विश्व खाद्य दिवस 2024

विश्व खाद्य दिवस 2024

विश्व खाद्य दिवस 2024

विश्व खाद्य दिवस 2024

परिचय

भोजन जीवन का परम संसाधन है, जो स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए आवश्यक है। वैश्विक खाद्य उत्पादन दुनिया की आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त से अधिक होने के बावजूद लाखों लोग अभी भी पौष्टिक और पर्याप्त भोजन प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह अंतर सभी के लिए खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने में लगातार चुनौतियों को उजागर करता है। प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाने वाला विश्व खाद्य दिवस इन चुनौतियों का एक शक्तिशाली अनुस्मारक (रिमांइडर) के रूप में कार्य करता है। यह भूख मिटाने और जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानताओं और सामाजिक विसंगतियां जैसी बाधाओं को दूर करने में सक्षम और सुदृढ़ वैश्विक खाद्य प्रणालियों के निर्माण की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।

इतिहास और विषय

विश्व खाद्य दिवस प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसकी जड़ें 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना में हैं। 1979 में एफएओ के 20वें आम सम्मेलन के दौरान आधिकारिक रूप से स्थापित यह विशेष दिन वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मुद्दों पर प्रकाश डालता है। ‘भोजन पहले आता है’ विषय के साथ पहला उत्सव 1981 में हुआ और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1984 में इसका समर्थन किया।

विश्व खाद्य दिवस 2024 का विषय ‘बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए भोजन का अधिकार’ है। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा द्वारा मान्यता प्राप्त भोजन का अधिकार केवल जीवित रहने के बारे में नहीं है बल्कि लोगों को स्वस्थ, गरिमापूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाने को लेकर भी है। वैश्विक भूख को दूर करने के लिए केवल खाद्य उत्पादन में वृद्धि की ही जरूरत नहीं है बल्कि लोगों तक पहुंचने के लिए स्थायी कृषि पद्धतियों, न्यायसंगत वितरण प्रणालियों और सहायक सामाजिक नीतियों पर बल देता है, जिसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता है।

खाद्य सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता

भारत में दुनिया की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहता है। भारत ने कुपोषण, गरीबी उन्मूलन और कृषि स्थिरता पर केंद्रित विभिन्न कार्यक्रमों और नीतियों के माध्यम से भूख से निपटने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। इस वर्ष के विश्व खाद्य दिवस की थीम लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगी। भारत के विविध खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में कम आय वाले परिवारों, बच्चों और बुजुर्गों को लक्षित करने वाली राष्ट्रीय योजनाएं और स्थानीय पहल शामिल हैं। सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं भूख और कुपोषण से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं-

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1. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए): यह अधिनियम 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी के लिए सब्सिडी वाले खाद्यान्न सुनिश्चित करता है, जिससे 16 करोड़ महिलाओं सहित लगभग 81 करोड़ व्यक्ति लाभान्वित होते हैं।

2. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) : कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सहायता के लिए शुरू की गई पीएमजीकेएवाई अतिरिक्त पांच वर्षों तक जारी रहेगी। इसमें लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया जाएगा।

3. पीएम पोषण योजना: सरकारी स्कूलों में बच्चों की पोषण स्थिति को बढ़ाने के लिए बनाई गई इस योजना का वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए कुल बजट 12,467.39 करोड़ रुपये है, जो भूख को प्रभावी ढंग से लक्षित करता है।

4. अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई): सबसे कमजोर लोगों पर केंद्रित एएवाई 8.92 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है और अपने लाभार्थियों के बीच महिला सशक्तिकरण पर जोर देता है।

5. पोषण युक्त (फोर्टिफाइड) चावल: 2019-20 और 31 मार्च, 2024 के बीच पीडीएस के माध्यम से लगभग 406 लाख मीट्रिक टन पोषण युक्त (फोर्टिफाइड) चावल वितरित किया गया, जिससे देश भर में लाखों लोगों के पोषण सेवन में वृद्धि हुई।

6. मूल्य स्थिरता और किफायती पहलः सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की मूल्य अस्थिरता का प्रबंधन करने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) का उपयोग किया है। रणनीतिक उपायों में प्याज बफर को बढ़ाना और भारत दाल, भारत आटा और भारत चावल जैसे सब्सिडी वाले उत्पादों को लॉन्च करना शामिल है, जिससे कम आय वाले समूहों के लिए सामर्थ्य सुनिश्चित हो सके।

वैश्विक स्तर पर भारतीय थाली की चर्चा

हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट में भारतीय थाली को पोषण और निरंतरता में उल्लेखनीय योगदान के लिए मान्यता मिलने के साथ वैश्विक पहचान मिली है। पारंपरिक भारतीय आहार, मुख्य रूप से पौधे आधारित, अनाज, दालों, दालों और सब्जियों के आसपास केंद्रित है, जो प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को काफी कम करता है और पशु-आधारित आहार की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अगर वैश्विक आबादी भारत के उपभोग पैटर्न को अपनाती है, तो हमें वैश्विक खाद्य उत्पादन को बनाए रखने के लिए 2050 तक पृथ्वी के केवल 0.84 प्रतिशत की आवश्यकता होगी। यह मान्यता भारत को स्थायी खाद्य पद्धतियों में सबसे आगे रखती है। यह दर्शाती है कि कैसे स्थानीय परंपराएं सभी के लिए स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हुए पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकती हैं।

निष्कर्ष

भूख और कुपोषण से निपटने के लिए भारत की पहल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने, खाद्य वितरण को बढ़ाने और आर्थिक रूप से कमजोर आबादी का सहयोग करने के उद्देश्य से व्यापक कार्यक्रमों और नीतियों के माध्यम से भारत भूख उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है। विश्व खाद्य दिवस पर ये प्रयास सतत विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से एसडीजी 2: कोई भूखा न रहे, इसको प्राप्त करने के लिए देश के समर्पण को रेखांकित करते हैं। सतत कृषि पद्धतियों और सामाजिक कल्याण योजनाओं में नवाचार और निवेश जारी रखते हुए भारत न केवल अपनी चुनौतियों का समाधान कर रहा है, बल्कि भूख और कुपोषण के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के लिए एक सकारात्मक उदाहरण भी स्थापित कर रहा है।

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