वकीलों को तकनीकी रूप से कुशल बनना होगा : डॉ. हेरोल्ड डेकोस्टा
एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के विधि महाविद्यालय में संगोष्ठी

लोनीकालभोर, सितंबर (हड़पसर एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क)
डिजिटल युग में, तकनीक कानून से कहीं ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ी है और इसका जाँच एजेंसियों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर गहरा प्रभाव पड़ा है। पिछले दो दशकों में, हज़ारों साइबर अपराध के मामले सीधे सर्वोच्च न्यायालय पहुँचे हैं। ऐसी स्थिति में विदेशी सर्वरों से ई-साक्ष्य की समय पर पुनर्प्राप्ति, क्रिप्टो लेनदेन पर नियंत्रण, क्यूआर कोड धोखाधड़ी की रोकथाम और न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का विवेकपूर्ण उपयोग आज की प्रमुख आवश्यकताएं हैं, इसलिए वकीलों को ऐसे मामलों से निपटने के लिए तकनीकी रूप से कुशल बनना होगा। यह विचार साइबर सिक्योरिटी कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. हेरोल्ड डेकोस्टा ने व्यक्त किये।

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एमआईटी आर्ट, डिजाइन एंड टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लॉ द्वारा आयोजित एक दिवसीय सेमिनार आधुनिक युग की कानूनी चुनौतियां : वकीलों और कानूनी चिकित्सकों के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य के उद्घाटन के अवसर पर वे बोल रहे थे। इस अवसर पर बीवीजी इंडिया के उपाध्यक्ष अमोल उमरानीकर, एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के प्रोवोस्ट प्रोफेसर डॉ. सायली गणकर, लोकमान्य तिलक लॉ कॉलेज की प्राचार्य डॉ. केतकी दलवी, डॉ. मोहिनी सूर्यवंशी और स्कूल ऑफ लॉ के प्रोफेसर डॉ. गोविंद राजपाल आदि उपस्थित थे।
अपने मुख्य भाषण में डॉ. डेकोस्टा ने कहा, वर्तमान में ई-मेल दुरुपयोग, क्यूआर कोड लेनदेन धोखाधड़ी, अनधिकृत वेबसाइटों पर अवैध बिक्री, क्रिप्टो व केवाईसी से संबंधित साइबर अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने के लिए कानूनों का सख्त प्रवर्तन आवश्यक है।

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इसके लिए, कानूनी साक्षरता के साथ-साथ वकीलों, पुलिसकर्मियों व छात्रों को डिजिटल साक्ष्य एकत्र करना और साइबर फोरेंसिक का अध्ययन करना सीखना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रौद्योगिकी के अत्यधिक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए संतुलन की आवश्यकता है।

एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के प्रोवोस्ट डॉ. गनकर ने इस अवसर पर कहा, एआई प्रौद्योगिकी न्याय में सहायक होगी, लेकिन न्याय की आत्मा हमेशा मानव विवेक में निहित होती है।

सेमिनार का दूसरा सत्र सामाजिक परिवर्तनों के साथ संवैधानिक मूल्यों का संतुलन विषय पर था। इसमें महाराष्ट्र सरकार के पूर्व अधिकारी डॉ. नागेश कुमार, एडवोकेट विभाकर रामतीर्थकर, डॉ. दीप्ति लेले, एडवोकेट विश्वास खराबे, एडवोकेट योगेश पवार और एडवोकेट मंगेश खराबे जैसे विशेषज्ञों ने भाग लिया। उन्होंने छात्रों को न्यायिक प्रणाली और भारतीय संविधान में हो रहे बदलावों का अध्ययन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

कानूनी शिक्षा में आवश्यक तकनीक : डॉ. गनकर
डॉ. गनकर ने आगे कहा, कानूनी शिक्षा में प्रौद्योगिकी और नैतिकता का समावेश समय की मांग है। इसी उद्देश्य से एमआईटी एडीटी स्कूल ऑफ लॉ ने बीबीए एलएलबी (एकीकृत), एलएलएम, एलएलबी और श्रम कल्याण डिप्लोमा जैसे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में आधुनिक प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, फोरेंसिक व एआई उपकरण जैसे विषयों को शामिल किया है। ये पाठ्यक्रम मानव संसाधन प्रबंधकों, आईटी कर्मचारियों, डॉक्टरों व उद्यमियों के लिए बदलती प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बनाए रखने में उपयोगी साबित होंगे। उन्होंने छात्रों से इन पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया।

 

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