मुंबई, नवंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जाति, पंथ, धर्म और भाषा के सभी भेद भूलकर लोगों ने ‘वंदे मातरम्’ कहा था। यह स्वतंत्रता आंदोलन का मंत्र और क्रांतिकारियों का घोषवाक्य बन गया था। आज जब हम विश्व को दिशा देने वाला भारत बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तब राष्ट्रभक्ति और एकता की भावना आवश्यक है। इसके लिए ‘वंदे मातरम्’ के सामूहिक गायन के माध्यम से हम संकल्प लें। यह आवाहन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मंत्रालय में आयोजित सामूहिक ‘वंदे मातरम्’ गायन कार्यक्रम में किया।
‘वंदे मातरम्’ गीत के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में यह कार्यक्रम कौशल विकास, रोजगार, उद्यमिता और नवोन्मेष विभाग तथा सांस्कृतिक कार्य विभाग की ओर से आयोजित किया गया था।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री फडणवीस के साथ सांस्कृतिक कार्य व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री आशीष शेलार, कौशल विकास व नवोन्मेष मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा, मुख्य सचिव राजेश कुमार, पद्मश्री पद्मजा फेनानी-जोगलेकर, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।
पद्मजा फेनानी-जोगलेकर के साथ सभी मान्यवरों ने सामूहिक रूप से ‘वंदे मातरम्’ गाते हुए राष्ट्रभक्ति और एकता का संकल्प व्यक्त किया।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा, ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि देश को जोड़ने और एकसूत्र में बांधने वाली भावना है। कोलकाता के टाउन हॉल में 30 हजार से अधिक लोगों की सभा में पहली बार ‘वंदे मातरम्’ का उद्घोष हुआ था। उस समय से यह बंग-भंग आंदोलन का प्रेरणा गीत बन गया। आंदोलन, प्रभात फेरियों और सभाओं में ‘वंदे मातरम्’ के जयघोष से स्वतंत्रता का संघर्ष तेज हुआ। कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने भी ‘वंदे मातरम्’ गाया था। इसी गीत ने जाति, धर्म, पंथ और भाषा के भेद भुलाकर पूरे भारतीय समाज को एक सूत्र में बांध दिया।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने आगे कहा, स्वतंत्रता सेनानी फांसी पर चढ़ते समय भी ‘वंदे मातरम्’ कहते थे। यह गीत नेताओं का भी घोषवाक्य बन गया, जिन्होंने अहिंसा के मार्ग से स्वतंत्रता प्राप्त करने का विचार रखा। स्वतंत्रता संग्राम में ‘वंदे मातरम्’ ने अमूल्य योगदान दिया। स्वतंत्र भारत का ध्वज बनाते समय उस पर ‘वंदे मातरम्’ लिखा गया था। महात्मा गांधी अपने हर पत्र का समापन ‘वंदे मातरम्’ से करते थे। स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माण के समय ‘जन गण मन’ और ‘वंदे मातरम्’ दोनों को समान सम्मान और राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 150 वर्ष बाद भी ‘वंदे मातरम्’ आज भारत को दिशा देने वाला गीत है। इसमें मातृभूमि की आराधना, प्रकृति और संस्कृति की भव्यता का वर्णन है। यह किसी एक धर्म का गीत नहीं बल्कि सभी धर्मों को प्रेरणा देने वाला राष्ट्रगीत है।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में सामूहिक ‘वंदे मातरम्’ गायन अभियान की संकल्पना की है। महाराष्ट्र में मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने यह पहल की, जिसके चलते राज्य के हर हिस्से और हर विद्यालय में सामूहिक ‘वंदे मातरम्’ कार्यक्रम हो रहा है। गीत की भावना युवाओं, विद्यार्थियों और नागरिकों तक पहुंचाने का यह एक सशक्त प्रयास है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि 1905 के बंग-भंग आंदोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति के समय जो भावना पूरे देश में जागी थी, वही भावना आज पुनः जागृत करने का प्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के ‘विकसित भारत’ के सपने का उल्लेख करते हुए कहा, प्रधानमंत्री ने ‘विकास भी और विरासत भी’ की भावना रखी है। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों के माध्यम से ज्ञान देने वाला भारत, भगवान गौतम बुद्ध के उपदेशों से विश्व को मार्गदर्शन देने वाला भारत ऐसा देश निर्माण करने का संकल्प हम सभी को लेना चाहिए।
‘वंदे मातरम्’ – क्रांतिकारियों को प्रेरणा देने वाला समर गीत : मंत्री आशीष शेलार
मंत्री आशीष शेलार ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ प्रेरणा, भावना और आत्मिक शक्ति का प्रतीक है। यह स्वतंत्रता का गीत और आत्मिक जागरण का गीत है, जिसने अनगिनत क्रांतिकारियों को प्रेरणा दी। सभी धर्मों, जातियों और पंथों के लोग एक साथ मिलकर यह गीत गाते हैं, जिससे एकता और साथ रहने की प्रेरणा मिलती है। यह ऐसा गीत है जिस पर दुनिया को भी गर्व होता है।
कार्यक्रम में पूर्वा निर्मिती विश्व द्वारा ‘वंदे मातरम्’ पर आधारित एक पथनाट्य भी प्रस्तुत किया गया। इसमें विभिन्न धर्मों और भाषाओं के युवा पारंपरिक पोशाक में ‘वंदे मातरम्’ लिखे हुए फलक लेकर उपस्थित थे, जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया।
कार्यक्रम के उपरांत दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन और ‘वंदे मातरम्’ का सामूहिक गायन दूरदर्शन प्रणाली के माध्यम से सीधा प्रसारित किया गया।
