31/07/2025

कलाकार बनो, सेलिब्रिटी नहीं, अभिनेता संतोष जुवेकर का ‘कारी-2025’ महोत्सव में प्रेरक संदेश

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कलाकार बनो, सेलिब्रिटी नहीं, अभिनेता संतोष जुवेकर का ‘कारी-2025’ महोत्सव में प्रेरक संदेश

लोनी कालभोर, मई (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
कलाकृतियाँ कलाकारों से अधिक जीवित रहती हैं और उन्हें हमेशा केवल व्यापार के लिए नहीं बल्कि इतिहास में योगदान के रूप में याद किया जाता है, इसलिए कलाकारों को अपने भीतर के कलाकार को जीवित रखते हुए शांतिपूर्ण और संतुष्ट जीवन जीना चाहिए, न कि केवल सेलिब्रिटी बनने की दौड़ में भाग लेना चाहिए।
यह विचार प्रसिद्ध मराठी अभिनेता संतोष जुवेकर ने पुणे स्थित एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के भव्य कला महोत्सव ‘कारी-2025’ के उद्घाटन के अवसर पर व्यक्त किए।

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इस अवसर पर एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. राजेश एस., कुलसचिव प्रो. डॉ. महेश चोपड़े, अधिष्ठाता डॉ. मिलिंद ढोबले, मुख्य समन्वयक डॉ. मुक्ता अवचट और समन्वयक डॉ. विराज कांबले सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
जुवेकर ने आगे कहा, हर कोई खुद को एक अनुप्रयुक्त और ललित कलाकार कहता है, लेकिन सच्चाई यह है कि कलाकार होना एक बात है, और ‘कारी’ यानी कलात्मक चेतना को अपने भीतर जीवित रखना उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। कला एक व्यक्ति को उसके जीवन के अंत तक जीवित रखती है, और जो कला से प्रेम करता है, वही सच्चा मानव है।

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वरिष्ठ कलाकार श्री सुहास बाहुलकर ने भी इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘कारी’ का अर्थ है कुछ नया और रचनात्मक। उन्होंने कहा कि एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय का परिसर अपने आप में एक कलात्मक संगम है, जहां से अनगिनत कलाकार उभर कर सामने आ रहे हैं। इस पहल की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि वर्षों से उनकी इच्छा रही है कि ललित कलाएं, प्रदर्शन कलाएं, मीडिया, डिजाइन और वास्तुकला – सभी एक मंच पर आएं, जो ‘कारी’ महोत्सव के माध्यम से साकार हुई है।

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‘कारी-2025’ महोत्सव के दौरान वरिष्ठ कलाकार श्री सुहास बाहुलकर को कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए ‘विश्वरम्भ कला पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार डॉ. विनोद शाह (प्रसिद्ध चिकित्सक एवं समाजसेवी) एवं डॉ. स्वाति कराड-चाटे (विश्वस्त, मायर्स एमआईटी शिक्षा समूह) द्वारा प्रदान किया गया। इस अवसर पर प्रो. डॉ. मिलिंद ढोबले द्वारा लिखित ‘प्राचीन गुफाएँ – एक दृश्य अन्वेषण’ एवं प्रो. डॉ. सुभाष बाभुलकर द्वारा रचित ‘डॉ. आनंद कुमारस्वामी की पुस्तकों का भी विमोचन किया गया।

जो बंद आँखों से देखे गए सपनों को साकार करता है, वही सच्चा कलाकार है। ‘विश्वरम्भ’ नाम नव सृजन की इसी भावना को दर्शाता है। इस पुरस्कार के पीछे प्रेरणा हमारे मार्गदर्शक प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड हैं, जिनकी दृष्टि में विश्वशांति घुमट और विश्वराज बाग जैसी कलाकृतियाँ संभव हो पाईं।

– डॉ. स्वाति कराड-चाटे
(विश्वस्त : मायर्स एमआईटी एजुकेशन ग्रुप)

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