बेसहारा दादी का सहारा बनीं स्मिता गायकवाड

दादी की आँखों में आँसू नहीं, बल्कि आशीर्वाद की वर्षा देखी! यह घटना बहुत ही साधारण, लेकिन मन को झकझोर देनेवाली एवं लम्बे समय तक मन में बनी रहनेवाली है। इन शब्दों में स्मितसेवा फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्षा स्मिता तुषार गायकवाड ने अपनी भावना व्यक्त की।

क्या हुआ… शाम को ऑफिस से निकलते वक़्त एक महिला का फ़ोन आया… आवाज़ भले ही अनजानी थी, पर उसमें डर और चिंता साफ़ झलक रही थी… ‘नोबेल’ पुल के नीचे एक बुज़ुर्ग महिला बेहोश पड़ी थी। वो बिल्कुल हिल-डुल नहीं पा रही थी। उसके शरीर पर मक्खियाँ रेंग रही थीं! क्या उसे किसी आश्रम या अस्पताल ले जाया जा सकता है? दूसरी तरफ़ से आवाज़ में बिनती और अनुनय-विनय थी! तुरंत ‘आस्क फ़ाउंडेशन’ के दादासाहेब गायकवाड़ को संपर्क करने के बाद वहाँ पहुँचकर उस महिला की भयावह हालत देखी। जहाँ वो सो रही थी, वहाँ से गाड़ियाँ तेज़ी से गुज़र रही थीं, लेकिन वो वहाँ निढाल पड़ी थी, बिल्कुल असहाय, कमज़ोर हालत में। उसे उस हालत में देखकर मुझे बहुत दुख हुआ! एक पल के लिए मैंने सोचा, ये किसी की माँ होगी। किसी की बहन होगी…! मैं उसे सहारा और भरोसा देते हुए आगे बढ़ी। उसके बारे में पूछा तब उसने बताया कि उसका नाम ‘कुसुम बालासाहेब मुसले’ है और वो सोलापुर ज़िले के करमाला की रहनेवाली है। उसने ये भी बताया कि उसकी उम्र 70 साल है! उसे पानी और खाना देने के बाद, उसके चेहरे पर थोड़ी रौनक आई… मुझे खुशी हुई कि मैंने उसे एक नई ज़िंदगी दी है और किसी तरह उसे मरणासन्न अवस्था से बाहर निकाला है… मुझे संतुष्टि हुई! जब मैंने उसे पहली बार देखा था, उसकी आँखें बेजान थीं… आँखों में डर, चेहरे पर भूख की परछाईं… वो बोल नहीं रही थी, पर उसका ग़म चीख़ रहा था… हाथों पर वक़्त के ज़ख्म थे… पर, उसके दिल में अब भी जान थी, लेकिन अब उसकी आँखें चमक रही थीं… आँसू नहीं, मेरे लिए दुआएँ बरस रही थीं…!

‘आस्क फाउंडेशन’ के दादासाहेब गायकवाड़ ने मेरी बहुत मदद की और उस दादी को आश्रम तक पहुंचाया… सचमुच, मैं उनका तहेदिल से शुक्रिया अदा करती हूँ!

 

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