लगे रहने के कारण सुख-सुविधाओं को तिलांजली देनी पड़ती है। सगे संबंधियों की अपेक्षाओं को भंग होना पड़ता है, जिसके कारण परिवार-परिवेश में तनाव उत्पन्न होता है। परिणामत: खीज, चिढ़, आक्रोश-क्रोध का साम्राज्य पसरने लगता है। क्रोध के साम्राज्य का अर्थ है-युद्ध अर्थात विध्वंश। संत श्रेष्ट तुकाराम महाराज इसलिए ही कहते हैं कि, रात अन् दिवस आम्हा युद्धाचा प्रसंग। अर्थात दिन-रात हमारे भीतर युद्ध चल रहा है। इस सबका सामना करने के लिए व्यक्ति को धरती जैसी सहन शीलता, आकाश जैसी विशालता (उदारता) और सागर जैसी गंभीरता अपनानी पड़ती है।

इस प्रकार विघ्न-बाधाओं के बीच आगे बढ़ने की गति थोड़ी देर के लिए यदि (चींटी चाल जैसी) धीमी भी पड़ जाए तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। मंडाले की जेल में लो. तिलक ने गीता रहस्य किन विपरीत परिस्थितियों में और किन असुविधाओं में लिखा, यह उनकी जीवनी को विस्तार से पढ़ने पर ही जाना जा सकता है।

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