20/06/2025

मानवी हस्तक्षेप से दूषित पर्यावरण अब बना जीवसृष्टि के विनाश का कारण

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मानवी हस्तक्षेप से दूषित पर्यावरण अब बना जीवसृष्टि के विनाश का कारण
05 जून ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर डॉ. प्रितम भि. गेडाम का विशेष लेख

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल पृथ्वी पर ही जीवन सम्भव है, क्योंकि यहाँ जीवन के लिए आवश्यक घटकों का बेहतर समन्वय स्थापित हुआ। हमारे आस-पास का पर्यावरण मानव विकास में सहयोगी है, लेकिन मनुष्य ने सभी सीमाएं लांघकर उन पर्यावरणीय घटकों को बेहद नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया और यह अब मानव जीवन के लिए खतरनाक होता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, मिलावटखोरी, जहरीले रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल, यांत्रिक संसाधनों पर बढ़ती निर्भरता, बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट, प्रदुषण, शोर, अशुद्धता, जंगल कटाई, सीमेंटीकरण, बढ़ता शहरीकरण, सरकारी नियमों की अवहेलना, वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों का नुकसान, ओज़ोन परत की क्षति, प्रकृति से छेड़छाड़ जैसी घटनाएं पर्यावरण को बर्बाद कर रही है, जिसके कारण प्राकृतिक आपदाओं में बेहद वृद्धि हुयी है। तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बहुत तेजी से बढ़ी, जिसका सीधा असर जैव विविधता पर पड़ रहा है। पर्यावरण में अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप से समस्त जीवसृष्टि को आघात पहुंचा है। अब धीरे-धीरे इसका गंभीर परिणाम सबको भुगतना पड़ रहा है। युद्धस्तर पर हमें तत्काल पर्यावरणपूरक कार्यक्रलापों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, वर्ना जीवसृष्टि का विनाश तो चल ही रहा है। पर्यावरण के प्रति जागरूकता हेतु हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है। इस वर्ष 2025 की थीम है, वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करें। यह विषय प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने और टिकाऊ विकल्पों को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम के ऋतुओं का चक्र बिगड़ गया है, अभी गर्मी में बारिश, बारिश में ठंडी, ठंडी में गर्मी तो कभी बारिश होती है, जिसका बुरा असर फसलों और स्वास्थ्य पर पड़ता है। फसलें खराब होती है, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की गंभीर स्थिति उत्पन्न होती है, जिसका सबसे बड़ा खामियाजा किसान, छोटे व्यापारी और गरीबों को होता है, साथ ही वन्यजीव और जलचर प्राणी जगत को भी नुकसान पहुँचता है। शुद्ध जल से निर्मित हिमखंड पिघल कर समुद्र में समा जाते है, जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और तापमान में लगातार वृद्धि जारी है। मानवी स्वास्थ्य बदलते मौसम के साथ लगातार कमजोर होता जा रहा है, जानलेवा घातक बीमारियां तेजी से जकड रही है, रोगप्रतिकारक क्षमता क्षीण हो रही है। अभी गर्मी में बढ़ती आर्द्रता दम घोटने वाली साबित हो रही है, जो शरीर को अंदर से उबाल रही है, ऐसा महसूस होता है। जीवसृष्टि के लिए वरदान ओजोन परत को लगातार नुकसान होने के कारण अब हमें खतरा निर्माण हो रहा है, इस शोर-शराबे और प्रदूषित वातावरण के कारण हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी तेजी से बिगड़ता है।

आनेवाली पीढ़ी के हिस्से का प्राकृतिक संसाधन हमने पहले ही ख़त्म करना शुरू कर दिया है, ऊपर से जहरीले वातावरण में लगातार वृद्धि कर रहे है। हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके है, कि हमारे घर के बाहर कोई हराभरा वृक्ष है, जो हमें शुद्ध ऑक्सीज़न, छाया, फल, फूल, नमी देता है फिर भी हम ये सोचते है कि इस वृक्ष को काटकर उस जगह पर अतिक्रमण कर लें। मनुष्य की ऐसी हरकतों के कारण ही चहचहाते पंछियों ने घनी आबादियों से दुरी बना ली। शहरों से बहने वाली नदियां अब गंदगी भरी नालों में तब्दील हो चुकी है। बहुत बार देखा जाता है कि, सरकारी अधिकारियों या निविदा पर काम करनेवाले ठेकेदारों की लापरवाही का नतीजा आम जनता को भुगतना पड़ता है, जैसे :- थोडीसी बारिश में ही बाढ़ की स्थिति उत्त्पन्न हो जाती है और सरकार के दावों की पोल खोल देती है। बरसात आते ही सड़कों पर पानी जमा हो जाता है, हर तरफ खड्डे पड़ जाते है, कही चौराहों पर दिन में पथदीप शुरू रहते है, तो कही ट्रैफिक सिग्नल बंद रहते है, तो कही सड़कों पर नल का पानी बहता रहता है, तो कहीं ठेकेदार रास्तों पर गड्डे खोदकर छोड़ देते है। कहीं बरसों तक पुल या सड़क बनाने का एक ही काम धीमी रफ्तार से चलता रहता है और जनता परेशान होती रहती है।

