शांति और आनंद! (सामाजिक व्यंग्य)

शांति और आनंद! (सामाजिक व्यंग्य)
शांति और आनंद रहते तो हैं दोनों एक ही साथ, एक ही भवन में, एक छत के नीचे, एक ही परिवार में पर मेरा व्यक्तिगत और मेरे पूर्वजों द्वारा व्यक्त सार यही है कि दोनों (आनंद और शांति) की आपसी वैमनस्यता कलयुगी विचारों की भेंट चढ़ गयी है। दोनों में आपसी संबंध क्या हैं यह आज तक पूरे विश्व में, ब्रह्मांड में या कहें देवलोक में भी किसी को पता नहीं चला, लेकिन देवलोक में दोनों एक साथ रहे, आज भी रहते होंगे, ऐसी मान्यता है। धरा या धरती पर आने के बाद दोनों में ऐसा क्या बिगड़ गया कि दोनों एक दूसरे के साथ रहते तो हैं मगर दोनों एक दूसरे को अपने निकट नहीं आने देते। आनंद आता है तो शांति चली जाती है। लोग कहते हैं कि जहां शांति रहती है वहां आनंद आता ही नहीं। कोई यह नहीं जानता है कि दोनों में आपसी संबंध हैं या नहीं है? वैवाहिक या सांसारिक या दैहिक संबंध के बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता। मैंने कभी दोनों को एक साथ आलिंगनबद्ध कभी नहीं देखा। मैंने दोनों को एक दूसरे के लिए आत्म-बलिदान या आत्म-समर्पण करते हुए नहीं देखा, लेकिन दोनों जहां भी रहते हैं, एक दूसरे की छांह लिए, मन मसोस कर रहते हैं। आनंद शांति के लिए और शांति आनंद के लिए दिन-रात, सोते-जागते भी एक साथ रहने का प्रयास करते दिखाई पड़ते हैं पर दोनों एक दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते। आनंद को केवल शांति चाहिए और शांति को भरपूर आनंद चाहिए। जहां तक चाहने की बात है तो इच्छा तो सभी की यही रहती है। जैसा मुझे समझ में आया, संसार के सभी जीव (नर-मादा) अमीबा को छोड़कर, प्रजनन के इस प्रयास में लगे हुए हैं। यह बात और है कि मानव प्रजाति के जीव एक विचित्र बंधन से बंधे हुए हैं। मानव (प्रजनन के अतिरिक्त भी) परलोक प्राप्ति के बंधन से बंधा हुआ है! वह बंधन है प्रकृति-प्रदत्त बंधन जो टूटता ही नहीं है।
दोनों (आनंद और शांति) के बीच कोई वैवाहिक संबंध या नैसर्गिक संबंध या सात जन्मों के बंधन वाला, संबंध नहीं है मगर दोनों के बीच कोई अवैध संबंध भी नहीं है। दोनों में कर्षण का संबंध है जो पहले आ और बाद में (कुछ दिनों/महीनों/वर्षों) के बाद वि प्रत्यय से युक्त हो जाता है। आरंभ में आकर्षण और फिर विकर्षण। अगर दोनों के बीच अनैतिक अवांछित संबंध होता तो यह संसार जो सभी पर थूकने के लिए तैयार रहता है (कम से कम भारत के लोगों के बारे में तो मैं यही कह सकता हूं) कि इन्होंने अब तक आनंद और शांति के संबंधों को नंगा कर दिया होता। मगर सच यही है कि दोनों ने जितना अच्छा संबंध निभाया है उतना पवित्र संबंध गंधर्व/यक्ष या किसी देवी-देवता ने भी नहीं निभाया होगा। आनंद और शांति ने कभी एक दूसरे के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से कोई विवादित वक्तव्य नहीं दिया। भूलकर भी (न शांति ने, न आनंद ने) यह नहीं कहा कि हम साथ नहीं रह सकते, पर रहते भी नहीं।
