आरक्षण व मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर 1 सितंबर से ‘कोंढवा से दिल्ली’ सामाजिक न्याय पदयात्रा : असलम बागवान

आरक्षण व मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर 1 सितंबर से ‘कोंढवा से दिल्ली’ सामाजिक न्याय पदयात्रा : असलम बागवान

आरक्षण व मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर 1 सितंबर से ‘कोंढवा से दिल्ली’ सामाजिक न्याय पदयात्रा : असलम बागवान

आरक्षण व मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर 1 सितंबर से ‘कोंढवा से दिल्ली’ सामाजिक न्याय पदयात्रा : असलम बागवान

पुणे, अगस्त (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
मुस्लिम, ईसाई, मराठा, धनगर आरक्षण और मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांगों को लेकर 1 सितंबर से ‘कोंढवा से दिल्ली’ सामाजिक न्याय पदयात्रा का आयोजन किया गया है। पदयात्रा 1 सितंबर को सुबह 11 बजे कोंढवा से शुरू की जाएगी। यह जानकारी पुणे श्रमिक पत्रकार संघ में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इनक्रेडिबल समाजसेवक ग्रृप व अखिल भारतीय आरक्षण कृति समिति की ओर से संयोजक असलम बागवान ने दी।

इस अवसर पर यहां इब्राहिम खान, नाझिया शेख, कमरुनिसा शेख, जावेद जहागिरदर, सचिन आल्हाट, एडवोकेट त्रिवेणी रुपटक्के, हलिमा शेख उपस्थित थे।

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होने आगे बताया कि शिवनेरी किला, संगमनेर, कोपरगांव, येवला, अमलनेर, चोपड़ा, फैजपुर मार्ग से होते हुए दिल्ली तक पदयात्रा का मार्ग है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर राजघाट (नई दिल्ली) में एक दिवसीय लाक्षणिक उपोषण किया जाएगा और 3 अक्टूबर को जंतर-मंतर पर आंदोलन शुरू किया जाएगा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में असलम बागवान ने उठाए गए मुद्दे इस प्रकार हैं- आरक्षण क्या है, आरक्षण का उद्देश्य अपने समाज और उसके घटकों के शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कमजोर वर्गों को अवसर प्रदान करना है, लेकिन दशकों से चली आ रही आरक्षण की मांग का इस्तेमाल केवल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है! यह प्रवृत्ति तब तक नहीं रुकेगी जब तक कि संसद में एक विधेयक पेश नहीं किया जाता और इंदिरा साहनी निर्णय के अनुसार आरक्षण पर लगी रोक नहीं हटा दी जाती। सभी राज्यों की आरक्षण सीमा बढ़ गई है और 1992 से आज तक सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण निर्णयों से पता चलता है कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन इंदिरा साहनी के मामले में निर्णय के अनुसार हर राज्य की अपनी सीमाएं हैं। वो अब बढ़ गई है! बिहार, आंध्र, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि राज्य इसके उदाहरण हैं, इसलिए संसद में सामाजिक न्याय के तहत विधेयक लाकर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाना बहुत जरूरी है।

अल्पसंख्यकों के अधिकारों और विशेषाधिकारों के लिए संसद में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा कवच के लिए ट्रॉसिटी अधिनियम विधेयक संसद में लाना।

भारत के संविधान ने देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए हैं व इसका उपाय अनुच्छेद 32 है जिसके लिए मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में आप सुप्रीम कोर्ट की मदद ले सकते हैं। अनुच्छेद 32/3 के अनुसार यदि संसद में संविधान में संशोधन किया जाता है, तो यह सुविधा देश के प्रत्येक न्यायालय में उपलब्ध करायी जा सकती है। 2023 में पारित महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने की मांग के संबंध में।
शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक मानदंडों पर आधारित जाति आधारित जनगणना।
IMG-20240828-WA0012-247x300 आरक्षण व मौलिक अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर 1 सितंबर से ‘कोंढवा से दिल्ली’ सामाजिक न्याय पदयात्रा : असलम बागवान
हम वास्तविक सामाजिक न्याय की मांग के लिए इस सामाजिक न्याय पदयात्रा का आयोजन कर रहे हैं, हमें आशा है कि आप इसका समर्थन करके भारत को विश्व गुरु बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। तो आइए सामाजिक न्याय के लिए दो कदम बढ़ाएँ!

-असलम बागवान

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