अमेरिका स्थित एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन, हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट में पाया गया कि 2021 में दुनिया भर में 8.1 मिलियन मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं। इन मौतों के अतिरिक्त, लाखों लोग गंभीर दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित हैं, जो स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों पर भारी दबाव डाल रही हैं। 2021 में, वायु प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम आयु के 700,000 से अधिक बच्चों की मृत्यु हुई, जिससे यह कुपोषण के बाद, इस आयु वर्ग में मृत्यु के लिए विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक बन गया। इनमें से 500,000 बच्चों की मृत्यु, मुख्यतः अफ्रीका और एशिया में, प्रदूषणकारी ईंधन का उपयोग करके घर पर खाना पकाने के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण के कारण हुई।

विश्व आर्थिक मंच अनुसार, जलवायु संकट के कारण 2050 तक 14.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो सकती है, यदि उत्सर्जन को कम करने के प्रमुख उपायों में सुधार नहीं किया गया। 2050 तक 1.1 ट्रिलियन डॉलर का अतिरिक्त व्यय होने का अनुमान है। औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2.5ओ से 2.9ओ सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है। पाया गया कि बाढ़ से मौसम जनित मृत्यु दर का सबसे अधिक खतरा है, जिससे 2050 तक 8.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाएगी। सूखा, जो अप्रत्यक्ष रूप से अत्यधिक गर्मी से जुड़ा हुआ है, मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है, जिससे 3.2 मिलियन लोगों की मृत्यु होने की आशंका है। उत्पादकता में कमी के कारण, वर्ष 2050 तक गर्म लहरों के कारण सबसे अधिक आर्थिक नुकसान होगा, जो अनुमानित रूप से 7.1 ट्रिलियन डॉलर होगा। वायु प्रदूषण से होने वाली अत्यधिक मौतें, जिनमें सूक्ष्म कण पदार्थ और ओजोन प्रदूषण से होने वाली मौतें भी शामिल हैं, समय से पहले होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण होने की आशंका है, जिसके कारण हर साल लगभग 9 मिलियन मौतें होती हैं।

पर्यावरण की सुरक्षा ही जीवसृष्टि का आधार है, इसकी सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है। वायु और जल प्रदूषण को कम करने के उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करना, उत्सर्जन नियमों को कड़ा करना, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए कदम उठाना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना और वनों की सुरक्षा करना। पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण एवं पुनर्स्थापन, वनों की कटाई में कमी, तथा टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना। हरित स्थानों का निर्माण, पैदल चलने और साइकिल चलाने को बढ़ावा देना। यांत्रिक संसाधनों पर निर्भरता कम करना, कांक्रीटीकरण के साथ में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना, गावों का शहरों की ओर बढ़नेवाले पलायन पर कोई स्थायी उपाय निकलना अर्थात गुणवत्तापूर्ण शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रभावी रूप में स्थापित करना। उपजाऊ भूमि का क्षरण रोकना, फसलों पर हानिकारक रसायनों के छिड़काव पर पाबंदी लगाना, जैविक खेती को बढ़ावा देना। जंगल में वृक्षों का क्षेत्र आवश्यकता अनुपात में बहुत कम है, उसे बढ़ाना। प्लास्टिक अपशिष्ट और ई-अपशिष्ट का अधिकाधिक रीसायकल करना, रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देना। यह हमारा कर्तव्य है कि हम आसपास के क्षेत्र में न्यूनतम प्रदूषण और अधिकतम हरियाली बनाए रखें।

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लेखक – डॉ. प्रितम भि. गेडाम
मोबाइल/व्हॉट्सप क्र. 082374 17041
ईमेल : prit00786@gmail.com

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