31/07/2025

संभावना (लघु कथा)

Satyedra Singh

संभावना (लघु कथा)

जब राज बहादुर बुढ़ापे की ओर बढ़ने लगे तो उनके बेटे ने घर की जिम्मेदारी में हाथ बँटाना शुरू कर दिया। उन्होंने बेटी का विवाह कर दिया तो उसकी ओर से निश्चिंत हो गए। चाहते थे कि हाथ-पाँव चलते बेटे का भी विवाह हो, परंतु बेटा जगदीश यह कह कर टाल देता कि वह अपनी कमाई से संतुष्ट हो जाए और स्वतंत्र रूप से गृहस्थी चलाने योग्य हो जाए तब विवाह की सोचेगा। उसने अपने पिता से कहा कि घर बनाते समय जो कर्ज चुक भी नहीं पाया और बहन के विवाह में कर्ज और चढ़ गया तो ऐसी हालत में और खर्च बढ़ाना उचित नहीं है। राज बहादुर अंदर ही अंदर यह सुनकर प्रसन्न होते, लेकिन बिना दर्शाए कहते, कहते तो ठीक हो पर सही उम्र में काम होना उचित रहता है। समाज भी देखना पड़ता है। वे केवल कहने के लिए कहते, पालन करने के लिए नहीं।

ऐसे ही समय ठीक ठाक कट रहा था। बेटी एक बच्चे की माँ बन गई थी। जगदीश का भी विवाह हो गया। काम भी ठीक चल ही रहा था। राज बहादुर कढ़ाई का काम करते थे पर नज़र कमजोर होने की वजह से काम बंद कर दिया था। फिर भी जो काम मिलता कर लिया करते। उनकी आमदनी में घर चल जाता था पर वे कोई ऐसी व्यवस्था नहीं कर सके जिससे बुढ़ापे में पेंशन मिल सके। न सरकारी नौकरी थी न किसी बड़ी कंपनी की नौकरी, जिससे रिटायर होने पर पेंशन मिलती है। वरिष्ठ नागरिक की उम्र पार करने पर उन्होंने वृद्धावस्था पेंशन के लिए कोशिश की। केंद्र व राज्य सरकार की पेंशन योजना में पेंशन के लिए आवेदन करने गए तो बताया गया कि केवल निराधार वृद्धों को पेंशन दी जाती है। निराधार का मतलब जिनके बेटा न हो। अगर बेटा हो भी तो परिवार की आय एक निश्चित रकम से कम होनी चाहिए। उनके बेटे जगदीश की आय आयकर के दायरे में तो नहीं आती परंतु उस सीमा से अधिक थी जिस सीमा तक सरकार की पेंशन मिलती है। राज बहादुर यह तो कह ही नहीं सकते कि उनका बेटा नहीं है। जगदीश एक कंपनी में काम करता था। उसके वेतन से घर चल जाता था। फिर भी कुछ ऐसे काम थे कि उसका वेतन कम पड़ जाता। घर का टैक्स यानी प्रापर्टी टैक्स तीन गुना बढ़ गया था और जगदीश टैक्स जमा नहीं कर पा रहा था। टैक्स जमा न करने के नोटिस आते तो जगदीश अपने पिता तक नहीं पहुंचने देता।

तीन साल का प्रापर्टी टैक्स देना बाकी था, इसका नोटिस देखा तो राज बहादुर सोच में पड़ गए। सोच रहे थे कि जगदीश ने टैक्स जमा क्यों नहीं किया? जगदीश से पूछने में भी उन्हें संकोच हो रहा था। क्योंकि, जगदीश ने उनसे कभी कुछ छुपाया ही नहीं। वे सोच रहे थे कि जरूर कोई गंभीर बात है। खाना खाने के बाद सब सोने चले गए पर राज बहादुर को नींद नहीं आ रही। वे वॉशरूम के लिए उठे तो देखा जगदीश के कमरे की लाइट जल रही है। पता नहीं उन्हें कमरे में झाँकने की इच्छा ने मजबूर कर दिया। वे किसी के कमरे में झाँकने को बहुत बुरा मानते थे, परंतु इस बार वे अपने आपको रोक नहीं सके। देखा जगदीश लेपटॉप खोल कर बड़ी गंभीरता से कुछ देख रहा है और कागज पर कुछ नोट करता जा रहा है। आखिर कमरे में घुसते हुए पूछ बैठे, जगदीश बेटा अभी तक सोए नहीं? क्या काम बहुत ज्यादा है। जगदीश चौंक गया।

कुर्सी से उठा और सोचा कि पिताजी से छुपना ठीक नहीं तो बोला, पापा जॉब ढूंढ़ रहा हूँ। कंपनी में छँटनी हो रही है। एकाध हफ्ते में मेरा नंबर भी आ सकता है। छँटनी? हाँ पापा छँटनी, तीन साल से यह तलवार लटकी हुई है पर अब सिर पर गिरने ही वाली है। मैंने प्रॉपर्टी टैक्स जमा नहीं किया बल्कि छोटी सी बचत कर रहा था ताकि अचानक ऐसा वक्त आए तो कम से कम रसोई चल सके। नया जॉब मिलने पर टैक्स जमा कर दूंगा। सॉरी पापा! राज बहादुर सोचते रहे कि दिन पर दिन बढ़ती महँगाई, तीन गुना घर का टैक्स और बेरोज़गारी की लटकती तलवार, जीना कैसे संभव होगा। ऊपर अँधेरे में आसमान की ओर हाथ उठाते हुए बड़बड़ाए जीने की संभावना मर नहीं सकती। तभी जगदीश कमरे से बाहर निकल आया और बोला, पापा मुझे नया जॉब मिल जाएगा। कल इंटरव्यू है। राज बहादुर के चेहरे पर कैसे भाव आए, उन्हें जगदीश नहीं देख सका।

Satyedra-Singh-185x300 संभावना (लघु कथा)डॉ. सत्येंद्र सिंह,
पुणे, महाराष्ट्र

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