वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 को संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया
वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 को संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया है। अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए कहा कि सरकार प्रस्तावित कानून की आगे की जांच के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास इस विधेयक के बारे में छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।
इससे पहले श्री रिजिजू ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य धार्मिक निकाय के कामकाज में हस्तक्षेप करना नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के वंचित और गरीब वर्गों को न्याय प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है और केंद्र इस पर कानून बनाने के लिए पूरी तरह सक्षम है। श्री रिजिजू ने कहा कि यह कानून सच्चर समिति और पिछली सरकारों की विभिन्न समितियों की सिफारिशों के अनुसार लाया गया है। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्डों के कामकाज में कई खामियां हैं और कुछ लोगों ने इन बोर्डों पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि यह कानून पारदर्शिता लाने और मुस्लिम महिलाओं तथा पिछड़े मुसलमानों का उचित प्रतिनिधित्व तय करने के लिए लाया गया है। श्री रिजिजू ने कहा कि वक्फ बोर्डों से संबंधित लगभग 12 हजार मामले लंबित हैं और इस विधेयक में ऐसे मामलों को छह महीने में निपटाने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में अतिक्रमण संबंधी समस्याओं के संबंध में एक वर्ष के भीतर लगभग 200 शिकायतें प्राप्त हुईं। उन्होंने विपक्ष के इन आरोपों को खारिज कर दिया कि विधेयक हितधारकों के साथ बिना उचित परामर्श के लाया गया है। श्री रिजिजू ने कहा कि इस विधेयक को लाने से पहले हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया था। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल में एक न्यायिक और एक तकनीकी सदस्य होगा।
इससे पहले कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कझगम, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), वामपंथी और अन्य दलों ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता के विरूद्ध बताया। कांग्रेस सांसद के. सी. वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक देश के संघीय ढांचे पर हमला है। उन्होंने कहा कि विधेयक में वक्फ बोर्ड की शासी परिषद में गैर मुस्लिम को रखने का प्रावधान है जो आस्था और धर्म पर हमला है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक महाराष्ट्र और हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लाया गया है। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने वक्फ बोर्ड में अन्य धार्मिक समुदायों के सदस्यों के नामांकन के प्रावधान पर सवाल उठाया। तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंधोपाध्याय ने इस विधेय़क को असंवैधानिक और संघीय ढांचे के विरूद्ध बताया। द्रविड़ मुनेत्र कझगम की कनिमोझी करुणानिधि ने भी इस कानून का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सरकार संविधान, संघवाद और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जा रही है। एनसीपी की सुप्रिया सुले ने विधेयक को वापस लेने या आगे की जांच के लिए इसे स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की। आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा कि कानून ने सारी शक्ति जिला मजिस्ट्रेट को दे दी है जो वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष से अधिक शक्तिशाली होगा। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राधाकृष्णन ने भी बिल का विरोध करते हुए इसे स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की। रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन. के. प्रेमचंद्रन ने कहा कि यह संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। विधेयक का विरोध करते हुए एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह भेदभावपूर्ण है।
जनता दल यूनाइटेड के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने इन आरोपों को खारिज कर दिया कि यह विधेयक एक विशेष समुदाय के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड कानून के जरिए बनी संस्था है और इसमें पारदर्शिता लाने के लिए यह कानून लाया गया है। उन्होंने कहा कि विपक्ष इस विधेयक के बारे में लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। श्री सिंह ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए दिल्ली में सिख दंगों का जिक्र किया। तेलगुदेशम पार्टी के जीएम हरीश बालयोगी ने कहा कि अगर वक्फ बोर्ड से संबंधित शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है, तो पारदर्शिता बनाए रखने के लिए संशोधन लाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अगर सभी गलतफहमियों को दूर करने के लिए व्यापक चर्चा के लिए कानून को प्रवर समिति के पास भेजा जाएगा तो पार्टी इसका समर्थन करेगी।
वक्फ संशोधन विधेयक-2024 का उद्देश्य मौजूदा कानून की कमियों को दूर करना और वक्फ संपत्तियों के प्रशासन तथा प्रबंधन की दक्षता बढ़ाना है। विधेयक में वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करने का प्रावधान है। यह जिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी के पद के किसी अन्य अधिकारी को वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए जिलाधिकारी द्वारा विधिवत नामांकित सर्वेक्षण आयुक्त का कार्य भी प्रदान करता है। इसमें केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की व्यापक आधार वाली संरचना और मुस्लिम महिलाओं तथा गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का भी प्रावधान है। यह बोहरा और आगाखानी के लिए एक अलग औकाफ बोर्ड की स्थापना और मुस्लिम समुदायों के बीच शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी और अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व का भी प्रावधान करता है। विधेयक में दो सदस्यों वाले ट्रिब्यूनल ढांचे में सुधार करने और ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ नब्बे दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर उच्च न्यायालय में अपील करने का भी प्रावधान है।
मुसलमान वक्फ अधिनियम 1923 को निरस्त करने के लिए मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 भी सदन में पेश किया गया।
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