दिवाली : मानवता के प्रकाश का पर्व
दीपों का पर्व दिवाली हर वर्ष नई आशा, उल्लास और प्रेम का संदेश लेकर आता है। यह एक ऐसा अवसर है जब घर-घर दीप जलते हैं, अंधकार छटता है और हृदय की गहराइयों में उत्साह का संचार होता है, लेकिन क्या हम कभी विचार करते हैं कि इस बाहरी प्रकाश के साथ-साथ हमारे भीतर के अंधकार को भी दूर करना कितना आवश्यक है? जाति-धर्म, ऊंच-नीच के भेदभाव ने हमारे समाज में जो अंधकार फैला रखा है, उसे मिटाकर ही हम सही मायनों में दिवाली का पर्व मना सकते हैं।
दिवाली का प्रकाश सिर्फ घर के आंगन में ही नहीं, बल्कि हर दिल में जगना चाहिए। हमें ऐसी दिवाली मनानी चाहिए जहां राम और रहीम दोनों एक ही दिल में बसें, हर व्यक्ति का मन बिना किसी भेदभाव के प्रेम से भरा हो। आखिरकार, सभी धर्म प्रेम, करुणा और भाईचारे की ही शिक्षा देते हैं तो क्यों न इस दिवाली पर हम उस प्रेम और करुणा को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं?
आज, हमारे समाज में जाति और धर्म के नाम पर एक-दूसरे से दूरियां बढ़ती जा रही हैं। इन दूरियों को पाटने का समय आ गया है। दिवाली के इस पावन अवसर पर हम सबको मिलकर यह संकल्प लेना चाहिए कि नफरत की दीवारों को गिरा कर, हम मानवता की दीवार खड़ी करेंगे। जैसे दीप अंधकार को दूर करता है, वैसे ही हम हर प्रकार के भेदभाव को अपने दिल से निकाल फेंकें।
दिवाली का वास्तविक आनंद तब ही मिलेगा जब हमारे पड़ोस के गरीब का घर भी इसी उजाले में नहाएगा। जिस तरह एक दीप दूसरे दीप को जलाकर रोशनी फैलाता है, उसी तरह हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार दूसरों के जीवन में भी उजाला भरना होगा। हमें यह समझना होगा कि असली दिवाली केवल अपने घर को सजाने में नहीं, बल्कि किसी जरूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान लाने में है।
हमारे राष्ट्र की सच्ची दिवाली तभी होगी जब हर इंसान को अपने हक और सम्मान की रोशनी मिलेगी। यह रोशनी केवल धन-दौलत की नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की भी होनी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर घर में एक दिया जल सके, हर बच्चे के हाथ में किताब हो, हर बीमार को उपचार मिले और हर गरीब के पास एक बेहतर जीवन का सपना हो।
दिवाली का यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि समाज के हर व्यक्ति में एक समानता का भाव होना चाहिए। किसी का दिल दुखाकर, किसी की जरूरतों को अनदेखा करके हम खुद को खुश कैसे महसूस कर सकते हैं? राम और रहीम की महिमा केवल मंदिर-मस्जिद में नहीं, बल्कि हर उस इंसान के दिल में बसी है जो इंसानियत को सर्वोच्च मानता है। हमें इस दिवाली पर इस भावना को आत्मसात करना है कि धर्म का असली रूप मानवता है।
अगर हम दिवाली पर सिर्फ अपने परिवार के साथ खुशियां मनाएं, लेकिन समाज के वंचित और कमजोर तबके के दर्द को अनदेखा कर दें, तो यह अधूरा उत्सव होगा। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी खुशियों का दीपक तभी स्थायी रूप से जलता रहेगा जब हम किसी और के जीवन में रोशनी लाने का प्रयास करेंगे। आइये, इस दिवाली पर एक ऐसा दिया जलाएं जो समाज के अंधेरे कोनों तक पहुंचे।
हमारी दिवाली का त्यौहार केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक अवसर है। यह अवसर है स्वयं को, अपने समाज को और अपने देश को नयी दिशा देने का। यह दिशा होनी चाहिए आपसी समझदारी, प्रेम और एकता की। हर दिल में भारत के तिरंगे का सम्मान हो, हर मन में देशभक्ति का दीप जले और हमारी राष्ट्रीय एकता हमेशा बनी रहे।
आइए इस पवित्र अवसर पर संकल्प लें कि हम देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखने के लिए जात-पात, ऊंच-नीच और धर्म के भेदभाव को मिटाकर आगे बढ़ेंगे। जब हम अपने भीतर के अंधकार को दूर करेंगे, तभी हमारे समाज में वास्तविक प्रकाश फैलेगा। यही सच्चे अर्थों में दिवाली का संदेश है।
अंत में, दिवाली के इस पर्व पर हर इंसान का घर रोशन हो, हर दिल में प्रेम का दीप जले और मानवता का उजाला हर दिशा में फैल जाए। तभी यह पर्व अपने उद्देश्य को पूरा करेगा और हमें सही मायने में दिवाली की खुशियों का आभास होगा।
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