मानवसेवा ही सच्चा धर्म; लोगों की जान बचाना, दूसरों का दुख बांटने में मिलती है संतुष्टि : जीवनरक्षक डॉ. बच्चूसिंह टाक

मानवसेवा ही सच्चा धर्म; लोगों की जान बचाना, दूसरों का दुख बांटने में मिलती है संतुष्टि : जीवनरक्षक डॉ. बच्चूसिंह टाक

मानवसेवा ही सच्चा धर्म; लोगों की जान बचाना, दूसरों का दुख बांटने में मिलती है संतुष्टि : जीवनरक्षक डॉ. बच्चूसिंह टाक

मानवसेवा ही सच्चा धर्म; लोगों की जान बचाना, दूसरों का दुख बांटने में मिलती है संतुष्टि : जीवनरक्षक डॉ. बच्चूसिंह टाक

राज्य में एक लाख से अधिक शिकलकरी समुदाय है। विभिन्न प्रकार के पारंपरिक हथियार बनाने के लिए प्रसिद्ध इस समुदाय ने कालांतर में लोहे के बर्तन जैसे फावड़ा, घमेले, कड़ाही, तवा आदि बनाना शुरू कर दिया। आज यही पारंपरिक व्यवसाय उनकी आजीविका का असली जरिया है। बाजार में आसानी से संभाले जानेवाले बर्तनों के उत्पादन से भी उनका व्यवसाय सीमित हो गया है। एक घुमंतु, भूमिहीन और दैनिक भोजन की चिंता के कारण, वह शिक्षा से दूर रहे। कुछ अपवादों को छोड़कर उसके लिए अच्छी नौकरी व्यवसाय अभी भी संभव नहीं है। अत: इस समाज में कुछ हद तक आपराधिक मनोवृत्ति का विकास देखा जा सकता है। हालांकि, इसके बावजूद भी समाज के कुछ युवा अलग-अलग क्षेत्रों में जबरदस्त संघर्ष कर अपना नाम रोशन करते नजर आ रहे हैं।

हड़पसर की महात्मा फुले बस्ती में रहनेवाले डॉ. बच्चूसिंह टाक इसी समुदाय से हैं। उनकी बस्ती नहर के किनारे स्थित रहने से विभिन्न सफाई उद्देश्यों के लिए नहर के पानी के संपर्क में रहता है, इसलिए यहां के बच्चे भी तैराकी में पारंगत हैं क्योंकि वे बचपन से ही इसी माहौल में हैं। उनमें से एक हैं बच्चू सिंह। वे जब दस-बारह साल के थे तो उन्होंने अपने पिता, चाचा और जीजाजी को पानी में डूबकर मरते हुए देखा, इसका गंभीर प्रभाव उनके संवेदनशील मन पर पड़ा।

डूबते को बचाने का साहस किसी ने भी आसानी से नहीं किया, हिम्मत नहीं की। यह बच्चू सिंह ने देखा। अपने परिवार के सदस्य की तलाश में हताश रिश्तेदारों को नहर के किनारे भटकते देखकर उन्हें दुख होता था। एक दिन उनके संवेदनशील मन में गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने ऐसी दुर्घटना में मदद करने का दृढ़ निश्चय किया। तब से लेकर आज तक वे पिछले 28 वर्षों से जीवनरक्षक के रूप में बिना मुआवजे के काम कर रहे हैं। शुरुआत में घर के लोग भूत-प्रेत के डर से उन्हें यह काम न करने के लिए डराते थे। समुदाय के पड़ोसी बच्चूसिंह से अपने बच्चों को दूर रखते थे। धीरे-धीरे ये बच्चे भी इस काम में उनकी मदद करने लगे हैं। आपदा की विभिन्न घटनाओं में नागरिक, पुलिस, अग्निशमन आदि यंत्रणा बच्चूसिंह सिंह की मदद ले रहे हैं। उनके लिए एक अहम भूमिका और योगदान बच्चूसिंह दे रहे हैं।

बच्चू सिंह के बेटे आज़ादसिंह बचपन से ही अपने पिता का काम देख रहे थे। सामाजिक चेतना की उत्कृष्ट भावना से प्रेरित बच्चूसिंह चाहते थे कि उनका बेटा भी इस सेवा कार्य में भाग ले। धीरे-धीरे यह सेवा संस्कार उनकी भी आदत बन गई। अब आज़ाद भी इस काम में माहिर हो गये हैं। अपने पिता के साथ वह भी ऐसे काम में अच्छा योगदान दे रहे हैं। ये दोनों परिसर के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर बाहर गांव भी जाकर आपातकालीन स्थिति में अपनी सेवा कार्य की मदद कर रहे हैं। अपने पिता की अनुपस्थिति में भी आज़ाद सिंह अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं।

