बिजली होगी सस्ती.. लेकिन महावितरण का आर्थिक प्रभाव बिजली उपभोक्ताओं पर निर्भर
बिजली होगी सस्ती.. लेकिन महावितरण का आर्थिक प्रभाव बिजली उपभोक्ताओं पर निर्भर
बिजली दिन-ब-दिन महंगी होती जाएगी, इस धारणा पर विराम लगाते हुए इस साल पहली बार महावितरण ने अगले पांच साल तक बिजली की दरें नहीं बढ़ाने, बल्कि दरें कम करने का प्रस्ताव दाखिल किया गया है। बिजली उपभोक्ताओं को वित्तीय राहत प्रदान करनेवाला यह प्रस्ताव कई सुविधाएँ प्रदान करता है। इसमें प्रति माह 100 यूनिट बिजली का उपयोग करनेवाले राज्य के 75 प्रतिशत घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के लिए अगले पांच वर्षों में बिजली दर में 23 प्रतिशत की कमी की जाएगी तो 100 से 300 यूनिट बिजली का उपयोग करनेवाले घरेलू उपभोक्ताओं के लिए अगले वर्ष को छोड़कर लगातार चार वर्षों तक बिजली शुल्क में 12 प्रतिशत की कमी की जाएगी।
इसके साथ ही घरेलू उपभोक्ताओं को ‘टीओडी’ मीटर के माध्यम से सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक की बिजली उपयोग में प्रति यूनिट 80 से 1 रुपये तक की छूट का प्रस्ताव दिया गया है। इसके साथ ही उद्योगों पर से क्रॉस सब्सिडी का बोझ हटने से बिजली दरें सस्ती हो जाएंगी।
वर्ष 2025-26 से वर्ष 2029-30 तक बहुवर्षीय विद्युत दर निर्धारण के प्रस्ताव से विद्युत उपभोक्ताओं को आर्थिक राहत मिलेगी तो दूसरी ओर सरकारी स्वामित्ववाली कंपनी महावितरण को भी बिजली उपभोक्ताओं को वित्तीय राहत देनी होगी। इसके लिए बिजली उपभोक्ताओं का एकमात्र प्राथमिक कर्तव्य है कि वे हर माह नियमित रूप से बिजली बिल का भुगतान करें। महावितरण का पूरा वित्तीय प्रभाव बिजली बिलों की वसूली पर निर्भर है। आज कोई भी व्यक्ति बिजली के बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता। 24 घंटे बिजली की जरूरत है, इसलिए बिजली बिल भुगतान को अधिक प्राथमिकता दिये जाने की उम्मीद है।
उपभोक्ताओं के लिए हर महीने नियमित रूप से बिजली बिल का भुगतान करना क्यों आवश्यक है जब मुख्य बात यह है कि महावितरण स्वयं बिजली उत्पन्न नहीं करता है। यह विभिन्न बिजली उत्पादन कंपनियों से बिजली खरीदता है और मांग के अनुसार सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं को आपूर्ति करता है। बिजली आपूर्ति और ग्राहक सेवा प्रदान करनेवाली महावितरण कंपनी स्वयं एक उपभोक्ता है। महावितरण महानिर्मिति और अन्य निजी बिजली कंपनियों से बिजली खरीदता है। इस बिजली को सबस्टेशनों तक पहुंचाने के लिए महापारेषण को ट्रांसमिशन का आकार देना होता है।
बिजली बिल का लगभग 80 से 85 प्रतिशत राशि बिजली खरीद, पारेषण लागत आदि पर खर्च होता है। फिर ठेकेदारों का मासिक बकाया, नियमित व बाह्य स्रोत कर्मचारियों का वेतन, कार्यालय व्यय, विभिन्न कर, दिन-प्रतिदिन के रखरखाव और मरम्मत कार्य और ब्याज सहित ऋण की किश्तें देनी होती हैं। इन सबका भुगतान बिजली उपभोक्ताओं द्वारा चुकाए गए बिजली बिल की राशि से किया जाता है।
