अब वहां कुछ नहीं है -मंगेश पाडगांवकर
सूखे हुए कीचड़ की,
एक पगडंडी देख रहे हो न,
वहां से एक झरना बहता था…
अब वहां कुछ नहीं है!
पेड़ की फुनगी पर नीला-सा,
एक फूल देख रहे हो न,
वहां एक पंछी गाया करता था…
अब वहां कुछ नहीं है!
हरसिंगार के पेड़ तले,
झरे हुए फूल देख रहे हो न,
वहां से पवन विदा लेता था…
अब वहां कुछ नहीं है!
अंधियारे के पहाड़ पर,
एक तारा देख रहे हो न,
वहीं से बादल पुकारता था…
अब वहां कुछ नहीं है!
नदी के कछार पर,
मंदिर के अवशेष देख रहे हो न,
कोई तो किसी के लिए वहां आया करता था…
अब वहां कुछ नहीं है!
मूल मराठी से हिंदी अनुवाद
– डॉ. विपिन पवार, पुणे (महाराष्ट्र),
मोबा. : 8850781397
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