गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय द्वारा रचित काव्य संग्रह “जीवनोत्सव” का किया गया विमोचन

गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय द्वारा रचित काव्य संग्रह "जीवनोत्सव" का किया गया विमोचन

गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय द्वारा रचित काव्य संग्रह “जीवनोत्सव” का किया गया विमोचन

गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय द्वारा रचित काव्य संग्रह “जीवनोत्सव” का किया गया विमोचन

किताब को खिताब भी मिलना चाहिए : प्रो.पी.एन.एन. अय्यर

पुणे, दिसंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
पत्रकार भवन पुणे में विद्या रामचंद्र स्मृति साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में क्षितिज प्रकाशन पुणे द्वारा प्रकाशित श्रीमती गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय रचित काव्य संग्रह “जीवनोत्सव” का विमोचन 1 दिसंबर 2024 को संपन्न हुआ। कार्यक्रम के अध्यक्ष थे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, आठ भाषाओं के जानकार प्रखर, ओजस्वी वक्ता प्रोफेसर पी.एन.एन.अय्यर,  मुख्य समीक्षक थे हिंदी आंदोलन परिवार के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध लेखक कवि विचारक चिंतक संजय भारद्वाज और विशिष्ट अतिथि  थीं जाणीव वृद्धाश्रम की ट्रस्टी श्रीमती वीनु जमुआर  तथा कावेरी ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट की मैनेजिंग फैसिलिटेटर एवं कावेरी इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल रह चुकीं कामिनी सक्सेना।  पूरे कार्यक्रम का संचालन पूर्व प्राध्यापक, लेखिका व कवयित्री श्रीमती ऋता सिंह द्वारा किया गया।
 समारोह की शुरुआत में कावेरी इंटरनेशनल स्कूल की छात्रा  कुमारी नारायणी द्वारा अपने मोहक भरतनाट्यम नृत्य द्वारा मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया जिसकी सभी उपस्थित महानुभावों ने बहुत सराहना की। दीप प्रज्वलन एवं माँ सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ घोष गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ को सभी ने खड़े होकर गाया  तत्पश्चात इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि वीनु जमुआर  द्वारा गौतमी जी के द्वारा रचित एक कविता की चार पंक्तियांँ “मेरे लेखन के द्वारा ही मैंने ख़ुद को जाना है साध्य बनाया भाषा को तब कविता को पहचाना है” सुनाते हुए  गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय को “जीवनोत्सव” काव्य संग्रह के लिए बधाई दी और आशीर्वाद दिया। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि इस  काव्य संग्रह में बोलचाल की भाषा का भी अच्छा इस्तेमाल किया गया है और सच में उसमें जीवन का उत्सव है,और उन्होंने गौतमी के सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई दी एवं  आशा व्यक्ति की कि गौतमी जिसका एक नाम गोदावरी भी होता है इसी तरीके से  संवेदनशीलता की सकारात्मक काव्य धारा तरंगित होती रहे तथा इसी तरह पर्यावरण जागरण के लिए भी एक जागरुकता अभियान की मशाल बनी रहें।
