पुस्तक समीक्षा

विधाता ने सृष्टि को चेतना के साथ चिंतनशीलता देने के लिए मानव की रचना की है। वाक् शक्ति संपन्नता के आधार पर सृष्टि में मनुष्य को श्रेष्ठतम स्थान मिला है। वाक् शक्ति के ही आधार पर समाज का निर्माण हुआ है। वाक् शक्ति का उपयोग मुख्यतः दो रूपों में होता है। प्रथम रूप में व्यावहारिक प्रयोग आता है। इसमें सरलता, सहजता, सद्भाव और स्वाभाविकता वाणी को मनमोहक और मधुर बना देती है। कहा भी गया है
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपुहिं शीतल होय॥

वाक् शक्ति के दूसरे रूप का प्रयोग स्पर्धात्मक युग में जीवन-पथ पर गतिशील रहकर दूसरों को प्रभावित करते हुए लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।
ऐसी शक्ति संजोने के लिए चिंतन-मनन, अध्ययन और प्रेरक संवाद और संभाषण आदि सुनने के साथ अभ्यास करने की अपेक्षा होती है। यदि इस दिशा को जानने-अपनाने की जिज्ञासा हुई तो विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय ही नहीं अपितु विभिन्न संस्थाओं में भाषण, वाद-विवाद, परिसंवाद सुनने और भाग लेने के अवसर मिल जाएँगे। वाक् शक्ति की परिपक्वता पर आकाशवाणी और दूरदर्शन आदि पर विचार-विमर्श का अवसर संभावित ही नहीं अपितु निश्चित हो जाएगा।
परम स्नेही बंधुवर डॉ. विजयकुमार वेदालंकार सुधी विचारक और बहुआयागी लेखक हैं। सफल और प्रेरक शिक्षक के रूप में अध्यापन के साथ सुबोध अध्ययन हेतु कृतियों की रचना करते रहे हैं। ये अपने शिष्यों को महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा करते हुए भूल जाते हैं कि कितना समय हो गया। सृजन-धर्म में भी इसी भाव-धारा में अवगाहन करते मिलते हैं।

डॉ. वेदालंकार ने जीवन-पथ पर गतिशील रहने के लिए शक्ति-सामर्थ्य संजोते युवावर्ग के लिए पूर्ण मनोयोग से ‘अनुप्रयुक्त भाषण-कला’ पुस्तक की उपयोगी रचना की है। पुस्तक में भाषण की परिभाषा और स्वरूप की चर्चा करते हुए उसे प्रभावी बनाने वाली शैलियों का सविस्तार परिचय दिया है। निश्चय ही विशिष्ट शैली को अपना कर आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुति से भाषण-कला को प्रभावी बनाया जा सकता है। इसके लिए पुस्तक के सूत्रों को हृदयंगम करना होगा।

पुस्तक में विभिन्न क्षेत्रों के समसामयिक विषयों पर भाषण के साहित्यिक प्रारूप दिए गए हैं। वैज्ञानिक युग में विज्ञान की उपादेयता, कंप्यूटर युग में कंप्यूटर शिक्षा, शिक्षण क्षेत्र में ‘सहशिक्षा’, संस्कृत साहित्य अध्ययन और मातृभाषा पर प्रभावी विचार प्रस्तुति है। समस्याओं पर चिंतन और प्रयास से ही सफलता मिलती है। इस दृष्टि से युवा की बेरोजगारी, वरिष्ठ नागरिक और ‘धन बल का प्रभाव’ के साथ ‘आज की नारी’ आदि महत्त्वपूर्ण विषयों को अपनाया गया है। संस्कारित जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले ‘जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान’ आदि विषयों की प्रस्तुति से पुस्तक भाषण-कला में प्रवीणता प्रदान करने की प्रभावी भूमिका निभाएगी।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि पुस्तक ‘अनुप्रयुक्त भाषण कला’ युवा वर्ग में वाक् शक्ति विकसित कर भाषण-कला में प्रवीणता प्रदान करेगी। मैं उपयोगी पुस्तक प्रकाशन पर स्नेही बंधुवर डॉ. वेदालंकार को हार्दिक बधाई देता हूँ। कामना है कि आप स्वस्थ व प्रसन्न रहकर वीणापाणि सरस्वती के भंडार में सतत अभिवृद्धि करते रहें।

Dr.-Naresh-Mishra-232x300 बहुआयामी वाक् शक्ति की ऊर्जा
डॉ. नरेश मिश्र
पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय,
महेंद्रगढ़ (हरियाणा)

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