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नहीं रहे उलझन!
यह कैसी आयी उलझन,
तय नहीं कर पाता मन!
सवालों से अशांत जीवन,
आजकल खोया है अमन!
बन गयी कब अनबन,
नहीं समझ पाया चुभन!
झुक गये धरती गगन,
बन गया जमाना दुश्मन!
सुलझानी होगी उलझन,
फिर महकाएँगे चमन!
होगा निभाना दिया वचन,
कुदरती बेचैन वतन!
अनहोनी घटना जीवन।
मुकाबला होगा बनठन।
साथ रहो मेरे भगवन।
सुलझ जायेगी उलझन।

श्री बाबू फिलीप डिसोजा कुमठेकर
पुनावले, पुणे-33