इसे कविता कहते हैं
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माथे से तलवों तक,
पसीने की धार बही,
एसी में बैठे बैठे भी,
चिंता की भरमार हुई,
खून पसीने की कमाई,
तरक्की की बरसात हुई!
न जाने कौन आया,
मेरा चैन छीन ले गया,
देखता रहा मैं अवाक्,
वह मेरा वजूद ले गया!
अब चिढ़ाता है मुझे,
रोज स्वप्न दिखाता है मुझे,
कहता है मरने नहीं दूंगा,
मुफ्त में दे जाता है मुझे!
मैं मेहनत चाहता हूँ,
काम करना चाहता हूँ,
पर कोई काम देता नहीं,
रोज भीख दे जाते हैं मुझे!
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