डॉ. सत्येंद्र सिंह का कविता संग्रह “मैं कविता नहीं करता” विमोचित

डॉ. सत्येंद्र सिंह का कविता संग्रह "मैं कविता नहीं करता" विमोचित

डॉ. सत्येंद्र सिंह का कविता संग्रह “मैं कविता नहीं करता” विमोचित

डॉ.सत्येंद्र सिंह का कविता संग्रह “मैं कविता नहीं करता” विमोचित

पुणे, दिसंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
पत्रकार भवन में गत 8 नवंबर को एक साथ दो आयोजन हुए। एक हिंदी आंदोलन परिवार की 301वीं मासिक गोष्ठी और डॉ.सत्येंद्र सिंह के कविता संग्रह “मैं कविता नहीं करता” का विमोचन।  दीप प्रज्वलन के बाद घोष गीत ‘इतनी शक्ति देना हमें दाता’ के सामूहिक गान के पश्चात कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिसके  अध्यक्ष थे महाराष्ट्र राज्य हिंदी  समिति के सदस्य और बालभारती के वरिष्ठ सदस्य एवं “दोहा रामायण” के रचयिता डॉ. प्रमोद शुक्ल और संचालन कर रहे थे विख्यात कवि,लेखक,समिक्षक, चिंतक  और हिंदी आंदोलन परिवार के अध्यक्ष संजय भारद्वाज। कार्यक्रम में उपस्थित  थे मध्य रेल के पूर्व उप महाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ.विपिन पवार तथा हड़पसर एक्सप्रेस के संपादक दिनेश चंद्रा। उनके साथ मंच पर डॉ. सत्येंद्र सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती रामेश्वरी सिंह, सुप्रसिद्ध साहित्यकार नंदिनी नारायण । और उपस्थित थे नगर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार।
 “मैं कविता नहीं करता” के विमोचन के समय संजय भारद्वाज ने संग्रह की समीक्षा करते हुए उसे कॉमन मैन की कविताएं बताया और कहा कि कहा कि इस आम आदमी का कहना कि मैं कविता नहीं करता, एक अर्थ में सही है। उनके शब्द सहज हैं, सरल हैं। इनमें भाव हैं, ये अनुभव से उपजे हैं। ये प्राकृतिक रूप से उमगे हैं, इन्हें कविता में लिखने का प्रयास नहीं किया गया है और इस संग्रह में रचनाओं के शब्द इतने व्यापक और प्रखर हैं कि व्यक्तिगत होते हुए भी इनका भावजगत , इनकी ईमानदारी, इन्हें समष्टिगत कर देती है। तब कहना पड़ता है कि ‘यह आदमी करता है कविता ‘।  डॉ. विपिन पवार ने कहा कि डॉ. सत्येंद्र सिंह की कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस एवं सीधे दिल में उतरने वाली है। कहीं कोई बनावटीपन, कृत्रिमता एवं अस्वाभाविकता नहीं है। विषयवस्तु में पर्याप्त गुरुता एवं गंभीरता होने के बाद भी भाषा के इस सौष्ठव एवं लालित्य के कारण लगता है कि कड़वी गोली मीठी चाशनी में लपेटकर खिलाई गई है जो इस संग्रह की सफलता का सार है।
     मंच पर उपस्थितों के अलावा इस कार्यक्रम में डाॅ. रजनी रणपिसे, डाॅ अनिता जठार, डाॅ लतिका जाधव, कंचन त्रिपाठी, डाॅ.नरेंद्र कौर छाबड़ा, मीरा गिडवानी, श्री गिडवानी, आदर्शिनी श्रीवास्तव, श्री अभय श्रीवास्तव, उर्मिला पवार, डाॅ.निर्मला राजपूत, डाॅ.मंजू चोपड़ा, डाॅ. कांति देवी लोधी जी, श्री बाबासाहेब लोधी, अलका अग्रवाल, पवन कुमार अग्रवाल,   राजू तळेकर, जयवंत  भुजबळ और मैत्रेयी योगेश पागे उपस्थित थे।
