कफ़न के ताने-बाने (भाग-7)
कफ़न के ताने-बाने (भाग-7)
कथा-ढाँचे के तीन भागों की तरह इस कहानी में जो वस्तु सर्वाधिक ध्यान आकर्षित कर है, वह है- घीसू-माधव का चरित्र। घीसू और माधव बाप-बेटे हैं। दो व्यक्ति हैं, किन्तु उनका चरित्र एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं। बाप घीसू साठ वर्ष का है पर्याप्त अनुभवी। बेटा माधव अभी थोड़ा कच्चा है, नादान है। किन्तु अपने पिताश्री के पदचिन्हों पर ही चलने वाला ‘सपूत’ है। दोनों की धातुगत मूल विशेषता एक ही है। इनके चरित्र के तीन पहलू स्पष्ट हैं। इनके चरित्र का पहला पहलू अधिकांशत: कथा-ढाँचे के पहले भाग से संबंधित है। इस पहलू के अंतर्गत उनके चरित्र की निम्नांकित विशेषताएँ अंकित की गयी हैं-
संवेदनहीनता- पशुवत अमानवीय पारिवारिक रिश्ते। वह औरत इन दोनों बे-गैरतों का दोज़ख भरती थी ….आज प्रसव वेदना से मर रही थी और ये दोनों शायद इसी इंतजार में थे कि वह मर जाए तो आराम से सोएँ। माधव चिड़कर बोला, मरना ही है तो मर क्यों नहीं जाती। देखकर क्या करूँ।
दोनों आलसी हैं, निकम्मे हैं, कामचोर और चोर हैं। घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता। माधव इतना कामचोर था कि आधे घंटे काम करता तो घंटे भर चिलम पीता। …विचित्र जीवन था इनका …फटे चीथड़ों से अपनी नग्नता को ढँके हुए, जीये जाते थे। संसार की चिंताओं से मुक्त (लापरवाह?) कर्ज से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते, मगर कोई गम नहीं। दूसरों के खेतों से आलू, मटर और गन्ने उखाड़ लाते हैं।
अपने बेटे माधव को झांसा देकर बाप-घीसू आलुओं का बड़ा हिस्सा साफ़ कर देना चाहता है। किन्तु बेटा माधव बड़ी चतुराई भरे शब्दों से अपने बाप घीसू की चाल को फेल कर देता है। (दोनों के संवाद दर्शनीय हैं मूल ही पठनीय है) उनके जीवन की एक मात्र साध है, पेट भरना। जीवन की एक मात्र उपलब्धि है भरपेट अच्छी दावत, जो घीसू को ठाकुर की बरात में प्राप्त हुई थी और माधव की यह महत्वाकांक्षा पूरी होनेवाली है। उनके अस्तित्व का एकमात्र केंद्रबिंदु है -पेट सिर्फ पशुवत् पेट- अजगर की उपमा एकदम सटीक।
वे दोनों नाटक करने में माहिर हैं। कफ़न के लिए पैसे मांगते हेतु रोते हैं, गिड़गिड़ाते हैं, घीसू ने जमीन पर सिर रखकर आँखों में आँसू भरे हुए कहा-सरकार ! बड़ी विपत्ति में हूँ माधव की घरवाली रात को गुजर गई। रात भर तड़पती रही सरकार! हम दोनों उसके सिरहाने बैठे रहे। दवा-दारू जो कुछ हो सका, सब कुछ किया, मगर वह हमें दागा दे गई। कथा क्रम के तीसरे भाग में घीसू और माधव के चरित्र एवं व्यक्तित्व के असली पहलू उजागर होते हैं। जब उनका पेट मनोवांछित रूप से भर जाता है- उनके जीवन की अतृप्त आकांछाओं की पूर्ति हो जाती है, तब वे अपने पशुवत अजगरी चोले को फाड़कर मूल मानवीय रूप में उपस्थित हो जाते हैं।
डॉ. केशव प्रथमवीर
पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष
सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ
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