आज

आज

आज

आज सुबह से शाम
क्या खोया क्या पाया,
कुछ याद नहीं यारों
बीता हर पल मुझे
याद आया।

आगे का कुछ पता नहीं
अतीत ने मेरा आज खाया,
हर शाख कहती रही नित
इक पात गिरा तो नया पाया।

ये हुए महान, वो हुए महान
हमेशा मैंने यही गीत गाया,
जो महान है जो बन रहा है
उसका कुछ ख्याल नहीं आया।

अतीत में ही बने रहना
आदमी का वृद्धत्व है
कहते गए विद्वान जग में
आज में जाग बुद्धत्व है।

पढ़ा लिखा सब गंवाया मैंने
मैं कभी कुछ सीख न पाया,
यादों के बोझ तले लदा लदा
न वह पाया और न यह पाया।

श्री सत्येंद्र सिंह
पुणे, महाराष्ट्र

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