सनातन संस्कृति, नाटक की भारत से बाहर गूंज

*‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘मेरी मुनिया’ का सफल नाट्य मंचन : भारतीय और बाली (इंडोनेशिया) संस्कृति के संगम का अद्भुत दृश्य*

वर्धा, अक्टूबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
ग्लोबल संस्कृत फोरम और देनपासार (बाली, इंडोनेशिया) सुग्रीव राज्य हिंदू विश्वविद्यालय , कोलाज कल्चरल सोसाइटी तथा ‘ययासन धर्म स्थापना आश्रम’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सांस्कृतिक समारोह में दो प्रभावशाली नाटकों ‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘मेरी मुनिया’ का सफल मंचन भारत से बाहर विदेश भूमि पर किया गया। यह आयोजन भारतीय नाट्य परंपरा और बाली, इंडोनेशिया की सांस्कृतिक संवेदना का सुंदर संगम सिद्ध हुआ।
नाटक ‘मेरी मुनिया’ का लेखन और संगीत नाटककार अनिमेष खरे दास द्वारा किया गया, जबकि डिज़ाइन और निर्देशन की जिम्मेदारी डॉ. विधु खरे दास जी  ने संभाली। उन्होंने वहां अपना शोध पत्र भी प्रस्तुत किया । डॉ .विधु खरे दास राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय NSD की  प्रसिद्ध रंगकर्मी हैं। और लगभग तीस से अधिक वर्ष से नाट्य कर्म एवं रंगमंच कर रही हैं। इस प्रस्तुति में मुख्य भूमिका में प्रवीण कुमार पांडेय ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया।
इन दोनों नाटकों में नाट्य प्रस्तुति के सहायक निर्देशक के रूप में डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (JNU) का योगदान बहुत ही उल्लेखनीय रहा है।
इस अवसर पर प्रमुख अतिथि के रूप में ग्लोबल संस्कृत फोरम के महासचिव डाॅ. राजेश मिश्र उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता ययासन धर्म स्थापना आश्रम, देनपासार बाली, इंडोनेशिया की डाॅ. आचार्य जी ने की।
‘विक्रमोर्वशीयम्’ महाकवि कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक की प्रस्तुति ने भारतीय नाट्यशास्त्र की शास्त्रीय गरिमा और साहित्य को जीवंत किया, जबकि ‘मेरी मुनिया’ ने आधुनिक जीवन की संवेदनाओं, मानवीय रिश्तों और समाज की जटिलताओं को करुणा और यथार्थ के साथ प्रस्तुत किया। दोनों नाटकों के माध्यम से भारतीय और बाली (इंडोनेशिया) के संस्कृति के गहरे आध्यात्मिक और कलात्मक संबंधों का सजीव प्रदर्शन हुआ।
इस अवसर पर भारत, इंडोनेशिया और विभिन्न देशों से आए दर्शकों और अतिथियों ने नाटकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कलाकारों का खड़े होकर अभिवादन एवं सम्मान किया।
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