गुरु तेग बहादुर साहिब के बलिदान को साढ़े तीन शताब्दियां पूर्ण : गुरु ग्रंथ साहिब की शोभायात्रा का हड़पसर में किया गया भव्य स्वागत

हड़पसर, अक्टूबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
हिंदू धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर साहिब के बलिदान की 350वीं वर्षगांठ है। इस अवसर पर, दुनिया भर में सिख समुदाय द्वारा एक विशेष शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। इसके तहत गुरु ग्रंथ साहिब व गुरु तेगबहादुर साहिब के शस्त्रों की ऐतिहासिक शोभायात्रा पूरे देश में निकाली जा रही है।

यह शोभायात्रा का असम से शुरू होकर गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, नांदेड़ होते हुए पंजाब में समापन समारोह होगा। इस यात्रा का उद्देश्य गुरु तेग बहादुर साहिब के अद्वितीय बलिदान, त्याग, समर्पण और मानवता के संदेश के बारे में जागरूकता निर्माण करना है। जैसे ही शोभायात्रा हड़पसर में पहुँची परिसर में हर्षोल्लास का माहौल छा गया। गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिबजी का गाड़ीतल, हड़पसर की ओर से सिख समुदाय द्वारा भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया गया।

महिलाओं ने शोभायात्रा में शामिल गुरु ग्रंथ साहिब, गुरु तेग बहादुर साहिब के शस्त्रों और धार्मिक साहित्य का पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। शोभायात्रा में सुसज्जित नगाड़ा पथक, कीर्तन, जुलूस और पच्चा प्यारे आकर्षण का केंद्र रहे। गुरु परंपरा के प्रतीक माने जानेवाले पाँच प्यारे का हड़पसर गुरुद्वारे में बड़े सम्मान के साथ स्वागत किया गया। उन्होंने पारंपरिक सिख वेशभूषा में शोभायात्रा का नेतृत्व किया।

इस शोभायात्रा के माध्यम से गुरु तेग बहादुर साहिब का संदेश, धर्म के लिए प्राण न्योछावर कर देना, परन्तु धर्म पर कभी अन्याय न होने देना, एक बार फिर रेखांकित हुआ। हड़पसर क्षेत्र के नागरिकों और विभिन्न धर्मों के लोगों ने भी इस शोभायात्रा में भाग लिया और एकता एवं सद्भाव का सुंदर संदेश दिया।

गुरु तेग बहादुर साहिब ने वर्ष 1675 में दिल्ली में अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई और दूसरों की आस्था की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, इसीलिए उन्हें हिंद की चादर (हिंदू धर्म की ढाल) कहा जाता है।

गुरु तेग बहादुर साहिब का बलिदान न केवल सिख समुदाय के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा है। इस शोभायात्रा के माध्यम से, हम उनकी शिक्षाओं का संदेश सभी तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। असम से पंजाब तक जानेवाली यह शोभायात्रा न केवल धार्मिक है बल्कि मानवता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक भी है। हड़पसर में इस जुलूस का स्वागत गुरु परंपरा के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है। ऐसा स्थानीय गुरुद्वारे के सदस्यों ने इस अवसर पर कहा।

 

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