           गोष्ठी की शुरुआत में ‘जो पढ़ेगा वो बचेगा, जो बचेगा वो ही रचेगा’  के अंतर्गत नया क्या पढ़ा में डाॅ रजनी रणपिसे जी ने वंदना जी की रचनाओं के बारे में बताया जिसमें उन्होंने आदिवासी बच्चों की पढ़ाई से संबंधित बातें बताईं।  डाॅ अनिता जठार ने हिंदी में ‘तिरंगा’ कविता में कहा -‘जान तू, मान तू इस देश की शान तू, तीन रंगों से सजा इस देश का मान तू’। मराठी में उन्होंने ‘इच्छा’ कविता सुनाई -‘ ‘देवाधितर मला विचार ला, इच्छा तुझी एक सांग’ जिसमें वो अपने बचपन को फिर से पाने की इच्छा करती हैं। दोनों ही कविताएँ सबको बहुत अच्छी लगीं। मीरा गिडवानी ने एक लघुकथा प्रस्तुत की जिसमें बीमार बच्ची को उबर ऑटो से अस्पताल ले जाते हुए अनजाने में वो अपने मायके का पता डाल देती हैं जो कि बहुत ही स्वाभाविक सा है और ऑटो को अस्पताल के रास्ते पर न जाते देख वो उसे टोकती हैं तो पता चलता है कि उन्होंने यही पता डाला है जिस रास्ते वो जा रहा है। कंचन त्रिपाठी जी ने ‘दीप’ कविता सुनाई – ‘एक दीप ऐसा जलाएँ, जो मन में उजियारा भर दे। काम, क्रोध, मद, लोभ को हर कर…’  जिसने सबका मन मोह लिया। इस कविता में ‘वसुधैव कुटुंबकम् ‘ की तरह सबके लिए विराट कामनाएँ की गई थीं।
      डाॅ नरेंद्र कौर छाबड़ा ने अपनी दो लघुकथाएँ प्रस्तुत कीं । एक लघुकथा का शीर्षक था’ पान’ जिसमें वे अपने परिवार के साथ पति के कहने पर उनकी पसंद के पानवाले से पान खाने जाती हैं और एक गरीब लड़की से गजरा खरीद लेने पर पति की डाॅंट से उनके पान का स्वाद ही चला जाता है। और दूसरी कहानी में एक बहुत गरीब परिवार की लड़की के मर जाने पर उसके शरीर को मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए बेच देते हैं। छोटी लड़की कहती हैं कि उसके कपड़े तो उतार कर ही वो पढ़ाई करेंगे तो क्यों न उसके कपड़े उसको मिल जाएँ। इस लघुकथा को सुनकर सभी स्तब्ध रह गए और ताली बजाना भी भूल गए।  उनकी दोनों कहानियाॅं सबको बहुत पसंद आई। डाॅ. लतिका जाधव ने ‘हिंदी एकता’ पर अपनी कविता सुनाते हुए कहा कि जिस प्रकार नदी अपना जल देकर सबके अंदर जीवन संचार करती है, उसी प्रकार हिंदी भाषा जन-जन को जोड़कर उनमें जीवन संचार करती है। आदर्शिनी श्रीवास्तव  ने ‘ ये मीन जल से तृप्त हो, संभव नहीं ये’ मुक्तक पेश किया और फिर हर घर में  पति-पत्नी के बीच कभी-कभार होने वाले आपसी मतभेदों पर प्रकाश डालते हुए ये गीत प्रस्तुत किया -‘आज विपत्ति कल सुलझेगी, वक्त एक सा नहीं रहा, राह धैर्य से ही निकलेगी, बस लहरों के संग ताल मिला ‘। उनके इस गीत को सभी ने बहुत  सराहा। उर्मिला पवार ने बताया कि उनको हिंदी भाषा बहुत पसंद है तथापि मराठी भाषा में बोलते हुए उन्होंने बताया कि अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात् राष्ट्रभाषा समिति के कार्यों में वे सहयोग प्रदान करती हैं। उन्होंने ज्ञान व विवेक के संगम पर बल दिया। डाॅ. निर्मला राजपूत ने ‘बगावत’ कविता में आजकल की लड़कियों द्वारा विवाह करते समय रखी जाने वाली  शर्तों को बयान किया ‘जरा सी बगावत कर लेते हैं, चलो न शादी कर लेते हैं।’ दूसरी कविता थी ‘तू चल’ – कोई साथ न भी दे तेरा, तू चल, पर चल। चल हर शय से नजरें मिला के चल, पर चल। आपकी दोनों ही कविताएँ बहुत सराही गईं।  