डॉ. पीएसजी कुमार : पुस्तकालय सूचना विज्ञान क्षेत्र में अतुलनीय योगदान

डॉ. पीएसजी कुमार : पुस्तकालय सूचना विज्ञान क्षेत्र में अतुलनीय योगदान
09 जून, ‘डॉ. पीएसजी कुमार जयंती’ पर डॉ. प्रितम भि. गेडाम का विशेष लेख
पुस्तकालयों के बिना शिक्षा क्षेत्र का अस्तित्व असंभव है, क्योंकि पुस्तकालयों को शिक्षा की आधारशिला कहा जाता है और गुणवत्तापूर्ण पुस्तकालय एक मजबूत शिक्षा प्रणाली का आधार और प्रतिबिंब होते हैं। पुस्तकालयों का अच्छा विकास एक उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है। जब हम देश में पुस्तकालयों के विकास की बात करते हैं, तो हम निश्चित रूप से उन महान लोगों को याद करते हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र में महानतम कार्य किए हैं। आज हम एक ऐसे ही महान व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्होंने अपने असाधारण कार्यों के माध्यम से पुस्तकालय सूचना विज्ञान के क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। डॉ. पीएसजी कुमार, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही पुस्तकालय सूचना विज्ञान क्षेत्र के विकास में समर्पित कर दिया, जिन्हें देश में इस क्षेत्र के लिए रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है। देश में महत्वपूर्ण पदों पर उन्होंने कार्य कर विदेशों में भी विभिन्न अवसरों पर भारत देश का प्रतिनिधित्व किया। देश भर में पुस्तकालय सूचना विज्ञान क्षेत्र में कार्यरत लोगों का सपना रहा कि डॉ. पीएसजी कुमार के मार्गदर्शन में कार्य कर कुछ सीखने मिले। लोग उन्हें पुस्तकालय सूचना विज्ञान विषय का विश्वकोश कहते हैं, वे गुणों की खान थे, पुस्तकालय क्षेत्र की सम्पूर्ण जानकारी और विकास संबंधित कार्यप्रणाली उनके मस्तिष्क में छपी हुयी थी।
अपने उत्कृष्ट योगदान और गुणवत्तापूर्ण कार्य के कारण डॉ. पीएसजी कुमार को पुस्तकालय विज्ञान के जनक पद्मश्री डॉ. एसआर रंगनाथन के समकक्ष माना जाता है। डॉ. पीएसजी कुमार ने अपने जीवन का अधिकांश कार्यकाल नागपुर विश्वविद्यालय के पुस्तकालय और सूचना विज्ञान विभाग में बिताया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, विचारशील, बुद्धिजीवी, मृदुभाषी, समय के पाबंद और कार्य के प्रति अक्सर तत्पर रहते थे। प्रतिभावान अनुसंधानकर्ता, दृष्टिकोण में वैज्ञानिक, काम में व्यवस्थित, प्रबंधन में कुशल, लोगों के प्रति अपने दृष्टिकोण में मानवतावादी, निर्णय लेने में तार्किक, मुश्किलों से निपटने में मेहनती और ईमानदार, बेहतर शिक्षक, आदर्श पुस्तकालयाध्यक्ष, महान आयोजक, सक्षम प्रशासक, निपुण मार्गदर्शक, उत्कृष्ट लेखक, वक्ता और आलोचक जैसे अनेक भूमिकाओं में महारथी थे।
डॉ. पीएसजी कुमार ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ख्याति प्राप्त की। उन्हें यूनेस्को, एफआईडी, आईएफएलए द्वारा फेलोशिप से सम्मानित किया गया है, एबीसी कैम्ब्रिज द्वारा इंटरनेशनल मैन ऑफ द ईयर, एबीआई, यूएसए द्वारा मैन ऑफ द ईयर, सेक्युलर इंडिया हार्मनी अवार्ड, पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा सत्काल पंजाब लाइब्रेरियन अवार्ड, पी.