ए.आई. युग में शिक्षक की बदलती भूमिका
(5 सितंबर, राष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर विशेष)
शिक्षक दिवस के दिन जब हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती मना रहे हैं, तब यह सही समय है कि हम शिक्षा की दुनिया में हो रहे क्रांतिकारी बदलावों पर सोचें। हालिया अनुभव और अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) न केवल शैक्षणिक कार्यों को सरल बना रहा है, बल्कि ज्ञान प्राप्ति के संसाधन और सीखने की प्रक्रिया की संरचना बदल उसे नई दिशा दे रहा है; इसलिए शिक्षक की भूमिका पर पुनर्विचार आवश्यक है – क्या यह शिक्षक की भूमिका को कम कर रहा है? या फिर इसके उलट यह शिक्षक को और अधिक महत्वपूर्ण बना रहा है?
पहले तो यह समझना होगा की सीखना मात्र सूचना ग्रहण नहीं, बल्कि चिंतन, मनन,संशोधन और आत्मावलोकन का एक क्रम है। शोधकर्ताओं ने देखा है कि विद्यार्थी आजकल आतंरिक मूल्यांकन के लिए स्व-लिखित टर्म पेपर के लिए ए.आई.-सहयोग से ‘परिष्कृत’ लेकिन भावहीन पेपर भेजते हैं जो व्याकरणीय त्रुटी-रहित तो होते हैं , परन्तु अंतर्निहित प्रक्रिया और मंथन गायब होता है। यह प्रवृत्ति चिंताजनक है क्योंकि ज्ञान के सृजन में त्रुटियों, असफलताओं और पुनर्लेखन का महत्व अनिवार्य है; इन्हीं प्रक्रियाओं से सीखने की जड़ें गहरी होती हैं। विद्यार्थी अब गहन सोच की मेहनत से बच रहे हैं, विचार को आउटसोर्स कर रहे हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक बदलाव है। जॉन बर्न-मर्डोक के विश्लेषण ‘हैव ह्यूमन्स पास्ड पीक ब्रेन पावर?’ के अनुसार, यह गिरावट जैविक या पर्यावरणीय नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी से संज्ञानात्मक क्षमताओं के पुनर्गठन से है।हम गहन पढ़ाई से स्क्रॉलिंग के युग में आ गए हैं। एल्गोरिदम हमारा ध्यान नियंत्रित करते हैं, विचारों को 280 शब्दों या 10 सेकंड के क्लिप्स में बांट देते हैं। यह आदत नहीं, बल्कि संज्ञान का पुनर्गठन है। ध्यान अवधि, स्मृति और अवधारणात्मक गहराई कम हो रही है।
यह संकट अबशिक्षा के क्षेत्र में भी फैल रहा है। गुजरात में ज्ञानकुंज कार्यक्रम जो सरकारी स्कूलों में स्मार्टबोर्ड और डिजिटल सामग्री के प्रभावों के मूल्यांकन से संबंधित था, दर्शाता है कि डिजिटल उपकरणों से पढ़नेवाले विद्यार्थी गणित और लेखन में पारंपरिक कक्षाओं के विद्यार्थियों से पीछे रह गए। कारण? शिक्षकों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला। गणित, जो संज्ञानात्मक संरचना और तत्काल फीडबैक की मांग करता है, शिक्षकों के पूर्व-निर्मित सामग्री के निष्क्रिय सुविधा प्रदाता बनने से प्रभावित हुआ। शिक्षण , जो सुधार, सुझाव और प्रोत्साहन की मानवीय प्रक्रिया है, यांत्रिक हो गई। यह एक गहरी बीमारी टेक्नो-ऑप्टिमिज्म की समस्या को उजागर करता है। उद्यम पूंजी और परामर्शदाताओं का मानना है कि एल्गोरिदम शिक्षा को ठीक कर सकते हैं। ए.आई. ट्यूटर्स, अवतार और डैशबोर्ड मानवीय शिक्षण की ‘अक्षमताओं’ को बदल सकते हैं। लेकिन शिक्षा, मात्र सामग्री वितरण नहीं है। यह विश्वास, संवाद, सहजता, आंखों के संपर्क, गलतियों और प्रोत्साहन पर आधारित संबंध पूर्ण और संदर्भ-समृद्ध प्रक्रिया है। कोई ए.आई., कितना भी उन्नत हो, विद्यार्थी के भ्रम को महसूस कर अनुकूलित नहीं कर सकता क्योंकि यह कोड से नहीं, बल्कि भावनात्मक जुडाव से ही संभव हो सकता है ।