डाॅ. मंजू चोपड़ा  ने पशु-पक्षियों, जीवों की विशेष शक्ति, जिससे वे हर घटना के बारे में पहले से जान जाते हैं, एक संस्मरण के माध्यम से बताई कि हमारी गली के एक कुत्ते को मेरी बेटी खाने को कुछ दे दिया करती तो वह कुत्ता उसके घर से निकलते समय उसके साथ जाता। जब वह अमेरिका चली गई तो कुत्ता न जाने कहाँ चला गया। एक वर्ष बाद मेरी बेटी अमेरिका से वापस आने वाली थी और घर तक आ भी नहीं आ पाई थी कि वह कुत्ता  अचानक  दरवाजे पर आकर खडा हो गया।  आखिर उसको कैसे पता चला कि वो घर वापस आने वाली है।
     डाॅ. विपिन पवार   ने आज इटारसी स्टेशन के लिए हुए बदलाव पर ‘ इटारसी ,’ शीर्षक से कविता सुनाई ‘चेन्नई नई दिल्ली, जाते समय, राजधानी वाले ग्रैंड ट्रंक रूट पर, अब नागपुर के बाद, इटारसी नहीं आता, सीधे भोपाल आ जाता है….। और बेस किचन, जंक्शन की यादें कविता में पिरो दी हैं।   अलका अग्रवाल ने एक बाल कविता – ‘भारत भाल’ सुनाई। डाॅ. कांति देवी लोधी की पहली कुछ पंक्तियों ने सबका मन मोह लिया – ‘तितलियाॅं हैं, फूल हैं और सपने हैं। मन से जो मिलते हैं, वो सारे अपने हैं। एक धड़कन सुना देती है मीलों की खामोशी और कहते हैं सितार, ये सारे स्वर गहरे हैं, बहुत गहरे हैं।।’  फिर उन्होंने मौत पर एक कविता प्रस्तुत कर माहौल गंभीर बना दिया-‘ आजकल तो मौत दस्तक भी नहीं देती, चुपचाप चली आती है अनायास ही आंधी सी। अंधड़ बनकर छा जाती है जब वो और सब कुछ तहस-नहस कर देती है, एक बदमाश बच्चे की तरह….’  और बहुत सराही गईं। डाॅ रजनी रणपिसे जी ने    ‘कवि’ शीर्षक से कविता पेश की- ‘कोई एक कवि किसी की जागीर नहीं होता, वो होता है सभी का….. ‘  संजय भारद्वाज ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता ‘नो मेन्स लैंड’ सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। डाॅ सत्येन्द्र सिंह ने अपने कविता संग्रह की अंतिम कविता ‘आज’ प्रस्तुत की। अध्यक्षीय संबोधन के साथ डाॅ प्रमोद शुक्ल ने अपनी ‘दोहा रामायण ‘ की रचना कैसे हुई, इसके बारे में बताया। फिर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं  – ‘बचपन में डगमगाते हुए वह कई बार गिरा, घुटने टूटे, रोया, चोट लगी , पड़ा रहा और बड़ा हो गया।
अंत में जब वो अपनी ही नज़रों से गिरा, अब की बार वो अपनी नजरों में उठ न सका।’ तत्पश्चात् उन्होंने तीन मुक्तक सुनाए- ‘किसी की याद आती है तौ सावन क्यों बरसता है।’  और अंत में एक गीत मौत पर पेश किया- ‘मत कर तू श्रंगार ओ पगले सब जल जाना है, फिर न लौट के आना। उनकी सभी रचनाओं को  बहुत पसंद किया गया और तालियाॅं बजा कर सराहा गया।
      गोष्ठी समाप्त होने के बाद डॉ. कांति लोधी और एडवोकेट बाबा साहेब लोधी ने डॉ. सत्येंद्र सिंह का शॉल उढाकर सम्मान किया और अपनी पुस्तकें भेंट कीं। हिंदी आंदोलन परिवार की ओर से संजय भारद्वाज के अनुरोध पर डॉ. नंदिनी नारायण और अलका अग्रवाल ने शॉल श्रीफल से उनका सम्मान किया।  डॉ. प्रमोद शुक्ल, डॉ. विपिन पवार, साप्ताहिक हड़पसर एक्सप्रेस के संपादक दिनेश चंद्रा और उपस्थित सभी रचनाकारों ने डॉ. सत्येंद्र सिंह को कविता संग्रह के लिए बधाई दी और डॉ. सिंह ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
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