         ऋता सिंह ने संचालन करते-करते कहा कि इस काव्य संग्रह की रचना व प्रकाशन के लिए गौतमी का प्रयास स्तुत्य है उससे कहीं अधिक उनके पति अभिषेक पाण्डेय के प्रयास अकथनीय हैं और उन्होंने उनके सहयोग के लिए अभिषेक को बहुत-बहुत बधाई दी ।  साथ ही यह भी कहा कि अभी तक यह कहावत कही जाती रही है कि हर  पति की सफलता के पीछे जीवन संगिनी का हाथ रहता है लेकिन इस काव्य संग्रह के प्रकाशन के पीछे उनके पति अभिषेक पाण्डेय के सहयोग ने उस कहावत को बदल दिया है।  उन्होंने गौतमी की एक कविता के चंद बोल बोले ” जो पूर्ण समर्पण करता है, वह पूर्ण समर्पण चाहेगा , दरकार नहीं उपहारों की बस भाव का अर्पण चाहेगा” के साथ  अभिषेक पाण्डेय को आवाज़ दी। अभिषेक पाण्डेय ने अपने संबोधन में कहा कि “जो कुछ है गौतमी ही है, मैं मात्र श्रोता हूँ और वैसे भी मैं बहुत कम बोलने वालि व्यक्ति हूँ उन्होंने अपने को सौभाग्यशाली मनाते हुए कहा कि एक ही व्यक्ति के इतने आयामों को कैसे समेटूँ…गौतमी एक गीतकार, कवयित्री,नाटककार ,लेखिका पर्यावरण संरक्षिका व समाज सेविका के साथ-साथ एक समर्पित पत्नी,माँ,पुत्री,बहन,बहू भी हैं और सबका ख़याल रखती हैं।
     कावेरी ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स की मैनेजिंग फैसिलिटेटर, एवं  प्रिंसिपल रह चुकी कामिनी सक्सेना ने कहा कि वे  32 वर्ष से शिक्षा के क्षेत्र में हैं लेकिन उन्होंने गौतमी जैसी बहुमुखी प्रतिभा वाली कवयित्री, पर्यावरण प्रेमिका, हिंदी और इतिहास पर पक्की पकड़ रखने वाली शिक्षिका नहीं देखी है। उन्होंने अपने अंग्रेजी में दिए गए वक्तव्य में गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय की क्रियाशीलता,सभी उपलब्धियों, काव्य संग्रह के लिए बधाई दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
समारोह के मुख्य समीक्षक संजय भारद्वाज जी ने अनुभूति को अभिव्यक्ति देने वाली मांँ सरस्वती को प्रणाम करते हुए सर्वप्रथम गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय के काव्य संग्रह की इस बात के लिए सराहना की कि उन्होंने काव्य संग्रह में सर्वप्रथम वाग्देवी माँ सरस्वती की वंदना करके प्राचीन परंपरा को जीवित बनाए रखा है। उन्होंने आगे कहा कि  उपन्यास कहानी और अन्य गद्य साहित्य को लिखना और कविता लिखने में बहुत अंतर होता है। संवेदनाओं की एक-एक बूंद स्वयं संभूत होकर बूंद बूंद संचित होती है और तब वह अभिव्यक्त होती है । उन्होंने वर्ड्सवर्थ को उद्धृत  करते हुए कहा कि कविता स्पॉन्टेनियस एक्सप्रेशन ऑफ थॉट्स होती है।  उन्होंने कहा कि  गौतमी की रचनाओं में पर्यावरण के प्रति चिंता झलकती है, परिवार समाज व मानवता के लिए चिंता झलकती है। पुणे में रहकर उन्होंने  साने  गुरु जी की अवधारणा को आत्मसात किया है। भारत में वृक्षों की पूजा-अर्चना, तुलसी विवाह, वटपूजन, ब्रह्म कमल पूजन,  कोकण में देवरी पूजा यही बताती कि भारत में  पेड़ पौधों वनस्पतियों की पूजा होना इस बात के प्रतीक है कि अपने देश में पर्यावरण के प्रति प्रारंभ से ही चिंता रही है, वसुधा पर जीवन बचाने की चिंता और सकारात्मक सोच सदैव सहा है और  जीवन उत्सव को सदैव अपने अंदर बचाए रखना, गौतमी का अपना एक बहुत अच्छा प्रयास है।  संजय भारद्वाज ने गौतमी की रचना धर्मिता और  संवेदना व अनुभूति के उदाहरण में उनकी ही एक कविता ” अपने घोंसले, खोने के डर से,  उसी में छुपती,  वह डरी चिड़िया,” का उल्लेख करते हुए कहा कि गौतमी घर परिवार समाज बच्चों के प्रति ही नहीं जीव मात्र के लिए समर्पित है।
संजय जी ने कहा कि ‘जीवनोत्सव’ में स्त्री के अपरिमेय अस्तित्व, उसके अथाह मौन,उसके प्रेम की उत्कटता  की अभिव्यक्ति की सारगर्भित व्याख्या है।
         गौतमी पाण्डेय ने अपना मंतव्य प्रकट करने से पहले गुरुजनों,विधाता, अपने पूरे परिवार,समाज,परिवेश, प्रकृति  व सभी स्वजनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने क्षितिज प्रकाशन की प्रमुख सुधा भारद्वाज व संजय भारद्वाज को धन्यवाद दिया ।कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर पी.एन.एन. अय्यर के प्रति अत्यंत आभार व्यक्त किया।  वीनु जमुआर , कामिनी सक्सेना व उपस्थित सभी महानुभावों के प्रति कृतज्ञता व्यक्ति की  और मंच के आग्रह पर अपनी कविता ‘समर्पण’ सादर की ‘कृतज्ञता’ शीर्षक के अंतर्गत “कैसे कहूँ क्या-क्या पाया है, जो भी हूँ,तुमने ही तो बनाया है।   कभी लगता है, आँखें में आँसू लिए, रंजन सर ने एक बार फिर, स्टेज पर अपना बैज निकाल कर, मुझे पहना दिया..,कभी रंजना मैम ने, बेटा आपका दायित्व बहुत बड़ा है, कहकर मुझे जगा दिया।”