एस. तेलुगु विश्वविद्यालय, हैदराबाद द्वारा प्रो. पी. गंगाधर राव अवार्ड, कौला एंडोमेंट फॉर लाइब्रेरी साइंस द्वारा रंगनाथन कौला अवार्ड और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एमेरिटस फेलो से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने इफला (इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ लाइब्रेरी एसोसिएशन) के निमंत्रण पर यू.के., यू.एस.ए., मॉरीशस और फ्रांस का दौरा किया और सम्मेलन में भाग लिया, फीड (इंटरनॅशनल डॉक्युमेंटेशन फेडरेशन), कोमला (कॉमनवेल्थ लायब्ररी असोसिएशन), एएलए (अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन) ने उनके अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों को बढ़ाया। उन्होंने देश के लगभग सभी राज्यों और विश्वविद्यालयो का दौरा किया। वे 77 से अधिक विश्वविद्यालयों से जुड़े और विभिन्न संस्थानों/विश्वविद्यालयों में 168 से अधिक व्याख्यान दिए हैं। उनकी जीवनी संबंधी प्रोफ़ाइल 16 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय जीवनी स्रोतों में प्रकाशित हुई है।
देश-विदेश के ख्यातनाम रिसर्च पत्रिकाओं के संपादकीय मंडल में उन्होंने काम किया। डॉ. कुमार ने अपने कार्यकाल में अनेक संगठनों और संघो के प्रमुख पदों पर महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई। वे विदर्भ शैक्षणिक पुस्तकालय संघ के अध्यक्ष, भारतीय पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान शिक्षक संघ के महासचिव, उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष, शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर केन्द्रीय संभागीय समिति के अध्यक्ष, भारतीय पुस्तकालय संघ (आईएलए) के उपाध्यक्ष और अंततः अध्यक्ष 1990-96, भारतीय विशेष पुस्तकालय एवं सूचना केन्द्र संघ के दो बार परिषद सदस्य; अध्यक्ष, सार्क देशों के पुस्तकालय संघ, गुड ऑफिस कमेटी, भारतीय पुस्तकालय संघों की संयुक्त परिषद और भारतीय पुस्तकालय एवं सूचना सेवा फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उनका कार्य सराहनीय है, उन्होंने भारत में पुस्तकालय व्यवसाय के विकास में अमूल्य योगदान दिया। डॉ. कुमार ने 2004 में विदर्भ लाइब्रेरी एसोसिएशन की स्थापना की और युवा पेशेवरों को अपने रचनात्मक कौशल का प्रदर्शन करने के लिए मंच प्रदान किया। वह राष्ट्रसंत तुकाडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में पुस्तकालय सूचना विज्ञान के विभाग प्रमुख, पुस्तकालयाध्यक्ष और व्याख्याता भी रहे, साथ ही वे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के पद पर भी रहे। डॉ. पीएसजी कुमार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के क्षेत्र में एमेरिटस फेलोशिप की पेशकश की गई, यह फेलोशिप दो वर्ष की अवधि के लिए थी, भारत में पुस्तकालय आंदोलन और राज्यवार विकास के विषय पर शोध के लिए यह फेलोशिप थी।
डॉ. पीएसजी कुमार ने 118 से अधिक रिसर्च लेख लिखे, विभिन्न पत्रिकाओं में 68 सेमिनार पेपर, 79 से अधिक समीक्षाएं, 12 परिचय, 3 तकनीकी नोट्स, विभिन्न विषयों पर 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित (भारतीय पुस्तकालय और सूचना विज्ञान विश्वकोश (23 खंडों में) को छोड़कर, जिसका उन्होंने संपादन किया), 8 से अधिक व्यावसायिक पत्रिकाओं के साथ संपादक या संपादकीय बोर्ड के सदस्य के रूप में जुड़े हुए थे। इनमें महत्वपूर्ण हैं आईएटीएलआईएस कम्युनिकेशंस, आईएलए