अब एक वर्ष चला गया
और नया वर्ष आ गया,
तो अब क्या करें
सोचें विचार करें।

बीते वर्ष की ग़लती
अब नहीं है दोहरानी,
जो भी अच्छाई मिली
अब वो है गले लगानी।

हमें वतन से क्या मिला
क्या चला था सिलसिला,
पर हमने वतन को क्या दिया
अब यह सोचना है भला।

हमसे कुछ ग़लत हो गया
वह पिछले वर्ष में चला गया,
अब नया साल है आ गया
प्रेम करने का मौका आ गया।

दिल में जो कटुताएं भरी थीं,
चली गईं समय के गाल में
अब भाईचारा बढ़ाते चलो बंधु,
नया सवेरा नया साल जो आ गया।

-श्री सत्येंद्र सिंह

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One thought on “अब”
  1. बहुत ही सुंदर और उदात्त भावों से परिपूर्ण प्रेरक कविता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय सर ।

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