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बारिश में भीगे हुए लम्हे…

बारिश में भीगे हुए लम्हे...

बारिश में भीगे हुए लम्हे…

बारिश में भीगे हुए लम्हे…

पुणे में बारिश का मौसम पिछले दो सप्ताह से पूरे शबाब पर है। जो बारिश आमतौर पर जून महीने में आती है, उसने इस बार मई के मध्य में ही दस्तक दे दी। गर्मी से बेहाल लोगों और प्यासी धरती को उसने राहत दी।

उस दिन ऐसे ही दोपहर में जब धूप अपनी चरम सीमा पर थी, ज़मीन तप रही थी और हरियाली मुरझा गई थी। तभी अचानक आसमान ने अपना रंग बदला। तेज़ धूप की चिलचिलाहट पर पलों में बादलों का जमावड़ा छा गया और फिर शुरू हुई बूंदों की रिमझिम।
पुणे और आसपास के इलाकों में पिछले कुछ दिनों से बारिश ने डेरा जमाया हुआ है। पुणे के कोंढवा में भी बारिश का अच्छा खासा जमावड़ा रहा। कोंढवा के पहाड़ों ने हरी चादर ओढ़ ली थी।

मैं उस दिन झमाझम हो रही बारिश को देख रहा था। दोपहर का समय था। खिड़की से बाहर देखा, तो आसमान से मोती जैसी बूंदें धरती पर उतर रही थीं। उन बौछारों को हवा दिशा दे रही थी। पलभर में बादलों का काला झुंड ज़मीन पर गरजता हुआ बरसने लगा। उन टप-टप गिरती बूंदों ने सड़कों, छतों और पेड़ों की पत्तियों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।

हर बूंद के साथ मन में यादों की सतरंगी बौछारें भी उमड़ने लगीं। बचपन में आंगन में खेलती बारिश, दोस्तों के साथ मस्ती, स्कूल की छुट्टियों में भीगने का वो मासूम आनंद सब कुछ बारिश की उन बूँदों की आवाज़ के साथ मन के किसी कोने से बाहर आने लगा।
हवा की सरसराहट में पेड़-पौधे थिरकने लगे थे और इन सबके बीच मन फिर पुरानी गलियों में भटकने लगा।

हर बूंद के साथ यादों की एक नई लहर उठने लगी। किसी ने कहा है कि, बारिश जैसा मौसमी और यादों से भीगा मौसम कोई दूसरा नहीं होता।

उन बूंदों के साथ ही मन फिर उस बचपन की गलियों में चला गया। स्कूल की छुट्टियों में मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू में भीगते हुए मस्ती करना, उन छोटी-छोटी बातों की कीमत और चिंता रहित बचपन की मिठास। उस वक्त की बारिश बस यूँ ही बेमौसम शुरू हो जाती थी, और हर किसी को भिगो देती थी।

पिछले कुछ दिनों से ऐसी ही झड़ी कभी आती, कभी जाती रही। कोंढवा की पहाड़ियाँ हरी चुनरी ओढ़े खड़ी थीं। हवा की थपकी से पत्ते नाच रहे थे और उन्हीं पत्तों की तरह मन भी पुरानी यादों की गलियों में खो गया।

आज की इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कभी-कभी मन करता है, वक़्त की रफ़्तार को थाम लिया जाए। खिड़की के पास बैठ कर एक कप गर्म चाय के साथ बाहर टपकती बारिश को निहारा जाए और यादों का पुराना बाग़ फिर महक उठे।

जिस तरह आसमान में बादल घुमड़ते हैं, वैसे ही मन में भी यादों का अंबार लग जाता है। कभी हँसाने तो कभी आँखें नम कर देने वाला बचपन, कॉलेज के दिन, दोस्तों की शरारतें, प्रेम के पल और ज़िंदगी के कुछ अधूरे मोड़ सब कुछ इस बारिश की फुहारों के साथ मन में फिर लौट आता है।

टप-टप गिरती हर बूंद की तरह ज़िंदगी भी है। हर दिन कोई नया अनुभव लेकर आता है। दुकानों की टप-टप करती टीन की छतें, और उस भीड़ में नीले आसमान को तकता मैं।

मन बार-बार यही सोचता है कि, ‘कल कैसा होगा?’ लेकिन सच तो यह है कि किसी का कुछ भरोसा नहीं। ‘हर पल जीते-जीते, बीते कल की पूंजी, आज की सच्चाई और आने वाले कल की अनिश्चितता को गले लगाना’, इसी का नाम तो ज़िंदगी है।

बारिश की तरह कुछ लम्हे कुछ देर के लिए होते हैं और कुछ यादों की तरह हमेशा दिल में बस जाते हैं। ये बारिश स़िर्फ मौसम नहीं, इंसान के दिल में जमी भावनाओं को बहाकर ले जाने वाली ऋतु है। इन बौछारों के साथ मैं फिर उन्हीं पुरानी गलियों में लौट गया।
जैसे बारिश ज़मीन को भिगोती है, वैसे ही दिल को भी सुकून देती है।

बारिश की हर बूंद यादें तो जगाती हैं, लेकिन वही बूंद जीने की नई उम्मीद भी देती है। किसी कहानी की तरह, जहाँ आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता। आज बारिश है, कल शायद धूप मगर हर दिन ज़िंदगी का एक नया पन्ना खोलता है।

आज का दिन ढल गया, बारिश थम गई, लेकिन दिल अब भी यादों के मोती समेटे बैठा है। कल क्या होगा, यही देखना असली ज़िंदगी है। क्योंकि बारिश की तरह ही ज़िंदगी भी अनिश्चित और बेहद ख़ूबसूरत है!

Ashif-Shaikh-233x300 बारिश में भीगे हुए लम्हे...
-आरिफ आसिफ शेख
कोंढवा, पुणे
मो. 9881057868

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