बुलेटिन, आईएलए न्यूजलेटर, हेराल्ड ऑफ लाइब्रेरी साइंस एंड इंफॉर्मेशन एज। उन्होंने आईएलए के माध्यम से प्रारूप, लेआउट और सामग्री को पुनर्गठित करके अपनी संपादकीय क्षमता साबित की है। उनकी ‘पाठ्यचर्या श्रृंखला’, ‘भारत में पुस्तकालय श्रृंखला’ और ‘पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान का भारतीय विश्वकोश’ 23 खंडों में प्रकाशित उनके ज्ञान और लेखन कौशल का प्रमाण हैं। डॉ. पीएसजी कुमार ने मराठी में ‘माहितीयुग’ और अंग्रेजी में ‘इनफार्मेशन एज’ त्रैमासिक पत्रिका शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने थोड़े समय में ही राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली।
डॉ. कुमार के अथक प्रयासों के कारण ही विदर्भ में पुस्तकालयाध्यक्षों के लिए स्नातकोत्तर पदवी पाठ्यक्रम शुरू किया गया। उन्होंने बहुत प्रयास करके 1984 में राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में एमएलआईएससी पाठ्यक्रम का क्रियान्वयन प्रारंभ किया। वह देश में अपने समकालीनों के बीच उनके मार्गदर्शन अंतर्गत सबसे अधिक डॉक्टरेट पदवी धारक हुए। वे पुस्तकालय विज्ञान की दुनिया से जुड़े विषयों की व्यापकता और विविधता को समाहित करते रहे। पुस्तकालय का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां उन्होंने नहीं लिखा हो। डॉ. कुमार भारत में पुस्तकालय विज्ञान के जनक कहे जानेवाले पद्मश्री डॉ. एस.आर. रंगनाथन से सबसे ज्यादा प्रभावित थे। वह कई मायनों में डॉ. रंगनाथन के एक कट्टर अनुयायी और अपने कर्तव्य का पालन करते समय पूर्ण अनासक्ति का संदेश देते नजर आते थे। रंगनाथन के बाद, प्रो. पी.एन. कौला का सबसे अधिक प्रभाव था, कौला उन्हें पुत्र मानते थे और प्रोत्साहन का स्रोत भी।
डॉ. पीएसजी कुमार ने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपूर विद्यापीठ के पुस्तकालय सूचना विज्ञान विभाग मे 1972 मे पदभार संभाला और उन्होने इस विभाग को अपने कार्यशैली से राष्ट्रीय स्तर पर एक अनोखी पहचान दिलवायी। उनके विद्यार्थी आज देश विदेशों में बड़े-बड़े शिक्षा संस्थानों में उच्चतम पदों पर कार्यरत है। डॉ. पीएसजी कुमार के कार्य के हर पहलू से कुछ नया सीखने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने अपनी निजी संग्रह के पुस्तकों की बहुमूल्य पूंजी संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती के पुस्तकालय को भेट कर दी। पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विषय पर व्याख्यान एवं स्थापना के लिए नागपुर विश्वविद्यालय को एक लाख रुपए का दान दिया। उनके कार्य से प्रेरित होकर डॉ. पीएसजी कुमार लाइब्रेरी फाउंडेशन बनाया गया है। पुस्तकालय सूचना विज्ञान विषय के विकास और समृद्धि के लिए वे जीवनभर प्रयत्नशील और कर्मशील रहे, उनकी इसी धरोहर को बेहतर ढंग से आगे बढ़ाते जाना हम सबका कर्तव्य है। देश में पुस्तकालय सूचना विज्ञान विषय संबंधित कोई भी सम्मेलन, संगोष्ठी, कार्यशाला या अन्य कार्यक्रम हो, उनके नाम का उल्लेख अनिवार्य रूप से होता ही है। आज वो भले ही वे हमारे बीच नहीं है, लेकिन पुस्तकालय सूचना विज्ञान विषय में उनके अमूल्य योगदान को यह क्षेत्र हमेशा याद रखेगा और ऋणी रहेगा।
लेखक – डॉ. प्रितम भि. गेडाम
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