14/07/2025

भारत के आर्थिक परिवर्तन के शिल्पकार ‘डॉ. मनमोहन सिंह’

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भारत के आर्थिक परिवर्तन के शिल्पकार ‘डॉ. मनमोहन सिंह’

भारत के इतिहास में एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व, जिन्होंने भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। डॉ. मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के बाजार को दुनिया के सामने खोल दिया। इसके कारण वे देश की अर्थव्यवस्था को वैश्वीकरण के रास्ते पर ले जाने में सफल रहे। वर्ष 2004 में यूपीए सरकार ने बहुमत हासिल किया था। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 2008 में काफी मंदी छा गई थी, जिसका प्रभाव भारत पर होने से पहले ही डॉ. मनमोहन सिंह की नीतियों के कारण भारत देश को झटका नहीं लगा।

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डॉ. मनमोहन सिंह वर्ष 2009 में दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने।
डॉ. मनमोहन सिंह को ईमानदार नेतृत्व के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने देश की आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। उनका जीवन और कार्य भारत के लोगों के लिए प्रेरणादायी हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) के गाह गांव में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। डॉ. मनमोहन सिंह एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से अर्थशास्त्र में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातक किया। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनका शैक्षणिक जीवन महान उपलब्धियों और सम्मानों से भरा हुआ था।

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डॉ. मनमोहन सिंह का कार्यकाल मुख्य रूप से आर्थिक नीतियों से संबंधित था। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. सिंह को नरसिम्हा राव के अधीन केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की त्रिमूर्ति पर आधारित आर्थिक सुधारों को लागू किया। इन सुधारों के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक बड़ी छलांग लगाई। वर्ष 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने। वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गांधी-नेहरू परिवार के सदस्य के बिना कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी क्षेत्रों में प्रगति की। डॉ. सिंह, जो दो कार्यकालों के लिए प्रधानमंत्री थे, उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। वर्ष 2008 का भारत-अमेरिका परमाणु समझौता उनके कार्यकाल में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर माना जाता है। उनके कार्यकाल के दौरान, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया।

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डॉ. मनमोहन सिंह सादगी, ईमानदारी और निस्वार्थता के प्रतीक थे। वे कभी राजनीति में शामिल नहीं हुए। उनकी नेतृत्व शैली शांत, विचारशील और प्रभावी थी। उन्होंने अपनी दक्षता और ज्ञान से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नेताओं का सम्मान अर्जित किया।
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान कुछ चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उन पर भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था, विशेष रूप से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कोयला आवंटन घोटाले के संदर्भ में। हालाँकि, उनकी व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा पर कभी सवाल नहीं उठाया गया है।

वर्ष 1998 से 2004 तक जब भाजपा सत्ता में थी, तब वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। वर्ष 1999 में उन्होंने दक्षिण दिल्ली से चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए थे। डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। वर्तमान भाजपा सरकार में हर योजना को आधार से जोड़ा गया है। वर्तमान समय में आधार कार्ड हर भारतीय की पहचान बन गया है, लेकिन विदीत हो कि, आधार कार्ड कांग्रेस के डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने डॉ. मनमोहन सिंह की आधार अवधारणा की प्रशंसा की थी। विधेयक में 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया।

डॉ. मनमोहन सिंह को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें वर्ष 1987 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें उनकी अकादमिक उपलब्धियों और आर्थिक क्षेत्र में योगदान के लिए विश्वस्तर पर मान्यता दी गई थी। उनके नेतृत्व में देश ने आर्थिक स्थिरता के साथ-साथ विश्व मंच पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सादगी, ईमानदारी और ज्ञान के कारण उन्हें भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाएगा। उनके काम का उदाहरण लेना और भारत को और अधिक उन्नत और समृद्ध बनाना, यहीं डॉ. मनमोहन सिंह जी को वास्तविक श्रद्धांजलि होगी।

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लेखक- आरिफ शेख
कोंढवा-पुणे, मोबा. 9881057868

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