बेटी बचाओ जनआंदोलन के जनक डॉ. गणेश राख का पूरे विश्व में बोलबाला

बेटी बचाओ जनआंदोलन के जनक डॉ. गणेश राख का पूरे विश्व में बोलबाला
हम गर्व से कहते हैं कि हमारा महाराष्ट्र राजमाता जिजाऊ, अहिल्याबाई होलकर और क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले का है। इन बहादुर महिलाओं के महाराष्ट्र में आज भी बालिकाओं के जन्म का स्वागत नहीं किया जाता है, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है! आज भी कुछ परिवार बेटे के जन्म की आशा रखते हैं। जब लड़का पैदा होता है तो बेहद खुशी मनाई जाती है और मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं। कई लोग उनके यहां लड़की पैदा होती है तब चौंक जाते हैं। रिश्तेदार अस्पताल छोड़कर चले जाते हैं, बच्ची की मां रोती हुई बैठी रहती है, यह तस्वीर सिर्फ ग्रामीण भाग में ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के कई शिक्षित शहरों में भी देखने को मिलती है। कुलदीपक को खोजने की इस होड़ में लड़के-लड़कियों का अनुपात बिगड़ता जा रहा है। आज देश में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही हों। फिर भी, बेटी न चाहने पर बहुत जोर दिया जाता है। लड़की के जन्म की खुशी शायद ही कभी मनाई जाती है, परंतु पुणे के एक सच्चे ‘हीरो’ ने इस पर विराम लगा दिया है।
इस सच्चे नायक का नाम डॉक्टर गणेश राख है। डॉ. गणेश राख पुणे के हड़पसर परिसर में मेडिकेयर अस्पताल चलाते हैं। इस अस्पताल की खासियत यह है कि यहां लड़की के जन्म होने पर एक रुपया भी नहीं लिया जाता। इतना ही नहीं, लड़की के जन्म होने पर मेडिकेयर अस्पताल में दिवाली का माहौल होता है। अस्पताल को फूलों से सजाया जाता है। तरह-तरह की मिठाइयाँ लाई जाती हैं और लड़की के जन्म का बड़े उत्साह से स्वागत किया जाता है। डॉ. गणेश राख द्वारा शुरू की गई यह पहल आज एक आंदोलन बन गई है। डॉ. गणेश राख ने इस आंदोलन का नाम रखा है ‘बेटी बचाओ आंदोलन’।
डॉ. गणेश राख मूल रूप से सोलापुर जिले के करमाला तालुका के रहनेवाले हैं। घर की वित्तीय स्थिति बहुत ही नाजुक थी। उनके पिता पुणे में कुली थे। माँ लोगों के घरों में कपड़े और बर्तन साफ करती थीं। उनका डॉक्टर होने का यह सपना कैसे साकार होगा? परिस्थिति के साथ संघर्ष करने का संकल्प लेकर उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला किया। अपनी माँ के सहयोग से उन्होंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया। समाज में भेदभाव का सामना करते हुए और परिस्थितियों पर काबू पाते हुए गणेश राख आखिरकार डॉक्टर गणेश राख बने।
यह आंदोलन चौदह साल पहले शुरू हुआ
चौदह वर्ष पूर्व 3 जनवरी 2012 को डॉ. गणेश राख ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी। अस्पताल शुरू करने के बाद डॉ. गणेश राख को कई अनुभव प्राप्त हुए। इसमें जब लड़के का जन्म होता है तो परिवार खुशियां मनाता है। साथ ही ख़ुशी से बिल का भुगतान करते थे, लेकिन इसके विपरीत जब लड़की का जन्म हुआ तो परिवार के लोग मां-बेटी से मिलने तक नहीं आए। बिल का भुगतान करने से बचने की प्रवृत्ति थी तब एक विचार मन में आया कि अगर परिवार लड़की के जन्म का स्वागत नहीं करता है, तो हमने, अस्पताल की ओर से, लड़की के जन्म का स्वागत करने और एक भी रुपया नहीं लेने का फैसला किया और इस आंदोलन की नींव रखी गई।
चौदह वर्षों में 2,630 बालिकाओं के जन्म का स्वागत
इन चौदह वर्षों में मेडिकेयर अस्पताल में 2,630 लड़कियों के जन्म का स्वागत किया गया तथा इन लड़कियों के जन्म का बिल भी अस्पताल द्वारा माफ कर दिया गया। डॉ. गणेश राख द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन अब देश-विदेश तक पहुंच चुका है। डॉ. गणेश राख के इस आंदोलन में अब 4 लाख से अधिक निजी डॉक्टर, 13 हजार सामाजिक संगठन और 25 लाख से अधिक स्वयंसेवक शामिल हो चुके हैं। इन सभी लोगों के साथ डॉ. गणेश राख के नेतृत्व में बेटी बचाओ जन आंदोलन के बैनर तले देश-विदेश में 1000 से अधिक रैलियां/जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं।
पहले हुआ विरोध : जब डॉ. गणेश राख ने यह आंदोलन शुरू किया। उस समय उन्हें परिवार व मित्रों से काफी विरोध का सामना करना पड़ा। परिवार शुरू से ही गरीबी में जी रहा था और अब जबकि उनका बेटा डॉक्टर बन गया है तो चीजें बदल जाएंगी। हालाँकि डॉ. गणेश राख ने बेटी के जन्म पर एक भी रुपया नहीं लूंगा यह बताने पर परिवार ने शुरू में इसका विरोध किया, लेकिन वे फिर भी नहीं रुके। अंततः डॉ.गणेश राख का यह आंदोलन देश-विदेश तक पहुंच गया है। बेटी बचाओ जन आंदोलन के जनक डॉ. गणेश राख का पूरे विश्व में बोलबाला है।
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