पत्रकारों को एआई जनरेटेड कंटेंट का उपयोग करते समय करनी होगी तथ्यों की पड़ताल : प्रधान सचिव व महानिदेशक ब्रिजेश सिंह
मुंबई, नवम्बर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
अब एआई जनरेटेड कंटेंट की सत्यता की जांच आवश्यक हो गई है। डीपफेक की पहचान के लिए 15-20 पैरामीटर्स पर आधारित विशेष टूल्स विकसित किए गए हैं। सभी फैक्ट-चेकिंग संस्थाएं हर तथ्य की जांच नहीं करतीं, जिससे पूर्वाग्रह की संभावना रहती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (अख) में निहित बायस आज एक वैश्विक समस्या बन चुका है। यह विचार महाराष्ट्र सूचना एवं जनसंपर्क महासंचालनालय के प्रधान सचिव तथा महानिदेशक ब्रिजेश सिंह ने व्यक्त किये।
वे रतन टाटा महाराष्ट्र राज्य कौशल विश्वविद्यालय तथा मंत्रालय एवं विधानमंडल वार्ताहर संघ द्वारा मंत्रालय में आयोजित प्रिंट व डिजिटल मीडिया पत्रकारों के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रशिक्षण कार्यशाला में बोल रहे थे।
प्रधान सचिव ब्रिजेश सिंह ने जोर देकर कहा कि एआई सत्य का स्रोत नहीं है। यह जानकारी को बदल या सारांशित कर सकता है, लेकिन सत्य निर्धारित नहीं कर सकता। नई पीढ़ी के एआई टूल्स- जैसे रियल टाइम सर्च करने वाले एआई- कई स्रोतों से सूचना एकत्र कर त्वरित सारांश दे सकते हैं। यह पत्रकारों को शीघ्र संदर्भ प्रदान कर रिपोर्टिंग आसान बनाते हैं, लेकिन इन स्रोतों की पुष्टि करना जरूरी है। एआई से प्राप्त जानकारी पर मानवीय सत्यापन के बिना निष्कर्ष निकालना खतरनाक हो सकता है, इसलिए मानवीय निगरानी और तथ्य-पड़ताल अनिवार्य है।
प्रधान सचिव सिंह ने यह भी कहा कि संवेदनशील या गोपनीय दस्तावेज़ ऑनलाइन टूल्स में अपलोड करने से पहले सतर्क रहना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन पूछे गए प्रश्न, अपलोड की गई सामग्री और खोज इतिहास ट्रेस किए जा सकते हैं और कानूनी जांच में प्राप्त किए जा सकते हैं, इसलिए गोपनीय जानकारी साझा करने से पहले कानूनी और प्रक्रियात्मक पहलुओं की समझ जरूरी है।
उन्होंने कहा कि एआई कभी-कभी झूठे संदर्भ भी तैयार कर सकता है, इसलिए वैज्ञानिक या कानूनी विषयों में उस पर पूर्ण रूप से निर्भर रहना खतरनाक हो सकता है। डीपफेक बनाना अब आसान हो गया है, परंतु उसकी पहचान दिन-ब-दिन कठिन होती जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एआई जनरेटेड कंटेंट पर वॉटरमार्किंग जैसी नियामक प्रणालियाँ लागू की जा रही हैं।
अंत में ब्रिजेश सिंह ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक शक्तिशाली उपकरण है, परंतु इसका उपयोग करते समय स्रोत-पुष्टि, गोपनीयता संरक्षण, कानूनी जवाबदेही और मानवीय नियंत्रण को प्राथमिकता देना आवश्यक है। उन्होंने सलाह दी कि ऑफलाइन, एन्क्रिप्टेड और स्थानीय ॠझण पर चलने वाले वातावरण में संवेदनशील जांच करना सर्वोत्तम तरीका है। साथ ही, तकनीक तेजी से बदल रही है, इसलिए पत्रकारों को अपनी कार्यप्रणाली और कानूनी ज्ञान में निरंतर अद्यतन रहना चाहिए।
