31/07/2025

संत रविदासजी जयंती के उपलक्ष्य में विनम्र अभिवादन

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संत रविदासजी जयंती के उपलक्ष्य में विनम्र अभिवादन

‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ – यह केवल एक साधारण वचन नहीं, बल्कि जीवन की सबसे गहरी सच्चाई और आध्यात्मिकता का सार है। संत रविदासजी ने इस कथन के माध्यम से हमें यह बताया कि बाहरी आडंबर, तीर्थयात्राएँ, अनुष्ठान और बाह्य पवित्रता से अधिक महत्वपूर्ण मन की निर्मलता और सच्ची भक्ति है।

संत रविदासजी का जीवनदर्शन
संत रविदासजी का जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज जात-पात और छुआछूत जैसी कुरीतियों से ग्रसित था। उस समय समाज में यह धारणा थी कि केवल उच्च जातियों के लोग ही पूजा-पाठ कर सकते हैं और केवल गंगा स्नान करने से ही मनुष्य पवित्र हो सकता है, लेकिन संत रविदासजी ने अपने जीवन और उपदेशों से यह साबित किया कि सच्ची भक्ति मन की पवित्रता में बसती है, न कि बाहरी कर्मकांडों में।

उनका यह कथन ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ तब प्रकट हुआ जब एक ब्राह्मण स्त्री गंगास्नान के लिए जाने की तैयारी कर रही थी और उनसे पानी भरने के लिए कठौती (छोटे पात्र) में जल भरने को कहा। तब संत रविदासजी ने प्रेमपूर्वक कहा कि यदि मन पवित्र है तो गंगा का स्नान करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि ईश्वर मन की पवित्रता को देखते हैं, न कि बाह्य आडंबरों को। यह सुनकर वह स्त्री चकित हो गई और समझ गई कि सच्चा ईश्वर प्रेम और सेवा में ही बसता है।

आज के संदर्भ में संत रविदासजी का संदेश
आज भी समाज में बाह्य पूजा और दिखावे की धार्मिकता अधिक हो गई है, लेकिन संत रविदासजी का यह वचन हमें आत्मचिंतन करने के लिए प्रेरित करता है। यदि हमारा मन ईर्ष्या, घृणा, लोभ और अहंकार से भरा है, तो कितने ही मंदिरों में माथा टेकें, तीर्थयात्राएँ करें, यज्ञ-हवन करें – सब व्यर्थ है। लेकिन यदि हमारा मन शुद्ध, निर्मल और प्रेमपूर्ण है, तो हमारे घर, कार्यस्थल या कहीं भी ईश्वर की अनुभूति हो सकती है।

आज हम देखते हैं कि समाज में लोग धर्म के नाम पर भेदभाव, हिंसा और नफरत फैला रहे हैं, लेकिन क्या यह सच्चा धर्म है? क्या ईश्वर ऐसे हृदय में वास कर सकते हैं जो नफरत और छल से भरा हो? संत रविदासजी हमें सिखाते हैं कि धर्म का सच्चा स्वरूप प्रेम, करुणा, समानता और सेवा में है। यदि हम किसी भूखे को भोजन कराते हैं, दुखी की सहायता करते हैं, किसी का अपमान नहीं करते और अपने मन को पवित्र रखते हैं, तो वही सच्ची पूजा है।

हमारा संकल्प
-इस पावन अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम संत रविदासजी की शिक्षाओं का पालन करेंगे।
-मन को पवित्र रखेंगे और सत्य वचन का पालन करेंगे।
-जात-पात, धर्म, ऊँच-नीच के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी से समानता का व्यवहार करेंगे।
-जरूरतमंदों की सहायता करेंगे और सेवा को ही सच्चा धर्म मानेंगे।
-धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा, नफरत और पाखंड से दूर रहेंगे।
-कर्म और भक्ति में सच्चा संतुलन स्थापित करेंगे ताकि ईश्वर को अपने भीतर महसूस कर सकें।
यदि हम इस संदेश को अपने जीवन में अपनाएँ, तो हर घर, हर हृदय एक मंदिर बन जाएगा और मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।

कहे रविदास खालिक से, तू क्यों दूर बसे,
जो प्रेम भाव से रमि रहे, सोई खुदा बसे।
जय गुरु रविदास!

-श्री चाँद शेख

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