महावितरण एक सार्वजनिक स्वामित्ववाली कंपनी है, इसलिए न कोई लाभ, न कोई हानि (रेव्हेन्यू न्यूट्रल) आधार पर बिजली आपूर्ति और ग्राहक सेवा प्रदान की जाती है, लेकिन एक उपभोक्ता के रूप में महावितरण पर बिजली खरीद, पारेषण की लागत और विभिन्न ऋणों और उनकी किस्तों के लिए करोड़ों रुपये की देयता है, लेकिन बिजली बिल का बकाया बढ़ता जा रहा है यह तथ्य (वस्तुस्थिति) है। महत्वपूर्ण बात यह है कि बिजली दरें तय करने का महावितरण या किसी अन्य बिजली कंपनी को कोई अधिकार नहीं है। प्रस्तुत किए प्रस्तावों पर जनसुनवाई कर महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग द्वारा बिजली दरें तय की जाती हैं।
सभी घरेलू, व्यवसायी, औद्योगिक व अन्य उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग की जानेवाली बिजली के लिए माननीय आयोग द्वारा निर्धारित दर के अनुसार महावितरण द्वारा बिल लगाया जाता है, लेकिन अगर बिजली बिल का बकाया बढ़ता है, तो महावितरण को कई वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ता है। हर किसी को यह समझना चाहिए कि बिजली बिल यानी नागरिकों पर लगाया गया किसी भी प्रकार का निश्चित या निर्धारित सरकारी या स्थानीय सरकार का कर नहीं है। बिजली बिल उपभोक्ता द्वारा वास्तव में उपभोग की गई बिजली का शुल्क है।
बिजली कनेक्शन अगर लिया ही नहीं तो बिजली बिल या बिजली शुल्क चुकाने का सवाल ही नहीं उठता है। साथ ही बिजली कनेक्शन लेने के बाद भी बिजली का उपयोग नहीं करने पर केवल निर्धारित राशि ही चुकानी होती है, इसलिए आवश्यक रहनेवाली बिजली का उपयोग उपभोक्ता द्वारा होने पर ही उससे होनेवाला बिजली शुल्क यानी कि बिजली बिल होता है।
बिजली अब बुनियादी जरूरत बन गयी है। भोजन, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी बिजली महत्वपूर्ण है। घर का टीवी, फ्रिज, मोबाइल, बच्चों की पढ़ाई, कर्मचारियों के ऑनलाइन काम, घरेलू उपकरण आदि सभी बिजली पर निर्भर हैं। एक महीने तक बिजली का उपयोग करने के बाद हर महीने बिल का भुगतान करना अपेक्षित व आवश्यक भी है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि एक बहुत ही बुनियादी आवश्यकता बन गई बिजली बिल चुकाने को अन्य खर्चों की तुलना में अधिक प्राथमिकता नहीं दी जाती है, इसलिए बिजली बिल का बकाया कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है।
कई ग्राहकों को ऐसा भी लगता होगा कि इस महीने का केवल 400-500 रुपये बिजली बिल है। अगले महीने में भुगतान कर देंगे, लेकिन 400-500 रुपये का बिजली बिल रहनेवाले ग्राहक हजारों की संख्या में रहते हैं। उन्होंने बिल भुगतान नहीं किया तो बकाया करोड़ों तक पहुंच जाता है।
पुणे परिमंडल में करीब 38 लाख 25 हजार बिजली उपभोक्ता हैं, लेकिन महीने के अंत में औसतन 7 लाख 15 हजार घरेलू, व्यवसायी व औद्योगिक ग्राहकों पर 205 से 210 करोड़ रुपये का औसतन बकाया रहता है। इससे पता चलता है कि घरेलू बकाएदारों की संख्या सबसे अधिक 6 लाख है और बकाया लगभग 135 करोड़ है, इसलिए मुख्य रूप से घरेलू के साथ अन्य बिजली उपभोक्ताओं ने अपने बिजली बिलों का नियमित भुगतान करके महावितरण को सहयोग करने की वास्तविक आवश्यकता है।
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