गंधर्वपुरी में दो विशाल पुरातन प्रतिमाएँ और उनके परिकर

गंधर्वपुरी में दो विशाल पुरातन प्रतिमाएँ और उनके परिकर

गंधर्वपुरी के संग्रहालय परिधि में तीर्थंकरों की दो विशाल प्रतिमाएं हैं, इनमें एक मूर्ति माताजी के मंदिर के पीछे एक टूटे मकान में जमीन में धंसी हुई खड़ी थी। इसे निकाले जाने पर विशाल निकली और इसी के साथ इसके दोनों ओर के चामरेन्द्रों की प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुईं। इसे कोई शान्तिनाथ तो कोई महावीर की प्रतिमा बताते रहे हैं।


तीर्थंकर ऋषभनाथ की सपरिकर बड़ी प्रतिमा –
यह मूर्ति संग्रहालय में जमीन पर पड़ी कायोत्सर्ग मुद्रा में है। यह परिकर सहित लगभग 15-16 फीट की है। वर्तमान में यह संग्रहालय परिसर मेंे प्रवेश करते ही बांयें ओर बाड़े में सीधी लेटी हुई कच्ची जमीन पर रखी है। इसका पादपीट और वितान छत्र, माल्यधारी आदि भग्न हैं जो इस शिलाखण्ड के साथ नहीं हैं। भूरे बलुआ पाषाण से निर्मित यह प्रतिमा बहुत सुन्दर है। कायोत्सर्गासनस्थ इस मूर्ति के परिकर में आसन के समानान्तर दोनों ओर यक्षी की प्रतिमाएँ हैं। दायीं ओर ललितासन में बैठी हुई यक्षी है। पाषाण क्षरित हो जाने से इसकी नक्कासी अधिक स्पस्ट नहीं है, तथापि दायें पैर पर बालक को बैठाये हुए, आम्रमंजरी, पत्र, फल गुच्छक आदि स्पष्ट देखे जा सकते हैं, जिससे ज्ञात होता है कि यह अम्बिका यक्षी की प्रतिमा है। मूलनायक तीर्थंकर प्रतिमा के बायें ओर भी यक्षी की मूर्ति ही है, यह भी ललितासन में बैठी है। चार भुजाओं वाली इस देवी के ऊपर के दो हाथों में चक्र हैं, दो अन्य भुजाएँ भग्न हैं। यह चक्रेश्वरी यक्षी संभाव्य है।
विशाल प्रतिमा के वक्ष पर सुन्दर श्रीवत्स है, दोनों ओर स्कंधों के पास का प्रभामण्डल अवशिष्ट है, उसका शेष भाग भी संग्रहालय परिसर में ही संरक्षित है। इस प्रतिमा के स्कंधों पर सुंदर केश लटकते हुए दर्शाये गये हैं, उनमें से तीन-तीन लटें कंधों पर आगे को लटकती हुई भी उत्कीर्णित हैं। इससे स्पष्ट है कि यह प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ भगवान की है। पादपीठ के निकट चक्रेश्वरी यक्षी की मूर्ति भी इसे आदिनाथ की मूर्ति ही स्थापित करती है।

द्वितीय विशाल प्रतिमा और विशाल प्रतिमाओं के परिकर-  स्थानीय संग्रहालय परिसर में ही बलुआ पाषाण की विशाल प्रतिमा कच्ची जमीन पर लेटी हुई रखी है। इस कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा के चरण व पादपीठ भग्न और अनुपलब्ध हैं, परिकर भी नहीं है, अतः यह प्रतिमा किन तीर्थंकर की है, यह निर्धारण नहीं किया जा सकता। अनुपलब्ध भाग सहित इसका उत्सेध लगभग 17-18 फुट रहा होगा। यह साढ़े 4 फुट चौड़ी  है।  यहाँ के परिसर में एक विशाल प्रभामण्डल का शेष भाग है उसकी नक्काशी और आकार से इस प्रतिमा का भग्न अवशिष्ट प्रभामण्डल मेल खाता है। इस प्रभामण्डल के ऊपर त्रिछत्रावली है और उसपर दुंदुभिवादक, संगीतमण्डली और गगनचर हैं, सभी खण्डित हैं, वह इसका ही भाग है।

