महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे का 88 वां स्थापना दिन बड़े उत्साह के साथ संपन्न

महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे का 88 वां स्थापना दिन बड़े उत्साह के साथ संपन्न

पुणे, मई (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
22 मई 1937 को महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे की स्थापना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से हुई। स्व. शंकरराव देव, महामहोपाध्याय दत्तो वामन पोतदार, ज्येष्ठ समाजवादी नेता एस. एम. जोशी, मोहन धारिया व प्रा.सु.मो.शाह संस्था के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं संस्था के विद्यमान अध्यक्ष व पूर्व विधायक श्री उल्हास पवार अब अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी बखूबी सँभाल रहे हैं।

मंच पर अध्यक्ष श्री उल्हास पवार, उपाध्यक्ष प्रा.डा.गजानन चव्हाण एवं श्री पुरुषोत्तम पगारे, कार्याध्यक्ष डा.नीला बोर्वणकर, कोषाध्यक्ष श्री शांताराम जाधव, विश्वस्त प्रा.श्री विरुपाक्ष अंकलकोटे -पाटिल, अड. शिवराज कदम-जहागीरदार, पूर्व विश्वस्त श्री गजानन गद्रे, सचिव प्रा. रविकिरण गलंगे, शाला समिति के अध्यक्ष श्री अविनाश कानगो तथा पुणे विभागीय समिति की अध्यक्षा डा. नीला महाडिक मान्यवर उपस्थित थे। सर्वप्रथम उपस्थित मंचासीन मान्यवरों ने दीप प्रज्ज्वलन करके संस्था के पूर्व अध्यक्षों की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करके उन्हें नमन किया। प्रा. रजनी रणपिसे ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

अध्यक्षीय भाषण में श्री उल्हास पवार ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार आज भी देश के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनकी प्रेरणा से ही संस्था की स्थापना हुई। आज तक का संस्था का पूरा इतिहास कथन किया। कार्याध्यक्षा डा.नीला बोर्वणकर ने संस्था की अन्यान्य शैक्षणिक गतिविधियों से सभी को अवगत किया। उन्होंने बताया कि संस्था जल्द ही अनुवाद अकादमी शुरू करने जा रही है। संस्था की द्वैमासिक राष्ट्रवाणी साहित्यिक पत्रिका फिर से बड़ी उम्मीद के साथ शुरू की है, इसलिए नए एवं अनुभवी साहित्यिकों से अपना साहित्य संस्था की ओर भेजने का आवाहन किया है। तद्नंतर प्रा.डा.गजानन चव्हाण, श्री माधव राजगुरु, डा. सुनील देवधर, डा. गोरक्ष थोरात, श्री अरुण बुलाख, इंदिरा पूनावाला, प्रा.पराग शाह, डा. निर्मला राजपूत, भावना गुप्ता एवं गोविंद गोगावले ने सभा के प्रति अपनी यादों को उजागर किया।

कार्यक्रम के लिए विविध क्षेत्र के मान्यवर, हिंदी प्रचारक, गणमान्य शिक्षक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। उपस्थितों के प्रति उपाध्यक्ष श्री पुरुषोत्तम पगारे ने ऋण व्यक्त किए।
पूरे कार्यक्रम का सूत्र-संचालन प्रा. श्री रविकिरण गलंगे ने शानदार ढंग से किया।

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