जलवायु परिवर्तन संकट का समाधान है ‘प्राकृतिक खेती’ : राज्यपाल आचार्य देवव्रत
मुंबई, अक्टूबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
प्राकृतिक खेती, जो पूरी तरह से प्रकृति के नियमों पर आधारित है, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौती का सबसे प्रभावी समाधान है — ऐसा प्रतिपादन राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किया। राजभवन में आयोजित प्राकृतिक खेती परिषद में राज्यपाल ने कहा कि इस पद्धति से पानी का उपयोग 50 प्रतिशत तक घटता है, भूजल स्तर बढ़ता है, और यह पद्धति मिट्टी, पानी, पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य — चारों का संरक्षण करते हुए किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध होती है, क्योंकि इससे उत्पादन बढ़ता है और खर्च घटता है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, विधानपरिषद के सभापति प्रो. राम शिंदे, उपसभापति डॉ. नीलम गोऱ्हे, सांसद एवं मंत्रीमंडल के सदस्य उपस्थित थे।
राज्यपाल देवव्रत ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र स्थित गुरुकुल में उन्होंने 35 वर्ष तक प्रधानाचार्य के रूप में काम किया। “हम वहाँ रासायनिक खेती करते थे, लेकिन कीटनाशकों के दुष्परिणाम देखने के बाद हमने रासायनिक खेती छोड़ दी और विशेषज्ञों से चर्चा कर प्राकृतिक खेती अपनाई। इससे उत्पादन बढ़ा और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ,”
राज्यपाल ने बताया कि खेती के तीन प्रकार हैं – रासायनिक, जैविक (सेंद्रिय) और प्राकृतिक। सेंद्रिय खेती में उत्पादन घटता है, लेकिन प्राकृतिक खेती में ऐसा नहीं होता। सेंद्रिय खेती के लिए बहुत अधिक मात्रा में गोबर या केंचुआ खाद की आवश्यकता होती है, जबकि प्राकृतिक खेती प्रकृति के नियमों पर आधारित है। “जैसे जंगलों में बिना खाद और बिना सिंचाई के पेड़-पौधे खूब फलते-फूलते हैं, वैसे ही प्राकृतिक खेती में भी मिट्टी के सूक्ष्मजीवों का संतुलन बनाए रखा जाता है,” ।
राज्यपाल ने बताया कि रासायनिक खेती के कारण जमीन की उर्वरता, अनाज का स्वाद और पौष्टिकता घट रही है। वैज्ञानिक शोधों के अनुसार गेहूं और चावल में पोषक तत्वों की मात्रा 45 प्रतिशत तक कम हो चुकी है। “इसलिए प्राकृतिक खेती केवल किसानों के लिए नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए आवश्यक है।
राज्यपाल देवव्रत ने आगे कहा कि यदि सभी खेतों में प्राकृतिक खेती अपनाई जाए तो मिट्टी में पानी का समावेश बढ़ेगा, जिससे बाढ़ और सूखे दोनों से बचाव संभव होगा। उन्होंने बताया कि केचुआ प्रकृति की अद्भुत देन है — यह मिट्टी को छिद्रयुक्त बनाता है, हवा और पानी का संचार बढ़ाता है तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम जैसे पोषक तत्व प्रदान करता है। एक केचुआ अपने जीवनकाल में 50,000 नए केचुए उत्पन्न करता है और जमीन का ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ाता है।
उन्होंने यह भी बताया कि रासायनिक खादों के अति प्रयोग से जमीन का ऑर्गेनिक कार्बन जो पहले 2.5% था, अब 0.5% से भी कम रह गया है। “इससे जमीन बंजर हो रही है और हमारे शरीर में ज़हर प्रवेश कर रहा है, जिसके कारण हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह जैसे रोग बढ़ रहे हैं। देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार ‘जीवामृत’ मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को पुनर्जीवित करता है और फसल को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रखता है। देशी गाय आधारित प्राकृतिक खेती अपनाने से ही हम अपनी जमीन, स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं,” ।