ए.आई. अब प्राथमिक शिक्षा में भी प्रवेश कर रहा है। बच्चों की ड्रॉइंग, एल्गोरिदम से सुधारी जा रही हैं। लेकिन खेल-आधारित शिक्षा का क्या? मिट्टी से हाथ गंदे करना, बनावट, आकार और भावनाओं से जुड़ना? भारतीय शिक्षाविद् गांधी और टैगोर ने प्रारंभिक वर्षों में कर के सीखो, स्पर्शनीय शिक्षा पर जोर दिया। श्री अरबिंदो ने तो कहा था कि शिक्षा बच्चे के स्वभाव से उभरनी चाहिए, आंतरिक अस्तित्व में ढलनी चाहिए। क्या ए.आई. इस विशिष्टता को समझ सकता है? जे. कृष्णमूर्ति प्रश्न उठाते हैं कि क्या कोई भी प्रणाली, कितनी भी अच्छी डिजाइन हो, स्वतंत्रता को पोषित कर सकती है? वे स्पष्ट करते हैं कि सच्ची शिक्षा भय से मुक्ति में होती है, न कि कुशल सामग्री वितरण में। यदि ए.आई. कक्षाओं में गलतियों को तुरंत सुधारता है, रास्ते स्वत: पूर्ण करता है, रचनात्मकता को बांधता है, तो क्या हम विद्यार्थी के आंतरिक विकास को रोक नहीं रहे? शिक्षा को प्रांप्ट, क्लिक और ‘सही उत्तरों’ तक सीमित कर, क्या हम आंतरिक ज्योति को बुझा नहीं रहे?
ऐसा नहीं है ए.आई. हमेशा नुकसानदेह ही होगा, विचारशील रूप से इस्तेमाल होने पर ए.आई. शिक्षा को आसान भी बनाता है। जैसे चित्रण और सिमुलेशन जटिल विचारों को समझने में मदद करते हैं, यह प्रशासनिक कार्यों को शिक्षकों से बेहतर कर सकता है परन्तु पाठ्य-निर्वाचन और नैतिक निर्णय नहीं कर सकता । मूल्यांकन के स्तर पर ए.आई. केवल यही बता सकता है उत्तर सही या गलत है वह शिक्षक की तरह प्रक्रिया, चरण, तर्क और रचनात्मकता को नहीं माप सकता; यह दिव्यांग विद्यार्थियों के शिक्षण को सुगम बना सकता है । लेकिन यह सिर्फ एक सेवक रूपी उपकरण रहना चाहिए, नाकि मालिक रूपी निर्णायक आधार स्तंभ । इसके लिए वर्तमान में शिक्षकों को केवल उपकरणों का प्रशिक्षण न देकर, उन्हें AI-औचित्य, सीमाएँ और शैक्षिक-नैतिक मुद्दों पर गहन प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे AI को शिक्षण-सहायक के रूप में रच-रचाकर उपयोग करें।
शिक्षक दिवस के दिन आइए हम शिक्षकों और विद्यार्थियों को सिर्फ एक उपकरण के रूप में ए.आई. को गले लगाने के लिए प्रेरित करें, न कि एक विकल्प के रूप में। हमें ये याद रहना चाहिए कि शिक्षा का उद्देश्य मानव-अधिगम और व्यक्तित्व-निर्माण है। अगर हम शिक्षक को सशक्त और प्रशिक्षित रखें, तो AI उनकी सहायता कर सकती है; अन्यथा हम ज्ञान-निर्माण की प्रक्रिया को ‘अनुकूलित’ करके उसका जीवंत सार खो देंगे। क्योंकि एक बच्चे की आँखों में चमक, उनके प्रश्नों की जिज्ञासा और उनके सपनों की कोमलता को केवल एक मानव हृदय ही समझ सकता है और आगे बढ़ा सकता है। शिक्षक मानवता के भविष्य के वास्तुकार हैं, न कि केवल एल्गोरिदम के उपयोगकर्ता।