मनुष्यों में मौजूद विशाल एंटीबॉडी जीवाणु विषाक्त पदार्थों के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है

हमारे शरीर में अब तक पहचाने गए सबसे बड़े एंटीबॉडी की एक नई विशेषता ने एंटीबॉडीज़ के प्रति हमारी मौजूदा समझ को बदल दिया है। अब तक इन्हें सूक्ष्मजीवों के “ताले” में फिट होने वाली “रासायनिक चाबियाँ” माना जाता था, लेकिन अब ये “यांत्रिक इंजीनियर” की तरह कार्य करते हैं, जो अणुओं के भौतिक गुणों को बदलकर हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं।

यह खोज नई उपचार पद्धतियों को प्रेरित कर सकती है—ऐसे एंटीबॉडीज़ डिजाइन करके जो खतरनाक प्रोटीन को यांत्रिक रूप से कठोर बना दें और उनकी हानिकारक क्षमता को निष्क्रिय कर दें।

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में कई प्रकार के एंटीबॉडीज़ होते हैं, जिनकी अपनी-अपनी विशिष्ट भूमिकाएँ होती हैं। इनमें IgM सबसे बड़ा है और संक्रमण से लड़ते समय शरीर द्वारा निर्मित होने वाले शुरुआती एंटीबॉडीज़ में से एक है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के एक स्वायत्त संस्थान, एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज़ (SNBNCBS) के शोधकर्ताओं के हालिया अध्ययन से पता चला है कि IgM केवल रोगजनकों से ही नहीं जुड़ता, बल्कि यह बैक्टीरियल टॉक्सिन्स को भी यांत्रिक रूप से स्थिर कर सकता है और उन्हें हमारी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने से रोक सकता है।

 

image0010VR3 मनुष्यों में मौजूद विशाल एंटीबॉडी जीवाणु विषाक्त पदार्थों के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है

चित्र: प्रोटीन L-एंटीबॉडी परस्परक्रिया- फ़ाइनगोल्डिया मैग्ना द्वारा सुपरएंटीजन के रूप में स्रावित प्रोटीन L, कई डोमेन से बना होता हैजिनमें झिल्ली-विस्तारित A, और क्रमिक रूप से संरक्षित डोमेन शामिल हैं। प्रत्येक डोमेन, B लिम्फोसाइटों पर एंटीबॉडी की प्रकाश श्रृंखला से विशिष्ट रूप से जुड़ता हैजिससे बंधन इंटरफ़ेस पर आणविक तनाव उत्पन्न होता है। यह बल डोमेन को शारीरिक अपरूपण तनाव के विरुद्ध स्थिर करता हैजिससे जीवाणु प्रतिरक्षा से बचने में सहायता मिलती है।

इस शोध का केंद्र बिंदु प्रोटीन L था, जो Finegoldia magna नामक बैक्टीरिया से निकलने वाला एक अणु है। प्रोटीन L को “सुपरएंटीजन” कहा जाता है क्योंकि यह एंटीबॉडीज़ से असामान्य तरीक़ों से जुड़ सकता है और सामान्य प्रतिरक्षा कार्य को बाधित कर सकता है।

इस अध्ययन की ख़ासियत यह है कि इसमें सिंगल-मॉलेक्यूल फोर्स स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का इस्तेमाल किया गया। यह एक अत्याधुनिक विधि है, जिसमें बेहद सूक्ष्म और सटीक बलों को व्यक्तिगत अणुओं पर लगाया जाता है ताकि यह समझा जा सके कि दबाव या तनाव में वे कैसे व्यवहार करते हैं।

वैज्ञानिकों ने पाया कि जब IgM प्रोटीन L से जुड़ता है, तो यह प्रोटीन की यांत्रिक स्थिरता (mechanical stability) को काफ़ी बढ़ा देता है। सरल शब्दों में, IgM एक सहारे की तरह काम करता है, जिससे प्रोटीन को दबाव में खुलना या टूटना कठिन हो जाता है। यह प्रभाव IgM की मात्रा पर निर्भर था—जितनी अधिक मात्रा, उतनी ही अधिक स्थिरता।

 

टीम ने कंप्यूटर सिमुलेशन का भी उपयोग किया और पाया कि IgM की कई binding sites एक साथ प्रोटीन L के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ सकती हैं। इससे एक समन्वित स्थिरीकरण प्रभाव (synergistic stabilizing effect) उत्पन्न होता है, जो छोटे एंटीबॉडीज़ में नहीं होता क्योंकि उनमें यह क्षमता सीमित होती है।

मानव शरीर के भीतर बैक्टीरिया अक्सर यांत्रिक बलों का सामना करते हैं—जैसे रक्त प्रवाह के दौरान या प्रतिरक्षा कोशिकाओं के हमले में। अगर IgM बैक्टीरियल टॉक्सिन्स को अधिक कठोर और स्थिर बनाकर उन्हें निष्क्रिय कर सकता है, तो यह एंटीबॉडी-आधारित नई उपचार पद्धतियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है, जो बैक्टीरियल संक्रमण से लड़ने का एक बिल्कुल नया तरीका होगा।

यह कार्य एंटीबॉडीज़ की एक कम आंकी गई भूमिका को उजागर करता है: वे केवल रासायनिक “बाइंडर” ही नहीं, बल्कि हमारी बीमारियों से लड़ाई में यांत्रिक मॉडुलेटर भी हैं।

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