राजेश श्रीवास्तव उर्फ मानवेंद्र प्राकृतेय की पुस्तक ‘सीधा सत्य’ का विमोचन करना मेरा सौभाग्य : उल्हास पवार
पुणे, जून (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
मैंने आचार्य रजनीश से सीखा कि जीवन में जो सुख है, वह दुख है और जो दुख है वह सुख है। राजेश श्रीवास्तव की पुस्तक ‘सीधा सत्य’ का विमोजन करने का मिला यह अवसर मेरा सौभाग्य है। सत्य को सीधा बोलने में साहस की आवश्यकता होती है। सत्य के शोध में जीवन का समर्पण करने वाले लेखक श्री श्रीवास्तव ने यह पुस्तक अपनी दिव्य व्यक्तित्व से संपन्न मां हेमलतादेवी श्रीवास्तव को समर्पित की है। मैं चाहता हूं कि यह पुस्तक ‘सीधा सत्य’ सभी पढ़ें। सत्य को जानने की तड़प ‘सीधा सत्य’ की उद्घोषणा से नव जागरण बने। लेखक राजेश श्रीवास्तव को उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएं। यह प्रबुद्ध प्रेरक संबोधन हिंदी-मराठी सहित संपूर्ण भारतीय साहित्य के लिए समर्पित प्रचारक, संयुक्त उच्चतम विकास हेतु अग्रसर और पुणे सहित संपूर्ण महाराष्ट्र व राष्ट्र में प्रसिद्ध भारतमाता के सच्चे सुपुत्र श्री उल्हास पवार ने गत् दिवस महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के प्रांगण में श्री राजेश श्रीवास्तव उर्फ मानवेंद्र प्राकृतेय के शोध-बोध, प्रबोध के जिंदा प्रतीक पुस्तक ‘सीधा सत्य’ का विमोचन करते हुए जब दिया तो संपूर्ण प्रांगण करतल-स्वागत से गूंज उठा।
महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा की कार्याध्यक्षा और गरवारे महाविद्यालय के हिंदी विभाग की पूर्व अध्यक्षा रह चुकीं व महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के इस 88 वीं वर्षगांठ समारोह की आयोजिका डॉ. नीला बोर्वणकर ने ‘सीधा सत्य’ पुस्तक व राजेश श्रीवास्तव की सत्य के प्रति समर्पित शोध की प्रशंसा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘द्वैत’ नहीं है। अद्वैत कहने पर भी द्वैत कहना पड़ता है, जिससे भ्रम पैदा होता है।
सत्य एक है, वह समग्र है
नहीं द्वैत का कोई रोग!
एक भी कहना उचित नहीं है,
सिर्फ वही है, वही अशोक!
जो पाया है- लौटाया है,
वरना मेरा सामर्थ्य ही क्या,
सब है इसलिए ‘मैं’ हूं,
वरना, मेरे होने का अर्थ ही क्या?
डॉ. बोर्वणकर ने इस ‘स्वांत: सुखाय’ लेखन की भी सार्थकता को स्पष्ट किया।
मानवेंद्र प्राकृतेय उर्फ राजेश श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक ‘सीधा सत्य’ में की गई घोषणा ‘सीधा सत्य’ को लेकर कहा, अब तक सत्य को चासनियों में लपेटकर कहा गया है। आपकी आत्मा सत्य के लिए तड़प रही है, इसीलिए यह ‘सीधा सत्य’ की घोषणा है। आप भी सत्य का उद्घोष कीजिए। यह दावा धर्म, पंथ, पूजा-पाठ या कर्मकांड नहीं है, आप स्वयं ‘सर्वात्मा’ हैं, सत्य का दर्शन कीजिए। इसमें मैंने जो देखा, जो जाना है, वही प्रस्तुत किया गया है। यह मेरी स्वांत: सुखाय रचना है।
कार्यक्रम का सूत्र-संचालन सभा के सचिव श्री रविकिरण गलंगे और आभार प्रदर्शन ज्ञानदा की सुश्री सुनेत्रा गोंदकर ने किया।
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