31/07/2025
Sunil Joshi

Sunil Joshi

भाषा

मस्तिष्क में उपजे विचारों और हृदय में उत्पन्न भावों को शाब्दिक रूप प्रदान कर अपनी बात को कहने के लिए हमें भाषा की आवश्यकता होती है। जो लोग बोल और सुन नहीं सकते, उनके लिए सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जाता है और जो लोग देख नहीं सकते उनके लिए भी ब्रेल लिपि का आविष्कार किया गया, जिससे उन्हें दूसरों की लिखी भाषा को समझने में कोई असमर्थता न हो।

यदि हम अपने देश की ही बात करें तो यहां हमें भाषा में विविधता देखने को मिलती है। इसीलिए भारतेंदु हरिश्चंद जी का कथन है,
चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पर वाणी,
बीस कोस पर पगड़ी बदले, तीस कोस पर धानी!

ऐसा इसलिए भी कहा गया है, क्योंकि भौगोलिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो भाषा पर उस भूभाग और वहां की परिस्थितियों का प्रभाव होना स्वाभाविक है और किंचित ये सही भी है।

भाषा हमें संवाद करने की सुविधा प्रदान कराती है। जब हम भूमंडल के किसी ऐसे भूभाग पर पहुंचते हैं, जहां आपकी भाषा को समझने वाला कोई नहीं है, ऐसी परिस्थिति में हम पूर्णतः प्रयासरत रहते हैं कि हम जिससे संवाद करने का प्रयास कर रहे हैं वो किसी प्रकार से हमारी बात को समझे और इसी प्रयास में हम अपनी भाषा, उसकी भाषा और सांकेतिक भाषा का मिलाजुला स्वरूप संवाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं और सामने वाला भी अपनी ओर से बात को समझने और कहने का प्रयास करता है तब कहीं जाकर संवाद पूरा होता है।

यदि देखा जाए तो इस धरा पर उपस्थित प्रत्येक जीव की अपनी एक भाषा है और वह उसी भाषा में संवाद करने को आतुर रहता है, और ये सही भी है। वर्तमान समय में हम सबको कभी न कभी काम-काज के कारण पलायन करना पड़ता है और किसी प्रांत, प्रदेश या विदेश में रहकर जीवनयापन करना पड़ता है। इन परिस्थितियों में हमें अपनी दक्षता को बढ़ाकर वहां की परिस्थितियों के अनुकूल रहना अनिवार्य हो जाता है।

भाषा के आधार पर किसी का बहिष्कार करना और उसे अपमानित करना ये हमारी संस्कृति नहीं रही है। हमें याद करना चाहिए जब हमारा देश पराधीनता की बेड़ियों में था, तभी देश के प्रत्येक भूभाग से क्रांतिकारी एकजुट हुए थे और भाषा में विविधता होने के उपरांत भी सभी एक स्वर में आजादी का उद्घोष कर घरों से बाहर निकले थे। कश्मीर से कन्याकुमारी, सिंध से पूर्वोत्तर तक सभी ने एक भाषा को ही संवाद के रूप में चुना। हालांकि क्रांतिकारियों की अपनी अपनी क्षेत्रीय भाषाएं तब भी उपलब्ध थीं, परन्तु जब बात देश की अस्मिता और सम्मान की आई, तब सभी ने एकजुट होकर ‘जय हिन्द’ का उद्घोष किया।

वर्तमान समय में हम सबको अपनी सेनाओं से सीख लेने की आवश्यकता है। भारतीय सेनाओं में हर प्रांत और प्रदेश के सेनानी सम्मिलित है और सभी संवाद के रूप में एक ही भाषा का प्रयोग करते हैं और एक ही भाषा में ‘जय हिन्द’ का उद्घोष करते हैं।

ऐसे में हम सब देशवासियों का दायित्व बन जाता है कि हम सभी भाषाओं का सम्मान करें और भाषा के आधार पर किसी भी प्राणी पर अत्याचार न होने दें।

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लेखक एवं कवि
श्री सुनील जोशी, पुणे

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