नहर में बह रही लाशों को जगह-जगह से आगे की ओर धकेल दिया जाता है, फंसी हुई लाशों को भी उस स्थान से आगे धकेल दिया जाता है। अब तक 4500 से अधिक शव बच्चूसिंह नहरों, कुओं, झीलों, नदियों से निकाले जा चुके हैं। रेलवे दुर्घटनाओं और सड़क दुर्घटनाओं से भी कुल 2500 से अधिक शव निकालने में मदद की है। अब तक 250 से अधिक लोगों की जान बचाकर उन्हें जीवनदान भी बच्चूसिंह ने दिया है। विभिन्न दुर्घटनाओं में घायलों को समय पर सहायता उपलब्ध कराकर पीड़ितों को भी बचाया गया है। इसके अलावा वे कई जानवरों को भी जीवनदान देने में सफल रहे हैं।

बच्चूसिंह क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह को अपना आदर्श मानते हैं। उनका कहना है कि मानव सेवा ही सच्चा धर्म है। शहीद भगतसिंह जीवनरक्षक फाउंडेशन के माध्यम से उनके साथ कार्यकर्ता जीवनरक्षक के रूप में काम करने के अलावा विभिन्न सामाजिक कार्य भी कर रहे हैं। जल, सड़क और रेल दुर्घटनाओं में घायलों और मृतकों, उनके रिश्तेदारों की सहायता करना, किसी आपात स्थिति में योगदान देना, रक्तदान जैसे राहत शिविरों का संचालन करना। दिव्यांगों को सहायता एवं उपयोगी सामग्री उपलब्ध कराना, हर वर्ष पालखी उत्सव में तीर्थयात्रियों को सुविधाएं प्रदान करना, आपातकालीन परिस्थितियों में प्रशासन की मदद करना आदि कार्य फाउंडेशन के माध्यम से किए जा रहे हैं।

सांगली बाढ़ आपदा में फंसे हजारों लोगों को बाहर निकालने में बच्चूसिंह के साथ फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं ने काफी मदद की है। वे ससून अस्पताल से चुराए गए शरीर के सिर को ढूंढने में सफल रहे। कोरोना काल में रक्तदान शिविर का आयोजन, गरीबों और बेघर लोगों को भोजन और सुरक्षा उपकरण की आपूर्ति भी उन्होंने की। उनके फाउंडेशन ने हड़पसर पुलिस स्टेशन को एम्बूलेंस उपलब्ध कराई गई है, इसके माध्यम से निःशुल्क सेवा प्रदान की जा रही है।

बच्चूसिंह के इस कार्य को संज्ञान में लेते हुए राज्य सरकार का डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर समाज भूषण, राज्यपाल द्वारा राजभवन में अंतरराष्ट्रीय जीवनरक्षक, नेहरू युवा केंद्र के जिला युवा पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया है। साथ ही विभिन्न संगठनों द्वारा भी उन्हें नवाजा गया है। इसके अलावा उनके द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।

हमारा समाज बिखरा हुआ है और अभी भी पिछड़ा हुआ है। शिक्षा में कोई प्रगति नहीं हो रही है, इसलिए बच्चों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। यह खतरा है कि यह शक्ति वाम मार्ग में बर्बाद हो जाएगी, इसलिए उन्हें ऐसी मानव सेवाओं में लगाने का काम चल रहा है। अपने उपलब्ध काम-व्यवसाय का ध्यान रखते हुए आपातकालीन स्थिति में लोगों की जान बचाने में मदद करने और दूसरों के दुख बांटने में संतुष्टि महसूस होती है। आशा है कि इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में प्रोत्साहन के केवल चार अच्छे शब्द साझा किए जाएं बस इतनी उम्मीद हैं।
-डॉ. बच्चूसिंह टाक, जीवनरक्षक

मैं तेरह साल से अपने पिता के साथ जीवनरक्षक के रूप में काम कर रहा हूं। शवों को उठाने, पानी से बाहर निकालने, डूबते लोगों को बचाने में मेरे पिता के साथ जाने के लिए हमारी बस्ती के बच्चे जाने से डरते थे। उस वक्त मैं उनकी मदद के लिए उनके साथ जाने लगा। इस बात से आश्वस्त होकर कि संकट में फंसे लोगों की मदद की जानी चाहिए, अब कई मामलों में मदद करने की मैं खुद पहल करता हूं। मेरे पिता समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहते हैं। अब तक मैंने ऐसी डेढ़ हजार से अधिक घटनाओं में सहायता कार्य किया है।’
– आज़ादसिंह टाक, जीवनरक्षक

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