शवों का पोस्टमार्टम करना साहसिक एवं चुनौतीपूर्ण कार्य : पिछले सात सालों में विक्रांत ने किए 10 हजार से अधिक शवों के पोस्टमार्टम
यह किसी अन्य से भिन्न कार्य है। यह बात कहते हुए विक्रांत को अभिमान महसूस होता है। लोगों को यह गलतफहमी है कि यहां लोग शराब पीकर काम करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है यहां कोई नशा नहीं करता है। मुझे इस बात पर गर्व है कि मुझे वह करने का अवसर मिला जो कोई और नहीं कर सका। परिवार से सहयोग मिलता है। साथ ही विभाग प्रमुख डॉ. अजय तावरे को धन्यवाद देता हूँ, मुझे यह काम करने का अवसर उन्होंने दिया। दूसरी यह गलत धारणा है कि ‘पीएम’ के दौरान शरीर के अंगों को निकाल दिया जाता है यह गलतफहमी है। शरीर के किसी भी अंग को नहीं हटाया जाता है, कभी-कभी उन्हें परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
शवों का पोस्टमार्टम (शव विच्छेदन) करना एक बहुत ही अलग और कौशलपूर्ण काम है। ससून अस्पताल के डेडहाउस में कर्मचारी पोस्टमॉर्टम का काम करते हैं। यह कार्य साहसिक एवं चुनौतीपूर्ण है। ससून हॉस्पिटल के डेड हाउस के कर्मचारी विक्रांत वशिष्ठ भी उनमें से एक हैं।
विक्रांत 2016 से पोस्टमॉर्टम (पीएम) का काम कर रहे हैं। वह अपने पिता की सेवानिवृत्ति के बाद उनके साथ जुड़ गए। उस समय वह केवल 24 वर्ष के थे। 12 वीं की पढ़ाई करनेवाला विक्रांत जब पहली बार पीएम कर रहा था तब उसे थोड़ी सी धकधक हो रही थी क्योंकि उसके सामने एक शव था, खून था। फिर काम करने की आदत हो गयी। काम के प्रति रुचि पैदा हुई और अब वह अपने साथियों की मदद से रोजाना 7-8 शवों का ‘पीएम’ करते हैं जबकि सभी टीमें 24 घंटे में 20 से 25 पीएम और एक महीने में 300 से ज्यादा पीएम करती हैं।
पिछले सात सालों में विक्रांत अब तक 10 हजार से ज्यादा शवों का पीएम कर चुके हैं। कहा जाता है कि ससून में पूरे जिले भर से पीएम आते हैं। आनेवाले शव सड़ चुके, पानी में डूबे हुए, जले हुए रहते हैं। शरीर सड़ा हो तो दुर्गंध आती है। विक्रांत का कहना है कि स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं है क्योंकि संक्रमण से बचाव के लिए इंजेक्शन, दस्ताने, मास्क, पीपीई किट मौजूद हैं।
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