25 लाख हेक्टेयर भूमि प्राकृतिक खेती के अंतर्गत : मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “जलवायु परिवर्तन का कृषि पर हो रहा गंभीर प्रभाव देखते हुए प्राकृतिक खेती ही इसका सबसे कारगर उपाय है।” उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती केवल सेंद्रिय खेती का रूप नहीं है, बल्कि यह अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल है।
राज्य शासन ने 2014 में ‘प्राकृतिक शेती मिशन’ की शुरुआत की थी, जिसमें सेंद्रिय और प्राकृतिक दोनों पद्धतियाँ एक साथ लागू की गई थीं। लेकिन 2023 में राज्यपाल आचार्य देवव्रत के मार्गदर्शन में महाराष्ट्र सरकार ने 25 लाख हेक्टेयर भूमि प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाने का संकल्प लिया।
मुख्यमंत्री ने कहा, “किसानों की समस्याओं का मूल कारण बढ़ता उत्पादन खर्च है। अगर खर्च घटाया जाए और उत्पादन बढ़ाया जाए, तो ही खेती लाभदायक बन सकती है — और प्राकृतिक खेती इसका सर्वोत्तम उपाय है।” उन्होंने आगे कहा, “हमारी संस्कृति में गाय का स्थान सर्वोच्च है, क्योंकि वही कृषि को जीवन देती है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भी संविधान में गोसंवर्धन का सिद्धांत रखा, क्योंकि गो-धन ही प्राकृतिक खेती का आधार है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने रासायनिक खेती से उत्पन्न विषाक्तता की समस्या पर कहा, “आज कैंसर जैसे रोग बढ़ रहे हैं। प्राकृतिक खेती से तैयार अन्न पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। राज्यपाल देवव्रत की प्रेरणा से जैसे गुजरात प्राकृतिक खेती का केंद्र बना, वैसे ही महाराष्ट्र को भी हम प्राकृतिक खेती का अग्रणी राज्य बनाएँगे और किसानों के जीवन में परिवर्तन लाएँगे।”
प्राकृतिक खेती पर जनजागरण जरूरी : उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि राज्यपाल देवव्रत स्वयं किसान हैं और 200 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, उनके अनुभव अमूल्य हैं। “महाराष्ट्र को ऐसे राज्यपाल का लाभ मिला है जिन्हें प्राकृतिक खेती में गहरी रुचि है,” ।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दे रहे हैं और उन्होंने जनप्रतिनिधियों के लिए ऐसे सेमिनार आयोजित करने के निर्देश दिए हैं ताकि वे प्राकृतिक खेती का महत्व समझ सकें। “लोगों में यह भ्रम है कि प्राकृतिक खेती से उत्पादन कम होगा। इस भ्रम को दूर करने के लिए जनजागरण, प्रचार और किसानों के वास्तविक अनुभवों का प्रसार आवश्यक है,”
उपमुख्यमंत्री ने आगे कहा कि राज्यपाल स्वयं राज्यभर दौरे करेंगे और प्राकृतिक खेती के प्रसार के लिए जनजागरण करेंगे। “इस परिषद से किसानों के ज्ञान में वृद्धि होगी। जनप्रतिनिधियों को अपने-अपने विभागों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। समूह खेती के माध्यम से अधिकाधिक किसानों को इस दिशा में प्रेरित करना ही प्रधानमंत्री मोदी का ‘विजन’ है,” ।
उन्होंने बताया कि श्री श्री रविशंकर (आर्ट ऑफ लिविंग), नाम फाउंडेशन, और नानासाहेब धर्माधिकारी प्रतिष्ठान जैसी संस्थाएँ भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही हैं। “राज्यपाल के अनुभव और मार्गदर्शन से महाराष्ट्र के किसान प्राकृतिक खेती अपनाकर अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
परिषद का प्रारंभ राजभवन सचिव डॉ. प्रशांत नारनवरे के प्रास्ताविक भाषण से हुआ। आभार प्रदर्शन उपसचिव एस. राममूर्ति ने किया, और संचालन राजभवन की राजशिष्टाचार अधिकारी अर्चना गायकवाड ने किया।
