कोयले रहित भूमि पर जीवन, एक इकोसिस्टम आधारित दृष्टिकोण
देश की ऊर्जा संबंधी बढ़ती मांगों को पूरा करने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को बनाए रखने के बीच एक नाजुक संतुलन बिठाते हुए, कोयला क्षेत्र टिकाऊ वनीकरण और जैव-पुनरुद्धार से जुडी प्रगतिशील रणनीतियों को अपनाने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाता है। व्यापक जैव-पुनरुद्धार एवं वनीकरण से जुड़े प्रयासों का उद्देश्य कार्बन सिंक और हरित आवरण, दोनों को सुदृढ़ करना है। पिछले 10 वर्षों के दौरान, कोयला क्षेत्र से जुड़े सार्वजनिक उपक्रमों ने प्रभावशाली तरीके से 42.3 मिलियन पौधे लगाकर लगभग 18,849 हेक्टेयर भूमि को हरित आवरण के अंतर्गत लाने में सफलता हासिल की है। यह अग्रणी पहल कोयला खनन की जिम्मेदार व पर्यावरण अनुकूल भरोसेमंद प्रणालियों के प्रति कोयला क्षेत्र की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
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कोयला खनन की विभिन्न परियोजनाओं, जिन्हें अनिवार्य पर्यावरण एवं वानिकी मंजूरी की आवश्यकता होती है, को वन मंजूरी (एफसी) के लिए प्रतिपूरक वनरोपण (सीए) भूमि की पहचान करने में एक महत्वपूर्ण बाधा का सामना करना पड़ता है। एफसी अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज करने, सीए लागत को कम करने, कार्बन क्रेडिट अर्जित करने और राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वनीकरण को बढ़ावा देने हेतु, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने 24.01.2023 को मान्यता प्राप्त प्रतिपूरक वनरोपण (एसीए) के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। वनीकरण संबंधी यह सक्रिय पहल जंगलों के बाहर पेड़ों (टीओएफ) में वृद्धि में योगदान देते हुए निजी भूमि मालिकों और सरकारी संस्थानों को परती भूमि पर वनीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
एसीए दिशानिर्देशों के अनुरूप, कोयला क्षेत्र से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने एसीए के लिए उपयुक्त लगभग 3075 हेक्टेयर वन-रहित गैर-वन-मुक्त भूमि की पहचान की है। भविष्य के कोयला खदानों के लिए वन भूमि परिवर्तन की आवश्यकता वाली वन मंजूरी में तेजी लाने के लिए एसीए भूमि बैंक के रूप में वनीकृत गैर-वन कोयला रहित भूमि की उचित अधिसूचना के लिए कोयला क्षेत्र से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा संबंधित राज्यों के वन विभागों को प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए हैं।
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड द्वारा बिश्रामपुर ओपनकास्ट परियोजना मान्यता प्राप्त प्रतिपूरक वनीकरण (एसीए) दिशानिर्देशों के पालन का एक सराहनीय उदाहरण है। यह परियोजना 1959-60 में शुरू की गई थी। यह परियोजना भरोसेमंद खनन और जिम्मेदार भूमि सुधार का एक मानक बन गई है। संसाधन की कमी के कारण जुलाई 2018 में परिचालन की समाप्ति को इंगित करते हुए, इस परियोजना ने 1472 हेक्टेयर में फैले पट्टे के भीतर सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध तरीके से कार्यशील व अंतिम खदान को बंद कर दिया। भूमि पुनरुद्धार की प्रक्रिया, जिसमें भौतिक/तकनीकी और जैविक पुनरुद्धार, दोनों तरीकों को शामिल किया गया था, उन क्षेत्रों को बहाल करने के प्रति समर्पित थी, जिनका खनन किया गया था। पट्टे के भीतर, लगभग 319 हेक्टेयर भूमि को पुनरुद्धार की जाने वाली परिवर्तित वन भूमि के रूप में नामित किया गया है। इसके अतिरिक्त, लगभग 40 हेक्टेयर भूमि सौर संयंत्र के लिए आवंटित की गई है, जबकि 906.82 हेक्टेयर भूमि को सफलतापूर्वक जैविक रूप से पुनरुद्धार की गई गैर-वन भूमि के रूप में दर्शाया गया है। पुनरुद्धार की गई इस भूमि में केसिया सामिया, बबूल, नीलगिरि, सागवान, खैर, बबूल, शीशू, बॉटलब्रश, आम, सिरिस, जामुन, नीम, गुलमोहर, सागौन, करंजा आदि सहित अब स्थानीय प्रजातियों का एक समृद्ध इकोसिस्टम है। पट्टे का एक विशिष्ट पहलू खदान की लगभग 77 हेक्टेयर भूमि को पानी से भरे जलाशय में बदलना है। यह जलाशय घरेलू उपयोग, सिंचाई, वर्षा जल भंडारण, भूजल पुनर्भरण और वनस्पतियों एवं जीवों के लिए पानी के स्रोत की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेष रूप से, स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के पुनर्निवेशीकरण ने क्षेत्र की जैव विविधता को काफी समृद्ध किया है। स्लॉथ बियर, लोमड़ी और सरीसृप आदि जैसी पुरानी प्रजातियां और प्रवासी पक्षी सहित विभिन्न जीव-जंतु अब जल निकाय के आसपास पनपते हुए देखे जाते हैं।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति इस परियोजना के समर्पण ने, मान्यता प्राप्त प्रतिपूरक वनरोपण (एसीए) के साथ मिलकर, एसीए के लिए वनीकृत गैर-वन कोयला रहित भूमि में से 899.17 हेक्टेयर की पहचान की है। बिश्रामपुर ओपनकास्ट में चिन्हित वनीकृत भूमि को एसीए भूमि बैंक के रूप में अधिसूचित करने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य वन विभाग को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। इस 899.17 हेक्टेयर भूमि में से, 403 हेक्टेयर का सूरजपुर वन प्रभाग द्वारा पहले ही निरीक्षण किया जा चुका है और एक साइट उपयुक्तता प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जिसे कुसमुंडा ओसी में 402.96 हेक्टेयर की वन भूमि के उपयोग के लिए सीए भूमि के रूप में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा, एसईसीएल ने एसीए भूमि के रूप में साइट उपयुक्तता प्रमाण पत्र जारी करने के लिए शेष चिन्हित वनीकृत गैर-वन कोयला रहित भूमि के निरीक्षण के लिए डीएफओ, सूरजपुर से अनुरोध किया है।
बिश्रामपुर ओसी, एसईसीएल की कोयला रहित भूमि पर वृक्षारोपण
यह पहल कोयला खनन की जिम्मेदार एवं भरोसेमंद प्रणाली के प्रति कोयला क्षेत्र की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। एसीए संबंधी अग्रणी दृष्टिकोण न केवल ऊर्जा की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए कोयले की निरंतर उपलब्धता की गारंटी देता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण तथा कोयला क्षेत्रों में जैव विविधता को बढ़ाने में भी उल्लेखनीय योगदान देता है।
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