चामरेन्द्र युगल- जो एक बड़ी प्रतिमा निकट के मकान में आधी जमीन में धंसी हुई मिली थी, कहते हैं जब उसकी खुदाई हुई तो उसके निकट जमीन में दो बड़े-बड़े प्रतिहारी-चॅवरवाहक भी प्राप्त हुए थे, इन्हें चामरेन्द्र भी कहा जाता है। वे भी इसी संग्रहालय में संग्रहीत हैं। सुन्दर नक्कासी द्वारा इन्हें आभूषणों से भूषित किया गया है। पैरों और कलाइयों में कड़े, सुन्दर अधोवस्त्र का पटका, कटिसूत्र, भुतबंध, भुजमाल, वनमाला, यज्ञोपवीत, गलहार, कंठी, स्तनसूत्र, कर्णावतंस, शिरोमुकुट आदि अलंकरणों से अलंकृत हैं।

विशाल वितान भाग- वितान अर्थात् प्रतिमा के परिकर का स्कंधों से ऊपर का शिल्पांकन। यह वितान भाग भी किसी विशाल प्रतिमा का है। इसमें सुन्दर तीन छत्र उत्कीर्णित हैं, दोनों ओर अभिषेक-गजलक्ष्मी के सवारयुक्त गज हैं, त्रिछत्र पर मृदंगवादक है, उसके दोनों ओर माल्यधारी देव उत्कीर्णित हैं और दुंदुभिवादक के ऊपर के स्थान में एक देवकुलिका में पद्मासनस्थ लधु जिन प्रतिमा उत्कीर्णित है।

पादपीठ- परिसर में ही यहाँ परकोटा के सहारे एक बड़ा पादपीठ रखा है, उसके ऊपर एक लघु प्रतिमा रखी है। यह पादपीठ भी इन्हीं दो बड़ी प्रतिमाओं में से एक का संभव है। इस पादपीठ में मध्य में धर्मचक्र है, उसके दोनांे ओर सामने की ओर अग्रसित एक-एक गज है, उनके उपरान्त दोनों ओर एक-एक सिंह बैठा हुआ उत्कीर्णित है, तदोपरान्त दायें ओर यक्ष तथा बायें तरफ यक्षी है। दोनों चतुर्भुज हैं। यक्ष का मुख गाय के समान होने से यह प्रथम तीर्थंकर का यक्ष गोमुख प्रतीत होता है। बीच-बीच में स्तंभ उत्कीर्णित होने से सभी पादपीठस्थों की स्वतंत्र देवकुलिकाएँ हो गई हैं।

विश्लेषण- 1. दोनों प्रतिमाएँ बहुत सुन्दर हैं। बड़ी प्रतिमाओं के परिकर के चॅवरधारी आदि अलग शिलाओं में बनाकर उनके साथ स्थापित किये जाने की परम्परा भी रही है, परिसर में प्राप्त दो बड़े चॅवरधारी प्राप्त दो प्रतिमाओं में से किसी एक के संभाव्य हैं।
2. तीर्थंकर ऋषभनाथ-प्रतिमा के साथ आदिनाथ के यक्ष-यक्षी नहीं बल्कि केवल इनकी यक्षी चक्रेश्वरी उत्कीर्णित की गई है। दायीं ओर तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी अम्बिका का अंकन है, जिसकी गोद में उसका शिशु दर्शाया गया है। अम्बिका और चक्रेश्वरी ही ऐसीं यक्षी हैं जिनकी भारी संख्या में स्वतन्त्र मूर्तियाँ निर्मित होने लगीं थीं और उनकी स्वतंत्र देवी के रूप में आराधना होने लगी थी। गंधर्वपुरी में ही 20 भुजाओं वाली एक सुन्दर सपरिकर चक्रेश्वरी यक्षी की प्रतिमा उपलब्ध है तथा चक्रेश्वरी यक्षी की तो पाँच सपरिकर स्वतंत्र सुन्दर मूर्तियाँ इसी संग्रहालय में संरक्षित हैं। अतः अम्बिका यक्षी की लोकप्रियता के कारण ही उसे तीर्थंकर ऋषभनाथ की बड़ी प्रतिमा के परिकर में स्थान दिया गया होगा।

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