मैं यह बात क्यों कह रहा हूं कि दोनों अपने-अपने स्थान पर अपने-अपने विचारों के अनुसार सांसारिक नियमों के अनुसार विधि के विधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का अपने उत्तरदायित्वों का पूरा निर्वहन कर रहे हैं पर दोनों एक दूसरे के साथ नैकट्य स्थापित करने में सफल नहीं हो रहे हैं। रहते निकट ही हैं, लेकिन दोनों के आपसी विचार अवश्य कहीं न कहीं, उस धरातल से ऊपर उठ चुके हैं जहां एक दूसरे के लिए सम्मान का ही आधार शेष रह गया है। हो सकता है कि दोनों के बीच आपसी संबंधों के निर्वहन की व्यवस्था रही हो। दोनों विवश होकर एक दूसरे को अपना नैकट्य भी प्रदान करते हों पर दोनों के बीच कभी एक साथ किसी भी अवसर पर विचारों का आदान-प्रदान करते हुए किसी ने नहीं देखा।
शांति! रहती है तो कहां रहती है? कब रहती है? यह कोई नहीं जानता, लेकिन जहां शांति रहती है, वहां (यह निर्विवाद सत्य है, सभी लोगों ने माना है कि सभी लोगों ने वहां आनंद को घूमते-टहलते या शांति के चक्कर में, फेर में, लालसा में, शांति की प्राप्ति की इच्छा से घूमते हुए देखा है।
घूमता वही है जो चलायमान होता है। आनंद चलायमान है। शांति जीवन से दूरी का केंद्र है। जहां शांति रहती है उसके आसपास चारों तरफ उसके प्रभाव में आने वाले सभी लोग इसका लाभ उठाते हैं, लेकिन आनंद कब तक रहेगा यह किसी को नहीं मालूम। आनंद विश्वसनीय मित्र नहीं है। यह केवल अपनी जवानी का भोग करने में लगा रहता है। आनंद कामुक नहीं है। मगर आकर्षण ऐसा मनोभाव है / मानवीय प्रवृत्ति है जिसकी किसी अन्य गुण से तुलना नहीं की जा सकती। आनंद (पुल्लिंग) का सर्वोत्तम उदाहरण है और शांति स्त्रीलिंग का सबसे उत्तम उदाहरण है फिर भी दोनों में कामवासना की कोई इच्छा नहीं रहती। आनंद कभी शांति के साथ बलात्कार को तत्पर नहीं होता। उसके यौवन का शील भंग करने का प्रयास नहीं करता जैसा आम सांसारिक लोग करते हैं। यही कारण है कि जहां शांति रहती है वहां आनंद आ तो जाता है, लेकिन शांति को भगाने का, वहां से हटाने का, एकांत में ले जाने का, उसके दैहिक-शोषण का, उसके सौंदर्य को भोगने का प्रयास नहीं करता।
हां शांति नारी के कुछ दुर्गुणों के प्रभाव में अवश्य रहती है। आत्म-श्लाघा, अपने यौवन और आत्म सौंदर्य की प्रशंसा सुनने की सबसे बुरी आदत है। शांति के स्वभाव में एक बात तो यह है कि जहां शांति रहती है वहां, (उसका जन्मजात गुण कहें तो) वह कभी किसी पर विश्वास नहीं करती। सदैव सभी को संदेह की दृष्टि से देखती है। यह अच्छी बात है। यह नारी का गुण है। नारी के गुण में अगर यह न हो तो उसका रोज शोषण हो। उसका निरंतर बलात्कार हो। शांति के इसी गुण के कारण आज तक शांति आतंकवादियों के चंगुल से बची हुई है। जैसे ही किसी की दृष्टि शांति पर पड़ती है शांति वहां से भाग जाती है और जब तक किसी की छाया/ कुदृष्टि उस पर पड़ती है तब तक वह उस क्षेत्र से कोसों दूर चली जाती है।
शांति का स्थाई निवास कहीं नहीं है। यह मैंने आपको पहले ही बताया था, लेकिन आनंद भी इसका अपवाद नहीं है। वह भी उच्छृंखल है। झूठ बोलने वाला है, दिखावा करने वाला है और आडंबर इसका प्रमुख गुण है। आनंद आया है कि नहीं आया है यह किसी को पता नहीं चलता, लेकिन आनंद के नाम पर उसके चेले चमचे बहुत उधम मचाते हैं और इतना प्रचार करते हैं, इतना विज्ञापन करते हैं कि लगता है सचमुच आनंद वहां आया हुआ है, लेकिन आनंद वहां नहीं होता। वहां आनंद पहुंचता ही नहीं। वहां आनंद जाता ही नहीं।
शेष अगले अंक में…

श्री राम प्रताप चौबे
(सैनिक बाबा), बक्सर (बिहार)
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