भारतीय सेना! कितनी भारतीय?

भारतीय सेना! कितनी भारतीय?
(विचारात्मक निबंध)
देश के सशस्त्र बलों/रक्षा सेनाओं ने ‘अभियान सिंदूर’ का ऐतिहासिक पराक्रम दिखाया। इस के बाद देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने 12 मई 2025 को बड़े नपे-तुले शब्दों में भारतीय रक्षा सेवाओं से जुड़े हुए सभी सेवारत सैनिकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और समस्त देशवासियों की ओर से सशस्त्र सेना के सैन्यकर्मियों को हृदय से सम्मान दिया। राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपनी बातें कहने के बाद उन्होंने समापन से पूर्व भी वही बातें/वही वाक्य दोहराया जो उन्होंने प्रारंभ में कहे थे। बहुत प्रशंसनीय है, सराहनीय है। आज तक मेरे कानों में ऐसा संबोधन पहले किसी भी राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री या अन्य जन सेवकों के मुंह से सुनने को नहीं मिला। यह भारत के लिए एक शुभ संकेत है। भारत के लोगों को देश की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने का यह एक उचित और बढ़िया अवसर आया था। इसे आप शुभ अवसर भी कह सकते हैं।
सच्चाई यह है कि आज भी, अभी तक मेरा/हमारा देश भारत, स्वतंत्र नहीं है। आज भी हम भारत के नागरिक… (संविधान के प्रस्तावना का वाक्य) इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वह प्रतीक्षा कब पूरी होगी? इस संबंध में ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर अनुमान लगाना कठिन है। अभी वर्तमान में हम जिस भारत में रहते हैं वह ब्रितानी शासकों से शक्ति / सत्ता का हस्तांतरण मात्र है। स्वतंत्रता नहीं है।
हम भारत के लोग… करते हैं। यह या इन शब्दों में संविधान को स्वीकृति देने के संबंध में उचित है, मगर राष्ट्रीय नीतियों को लेकर किसी की कोई भावना राष्ट्र से संबंधित नहीं है, प्रभावित नहीं है।
मैं हमारा राष्ट्रीय चरित्र नाम से एक पुस्तक लिखने के प्रयास में लगा हूं, उसमें मैं ने यही विचार/ चिंतन बिंदु उठाने का प्रयास किया है। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या हम स्वतंत्र हो चुके हैं? जैसा प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हम मानते/मनाते हैं, जिसे हम स्वतंत्रता दिवस कहते हैं। क्या हम जिस पर गर्व कर रहे हैं वह सचमुच भारतीयों के संघर्ष वाले स्वतंत्रता से प्राप्त किया हुआ राष्ट्रीय ध्वज है? क्या सचमुच उस सेना पर भारतीय मानसिकता का प्रभाव है? क्या वही भारतीय सेना राष्ट्र की एकता में प्रयत्नशील है? क्या वही सेना भारत की रक्षा के लिए तत्पर है? क्या हमारे सेनापति, हमारे वरिष्ठ अधिकारी, सैन्य संचालन में भारतीय विधि विधान का पालन करते हैं? क्या हमारे देश के रक्षा सेवाओं का संचालन भारतीय अनुशासनात्मक विधि के अनुसार संपन्न होता है? अगर हां! तो इसमें एकरूपता क्यों नहीं है? सेना के व्यवहार में इतना भेद-भाव और अंतर क्यों है? यह बड़ा कठिन प्रश्न है और बड़ा ही विचित्र विषय है, जिसे उस रात मैंने प्रधानमंत्री का भाषण सुनने के बाद, अपने मन को टटोलते हुए लिखने का प्रयास किया है।
प्रधानमंत्री जी क्या सोचते हैं और विपक्षी दलों के नेता क्या सोचते हैं? दोनों कब या कभी आपस में मिलते हैं? कब क्या करते हैं? किसी को ज्ञात नहीं, लेकिन सेना के शौर्य के बारे में प्रधानमंत्री जी ने जो कुछ भी बताया उसकी बराबरी करने वाले किसी अन्य नेता का कोई भी वक्तव्य जनता तक नहीं आया है।
प्रधानमंत्री जी को इन बातों पर अवश्य विचार करना चाहिए कि भारत की सेना पर भारतीय नियमों का और भारतीय नियमों के अनुसार सैन्य संचालन का प्रभाव कब पड़ेगा? भारतीय सेना आज भी भारतीय है या नहीं इसका, अभी तक मैंने जो अनुभव किया है, कोई प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता। भारत की सेना विदेशियों के बनाए नियम कानून के अनुसार चल रही है। इसके विषय में विस्तृत लेख बाद में पुनः लिखूंगा और आपके समक्ष पुन: अपनी बातें प्रमाणित करने का प्रयास करूंगा।
