25/06/2025

महाराष्ट्र की समृद्ध परंपरा है लोककला एवं लोक संगीत : उल्हास दादा पवार

Bapu Patte Purskar

महाराष्ट्र की समृद्ध परंपरा है लोककला एवं लोक संगीत : उल्हास दादा पवार

हड़पसर, फरवरी (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
पठ्ठे बापूराव प्रतिष्ठान और सांस्कृतिक कला मंडल पुणे की ओर से आयोजित पुणे लावणी महोत्सव में नटरंग थिएटर (मोडनिंब) की नंदा व उमा इस्लामपुरकर को पठ्ठे बापूराव पुरस्कार, हसन शेख पाटेवाडीकर को स्व. बापूसाहब जिंतीकर स्मृति सम्मान, लावणी गायिका व कलाकार अश्विनी मुसले को स्व. डॉ. भास्करराव खांडगे स्मृति सम्मान पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है। महोत्सव की शुरुआत विधान परिषद के विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने दीप प्रज्ज्वलित करके की।

इस अवसर पर यहां मुंबई की पूर्व महापौर स्नेहल आंबेकर, सुरेश आण्णा घुले, संजय मोरे, गजानन थरकुडे, उल्हास शेवाले, महादेव कांचन, किरण जिंतीकर, अजीत ठाकुर, पठ्ठे बापूराव प्रतिष्ठान के संस्थापक जयप्रकाश वाघमारे, अध्यक्ष मित्रावरून झांबरे, दीपक वाघमारे, रेश्मा परितेकर, बापू जगताप, डॉ. शंतनु जगदाले, कृष्णा ढेरंगे, रवींद्र चव्हाण आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

यह लोककला चिंतन, स्मरण, मनोरंजन एवं ज्ञानोदय की लोक कला है। पहले के समय में इस लोककला के माध्यम से लोगों का न केवल मनोरंजन किया जाता था बल्कि उनका ज्ञानवर्धन भी किया जाता था। कई शाहीर कलाकारों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए स्फूर्ति दाई काव्य की भी रचना की है। लोककला और लोक संगीत हमारे महाराष्ट्र की एक समृद्ध परंपरा है। हमें इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इसके गौरव को बरकरार रखना चाहिए जबकि नई पीढ़ी इसे नए ढंग से प्रस्तुत कर रही है, इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। यह विचार वरिष्ठ विचारक उल्हास दादा पवार ने व्यक्त किए।

यह लोक कला अत्यंत सुन्दर है। इसकी उपेक्षा न हो इसके लिए समाज के सभी स्तरों से प्रयास किये जाने चाहिए। यह लोककला सात समुद्र पार गई है। ऐसे उपेक्षित समाज का सम्मान किया जाना चाहिए। इस समाज को प्रगति के पथ पर ले जाने का जिम्मा हम सभी का है। यह विचार शिवसेना प्रवक्ता सुषमा अंधारे ने व्यक्त किये।

एक कलाकार सिर्फ पैसे का नहीं बल्कि सम्मान का भूखा होता है। ऐसे मंच पर कलाकारों को सम्मान मिलना बहुत जरूरी है। इससे उनका कला जीवन सार्थक होता है। यह भावना पुरस्कार प्राप्त शाहीर हसन शेख पाटेवाडीकर ने व्यक्त की।

बालगंधर्व रंगमंदिर मंच पर कई मशहूर कलाकारों को आज तक सम्मानित किया है। इस सम्मान से इस लोककला को ऊर्जावान स्थिति प्राप्त हुई। ऐसे मंच पर हुआ सम्मान सदैव याद रखा जायेगा। ऐसे महोत्सव से नये और पुराने कलाकारों को अच्छा मंच मिल रहा है। यह विचार पठ्ठे बापूराव पुरस्कार प्राप्त कलावंत उमा इस्लामपुरकर ने व्यक्त किए।

महोत्सव का प्रास्ताविक सत्यजीत खांडगे ने किया। सूत्र-संचालन दीपक वाघमारे और आभार प्रदर्शन मित्रावरुन झांबरे ने किया।

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