प्रस्तुत की। भावविभोर होकर गौतमी ने बताया कि चौथी कक्षा में उन्होंने पहली कविता लिखी थी।
        अध्यक्षीय संबोधन में प्रोफेसर पी.एन.एन. ने कहा कि “मैं देश-विदेश में हर जगह घूम कर जाने कितनी सभ्यता और संस्कृतियों का ज्ञान अर्जन कर चुका हूँ। मैंने पाया है कि केवल  भारत ही  एकमात्र देश है,  जिसके नोटों पर 17 भाषाएंँ लिखी हैं जो किसी अन्य देश में नहीं है । हमारी विविधता बड़ी विचित्र है : आज हमारे देश में भी बच्चा स्कूल में अंग्रेजी बोलता है,  घर में मातृभाषा बोलता है और समाज में प्रांतीय भाषा बोलता है यानी कि एक बालक तीन-तीन भाषाएं बोलता है । ऐसी विविधता ऐसा लॉजिकल कलेक्शन ऑफ़ थॉट कहीं अन्य नहीं मिलता है और हमें गौतमी जैसी कवयित्री को केवल कविता सुनकर या उनकी पुस्तक खरीद कर ही सपोर्ट नहीं करना चाहिए बल्कि उनके विचारों को, उनकी मान्यताओं को जगह-जगह,  दूर-दूर तक लोगों तक पहुँचाना चाहिए।
गौतमी जी का उत्कृष्ट योगदान न केवल आश्चर्यचकित करने वाला एक उदाहरण है बल्कि अनुकरण करने का एक मार्ग भी है
यह विमोचन जो हुआ है ,यह आखिरी पड़ाव नहीं है। इसके बाद अब हमारा कर्तव्य शुरू होता है । उन्होंने गौतमी से अपेक्षा करते हुए कि वे हर कविता का एक छोटा-छोटा वीडियो बनाएँ और उसका अर्थ समझाएँ, जिससे लोग उनके विचारों को बहुत अच्छी तरह समझेंगे, क्योंकि गौतमी में अनुवाद करने की बहुत अच्छी प्रतिभा छुपी हुई है और उनके पतिदेव भी उनके बच्चे भी ऐसे वीडियो बनाने व प्रसारित करने में उनका साथ दे सकते हैं। उनकी ऊर्जा, उत्साह, उत्पन्नता,  उत्कृष्टता को बनाए रखने में जितनी मदद हम कर सकें, उतनी हमें करनी चाहिए। किताब को खिताब भी मिलना चाहिए।”
        इस विमोचन समारोह में उपस्थित गणमान्य साहित्यकारों एवं अतिथियों में  महेश बजाज, डॉक्टर कांति देवी लोधी, बाबासाहेब लोधी, दुर्गेश्वरी अय्यर, बालाचंद्रन अय्यर,सुमित पाल ,सत्येंद्र जी ,माया मीरपुरी,आदर्शिनी श्रीवास्तव, अभय कुमार श्रीवास्तव,डॉ सत्येंद्र सिंह, रामेश्वरी सिंह, आशु गुप्ता,अवनीश जी एवं उनकी धर्मपत्नी, वेद स्मृति ,डॉक्टर ज्योति कृष्ण मिश्र, मनीषा मजीठिया, संज्योत हर्डिकर, मिलिंद,दिशा कटल एवं उनके पति, सिंधु पुजार, मनीष अग्रवाल ,प्रिया अग्रवाल, शिल्पा कुमार,नवदीप कुमार, निनाद ठाकुर नारायणी पुजार, नभ्य एवं नभन्यु मौजूद थे, जिन्होंने यजमान पाण्डेय परिवार को शुभकामनाएँ दी।
      आंदोलन परिवार की ओर से वरिष्ठ साहित्यकार माया मीरपुरी जी और अरविंद तिवारी जी ने गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय को शॉल व श्रीफल भेंट कर उनका सम्मान किया। डॉ. कांति देवी लोधी ने अपनी ओर से गौतमी को शॉल श्रीफल से सम्मानित किया और साथ ही एक कविता प्रस्तुत की–” कुछ क्षण अलबेले होते हैं, घटे भीड़ में, फिर भी अकेले होते हैं, स्मृति सिंहासन पर मार पैंडुलि बैठे हैं, हृदयासन पर पैर फैलाए सोते हैं।” गौतमी  पुत्र अद्वय द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। कार्यक्रम के समापन के बाद सभी ने सुस्वादु प्रीतिभोज का आनंद लिया और कार्यक्रम के सफल आयोजन एवं यजमान परिवार की आत्मीयता हेतु बधाई दी।
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