राज्य में 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र प्राकृतिक खेती के तहत लाने का कृषि विभाग का उद्देश्य : कृषि आयुक्त प्रवीण गेडाम
पुणे, मई (जिमाका)
प्राकृतिक खेती के उत्पाद नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। राज्य के 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को प्राकृतिक खेती के तहत लाना कृषि विभाग का लक्ष्य है। यह जानकारी राज्य के कृषि आयुक्त प्रवीण गेडाम ने दी है।
कृषि व किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार व कृषि विभाग महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से प्राकृतिक खेती के बारे में ‘विज्ञान और प्राकृतिक खेती’ विषय पर यशदा में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में वे बोल रहे थे।
इस अवसर पर कृषि व किसान विभाग भारत सरकार व एकीकृत पोषण प्रबंधन के उपसचिव रचना कुमार, सहसचिव डॉ. योगिता राणा, आईसीएआर के सहायक महासंचालक एस. के. शर्मा, डॉ. राजबीर सिंह, कृषि संचालक (आत्मा) दशरथ तांभाले, पद्मश्री संजय पाटिल, देश के पश्चिम भाग के राज्य के कृषि सचिव, आयुक्त, संचालक, आईसीएआर के शास्त्रज्ञ, किसान आदि उपस्थित थे।
डॉ. गेडाम ने कहा कि डॉ. पंजाबराव देशमुख प्राकृतिक खेती मिशन के तहत राज्य में कम से कम 25 लाख हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती के तहत लाना इसका उद्देश्य है। प्राकृतिक कृषि नीति कार्यान्वयन के लिए जन प्रतिनिधित्व का भी साथ सहयोग लेने का प्रयास है।
प्राकृतिक खेती के लाभों, जल प्रबंधन, प्राकृतिक खेती उत्पादों के लिए बाजार के बारे में किसानों में जागरूकता निर्माण की जा रही है।
केंद्र सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती की नीति देश में लागू की जा रही है और राज्य में भी यही नीति अपनाई जा रही है। प्राकृतिक खेती के संबंध में केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का मराठी भाषा में अनुवाद किया जाएगा।
परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
डॉ. गेडाम ने बताया कि किसान प्राकृतिक खेती के पीछे मुख्य हितधारक है और वह अपने परिवार और आय के लिए खेती करता है। किसानों को रसायनों का उपयोग किए बिना पौधों और जानवरों के संरक्षण के लिए स्थानीय विविधता पर ध्यान केंद्रित करते हुए जैविक खेती करनी चाहिए। महाराष्ट्र में जैविक कार्बन युक्त मिट्टी की मात्रा बहुत कम है। कृषि विभाग को भी किसानों के साथ मिलकर जीवांश की मात्रा बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। कृषि विभाग राज्य के अधिक से अधिक क्षेत्रों को रसायन मुक्त एवं विज्ञान आधारित प्राकृतिक कृषि के अन्तर्गत लाने का प्रयास कर रहा है।
श्रीमती रचना कुमार ने कहा कि भारत सरकार का कृषि व किसान कल्याण विभाग सभी राज्यों में पारंपरिक कृषि विकास योजना के तहत प्राकृतिक खेती नीति और कार्यक्रम लागू कर रहा है। किसान को जैविक खेती की वैज्ञानिक ज्ञान मिलनी चाहिए। जैविक खेती सिर्फ खेती नहीं है, यह एक वैज्ञानिक दर्शन है। इसका पालन करना होगा।
रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए किसानों को विज्ञान के अनुसार प्राकृतिक खेती क्यों करनी चाहिए, इसका ज्ञान मिलना चाहिए। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न हिस्सों से आए अनुभवी व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा। कार्यशाला में मिले ज्ञान को लागू करें, वास्तव में कृति करें ऐसा कहकर प्राकृतिक खेती को प्राथमिकता देने की कोशिश हर किसी को करनी चाहिए, यह अपील भी उन्होंने इस अवसर पर की।
कार्यशाला में श्रीमती राणा ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी दी।
इस कार्यशाला में राज्य के चार कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति, केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारी, महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल, गोवा, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव और लक्षद्वीप इन 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वैज्ञानिकों, अधिकारियों और किसानों ने भाग लिया है।
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