झूठ है जी! झूठ है! सब झूठ है! सब झूठ है! यह प्रेम का बंधन झूठ है! जन्मों का बंधन झूठ है! सौगंध खाना झूठ है! किसी पर मर मिट जाना झूठ है! झूठी काया, झूठी माया! सब ने अब तक यही बताया! न मृग जैनी, न मीनाक्षी न गजगामिनी। न चपल-चंचला! न बिजली गिरानेवाली है! न बाँके नैनों वाली है। न चाँद से मुखड़े वाली है! न गर्दन सुराही वाली है! सब झूठ है! सब झूठ है! सब झूठ है जी झूठ हैं!
न मोती जैसे दांत हैं। न झील जैसे नैन हैं! न कोयल जैसी वाणी है! न नारी अद्भुत प्राणी है! सब झूठ है सब झूठ है। न कोई किसी पर मरता है न किसी के लिए मरता है। दिल में जगह नहीं कोई न किसी के दिल में कोई रहता है! झूठ है! जी, झूठ है! सब झूठ है सब झूठ है!
प्रेम में पागल होना झूठ है! नैनो से घायल होना झूठ है! सब झूठ है! सब झूठ है! जी झूठ है सब झूठ है! जो पड़ता नहीं दिख्वाई, जो कानों को पड़े नहीं सुनाई!
सब झूठ है सब झूठ है। सब झूठ है सब झूठ है। इस म्यान में तलवार नहीं, बस, ऊपर से दिखता उसका मूठ है। हैं काव्य-रसिक हिंदी प्रेमी हम हरे वृक्ष हैं हिंदी के! पर वृक्ष पुराने हैं हम सब, हिंदी बगिया के ठूंठ हैं। सब झूठ है सब झूठ है जी झूठ हैं सब झूठ है!
मन में होली की है उमंग तो खूब खुशी से खेलो रंग! रंगों से कोई नहीं भीगता, चाहे कितना भी बरसे। जो चुनरी वाली भीग गयी वह झूठ है जी झूठ है। उन सब को मेरा नमन आज! सैनिक बाबा घोषित करते! नारी तो बस नारी है। यह अबला नहीं, चिनगारी है। वह शक्ति पुंज है सबला है! सब शेष धारणा झूठ है। जी, झूठ है! सब झूठ है! सब झूठ है! सब झूठ है!
श्री राम प्रताप चौबे (पूर्व प्राध्यापक (तिब्बती व हिंदी भाषा)
Post Comment