किसानों की जमीन पर नहीं, सरकारी जमीन पर कीजिए आरक्षण : अमोल तुपे
नौ गाँवों के विकास कार्य को लेकर विवाद – भूमिहीन होने के डर से किसान गुस्से में!
हड़पसर, नवंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
पुणे महानगरपालिका में शामिल किए गए नौ नए गांवों के लिए विकास योजनाएं (डीपी) तैयार करने की प्रक्रिया में तेजी आई है, लेकिन आम किसानों में भारी असंतोष है। महाराष्ट्र क्षेत्रीय नगर नियोजन अधिनियम 1966 की धारा 26 (1) के अनुसार मनपा प्रशासन द्वारा तैयार की गई इस विकास परियोजना में किसानों की कृषि भूमि पर बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रकार के आरक्षण किए गए हैं। यह आरोप क्रांति शेतकरी संगठन के संस्थापक अध्यक्ष अमोल नाना यशवंत तुपे ने किया है।
किसानों द्वारा दिए गए बयान के अनुसार, नए शामिल गाँवों में बड़ी मात्रा में सरकारी ज़मीन उपलब्ध है। इन ज़मीनों में चारागाह, सिंचाई विभाग, वन विभाग, देवस्थान इनाम, एमिनिटी स्पेस व अन्य सरकारी ज़मीनें शामिल हैं। इन सभी ज़मीनों से फिलहाल कोई आय नहीं हो रही है और सरकार को भी कोई राजस्व नहीं मिल रहा है। किसानों के अनुसार इन सरकारी ज़मीनों पर आरक्षण होने से सरकार को काफ़ी फ़ायदा होगा क्योंकि किसानों की निजी ज़मीनों पर आरक्षण होने पर करोड़ों रुपये अधिग्रहण के लिए देने पड़ते हैं, जबकि सरकारी ज़मीनों पर इस तरह के आरक्षण होने से सरकार का पैसा बचेगा और भू-माफ़ियाओं को ज़मीनों पर कब्ज़ा करने से भी रोका जा सकेगा।
क्रांति शेतकरी संगठन के संस्थापक अध्यक्ष अमोल नाना यशवंत तुपे ने कहा कि पुणे नगर निगम द्वारा हाल ही में शामिल किए गए नौ गाँवों के साधारण किसान ही इस शहर के असली अन्नदाता हैं। अगर उनकी ज़मीन पर किसी भी तरह का आरक्षण किया गया, तो ये किसान भूमिहीन हो जाएँगे, इसलिए सरकार और नगर निगम प्रशासन को ़फैसले लेते समय किसानों के हितों का ध्यान रखना चाहिए।
उन्होंने आगे चेतावनी दी, अगर किसानों की कृषि भूमि के लिए आरक्षण किया गया, तो क्रांति किसान संगठन तीव्र आंदोलन करेगा। हम इस मामले को सरकार, पालकमंत्री और मुख्यमंत्री तक ले जाएँगे। वर्तमान में इन नौ गाँवों में किसानों के पास परिवारों की संख्या के हिसाब से बहुत सीमित ज़मीन है और कई परिवार उस पर खेती करके अपनी आजीविका चलाते हैं, इसलिए अगर किसानों की ज़मीन पर आरक्षण लागू किया गया, तो इससे उनकी आजीविका का संकट निर्माण हो जाएगा।
लोहगांव, शिवणे, केशवनगर, साडेसतरानली आदि परिसर से अमोल नाना तुपे, सुरेश रणसिंह, नकुल रॉय, गणेश चोपड़े, निखिल बिराजदार, निशिकांत अहिरे, सचिन वीर, युवराज आबा वाडेकर, दादा औताडे, स्वाति सोनावणे, स्वीटी वाबले, सागर बड़ेकर, परेश गवली ने लिखित आपत्तियां सहायक निदेशक, शहरी नियोजन, पुणे विभाग, पुणे नगर निगम, प्रशासनिक भवन, पुणे आयुक्त, पुणे नगर निगम, पुणे एवं नगर अभियंता, पुणे नगर निगम के पास पेश की हैं।
किसानों की ओर से दिए गए निवेदन में स्पष्ट मांग की गई है कि –
-आरक्षण केवल सरकारी ज़मीनों पर ही किया जाए।
-किसानों की निजी ज़मीनों को संरक्षित किया जाए।
-आरक्षण से पहले गाँव स्तर पर जनसुनवाई और चर्चाएँ आयोजित की जाएँ।
हम शहरी विकास के खिलाफ नहीं हैं, परंतु विकास के नाम पर हमारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए। सरकार को हमारी बात सुननी चाहिए-वरना हम सड़कों पर उतरेंगे। नौ गाँवों के प्रभावित नागरिकों ने नए प्रशासनिक भवन कार्यालय में आपत्ति दर्ज कराते हुए नए विकास प्राधिकरण में किए गए आरक्षण को रद्द करने की माँग की है।
-अमोल नाना तुपे
संस्थापक अध्यक्ष : क्रांति शेतकरी संगठन