अभी भारत के सभी लोगों से मेरा एक ही प्रश्न है- आप सभी अपने मन में विचार करें! जो भूतपूर्व सैनिक हैं, जो वर्तमान में सेवारत हैं और जो भविष्य में सेना में सम्मिलित होना चाहते हैं उन सभी के लिए मेरी ओर से एक प्रश्न है कि क्या हमारी सेना भारतीय सेना है? जिसे हम भारतीय सेना कहकर गर्व करते हैं वह पूरी की पूरी सेना भारतीय है? अगर है तो उसका कोई ठोस प्रमाण आपके पास होना चाहिए! पक्ष में तर्क होना चाहिए और अगर भारतीय सेना आज भी भारतीय नहीं है तो इसका क्या कारण आपके मस्तिष्क में घूम रहा है? कौन सा ऐसा कारण है, जिसके कारण मैं आपसे यह प्रश्न पूछ रहा हूं, वक्तव्य साझा कर रहा हूं, अपने विचार साझा कर रहा हूं और आपको सजग कर रहा हूं। अगर भारत की सशस्त्र सेनाएं भारतीय होतीं तो मुझे यह प्रश्न उठाने का अवसर ही नहीं मिलता।
भारत अगर एक स्वतंत्र राष्ट्र होता तो भारत की अपनी एक भाषा होती, एक संस्कृति होती, एक पहचान होती और एक नियमावली से बंधी हुई सेना होती।
अब तो पुराने राष्ट्रीय दल के एक नए (युवा) नेता ने भारत को एक देश या राष्ट्र कहकर संबोधित करने के स्थान पर इसे समूह कहने का घोषित दुस्साहस भी कर दिया है। मानसिक संतुलन के अभाव के कारण अब वह विक्षिप्त अवस्था में पहुंच चुका व्यक्ति दिवा-स्वप्न का आदी हो गया है। उसे देश और राष्ट्र की संप्रभुता का कोई आभास ही नहीं है।
जो लोग राष्ट्र या देश के लिए, स्वतंत्रता के लिए, भारतीय मूल के लोगों के लिए और उनके हितों की रक्षा के लिए, सजग और सक्रिय हैं उनसे आग्रह है कि वह पहले भारतीय सेना के वर्तमान संगठनात्मक संरचना को जानने/समझने का प्रयास करें और भारतीय सेना को विदेशी दासता से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करें। मैं ऐसा आवाहन सायास कर रहा हूं। यह आवश्यक है क्योंकि भारतीय सेना में कोई एकरूपता नहीं है। भारतीय सेना में कोई भी ऐसा प्रावधान नहीं है, जिससे इसके सैनिक राष्ट्र और राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित हो सकें।
जिस सेना की चर्चा मैं कर रहा हूं वह अपने जीवन-यापन या क्षुधा-शांति के लिए विवश सजीव प्राणी है। राष्ट्र की रक्षा और राष्ट्र के लिए समर्पित भावना रखने वाले देशभक्त सैनिकों का संगठन नहीं है। अधिकारी वर्ग हों या अधीनस्थ सैन्य कर्मी हों। सभी को केवल अपने भरण-पोषण के हित में आज्ञा पालन करने की दिनचर्या का निर्वहन करने की आदत पड़ चुकी है। यहां ध्यान देने वाली एक बात और है कि आज तक भारत संगठित और एकत्र ही नहीं हो सका। एक राष्ट्र की भावना किसी के मन में नहीं आई। विदेशियों की कुटिल चाल में फंसे हुए विभिन्न प्रांतों के विभिन्न भाषा भाषी जातियों के लोग अनुशासन और प्रतिबद्धता से बहुत दूर हैं। उन्हें भारत की अखंडता एकता का आभास ही नहीं है। कराया ही नहीं गया है। यही कारण है कि स्वाभिमानी और देशभक्त सैनिकों का सेना में अभाव हो गया है। अब मंगल पाण्डे और मेजर होशियार सिंह जैसी निर्णायक बुद्धि वाले सैनिकों और सैन्य अधिकारियों का अभाव हो गया है।
विदेशी आक्रांताओं के प्रभाव में आर्यावर्त से भारत और आज तक इंडिया का प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है। सेना को भारतीय सेना कहना मूर्खता जैसा लगता है। अंग्रेजों ने अब तक जो कुछ भी प्रभाव डाला है उसके कारण हमारी भाषा और विचार दोनों पराधीन भारत के विचारों का वहन करने वाले पुराने और जर्जर वाहन के समान प्रतीत हो रहे हैं। हमारा दायित्व है कि हम इंडिया को भारत और इंडियन आर्मी को भारतीय सेना के राष्ट्रीय हित वाले संगठनात्मक रक्षा सेवकों के रूप में संगठित करने का बीड़ा उठाएं। इंडियन आर्मी की आत्मा को श्रद्धांजलि दें और भारतीय सेना की गौरवशाली आत्मा को झकझोर कर उसे भारतीय सेना के रूप में विकसित करने को विदेशी आक्रांताओं के द्वारा स्थापित विचार /भावनाएं या भाषा सबको समग्र रूप में बदलने का प्रयास करें और भारत भारतीय और भारतीयता की भावना को स्थापित करें। भारतीय सेना की संरचनात्मक नामावली ,उत्तरदायित्व और नियमावली को पूरी तरह संशोधित करने का संकल्प लें और भारत की अस्मिता को जागृत करने का विचार जन-जन तक पहुंचाएं। सेना में सैन्य गतिविधियों और उसके संचालन का भार किसके ऊपर है, किसी को इस बात का पूरा आभास नहीं है। भारतीय सेना में भारतीयता का घोर अभाव है और जब तक यह दूर नहीं होगा तब तक हम भारतीय सेना कहकर पुकारते रहेंगे पर उसकी आत्मा भारतीय नहीं होगी, फिरंगी सरकार की नीतियां हमें नचाती रहेंगी।
धन्यवाद !
श्री राम प्रताप चौबे
अहिरौली, बक्सर (बिहार)
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